'एजेंडालेस' रूस दौरा: मोदी आख़िर करना क्या चाहते हैं
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि एक तरफ़ तो पीएम मोदी अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन का सामना करने के लिए साझेदारी बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ चीन, रूस और पाकिस्तान वाले शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के साथ भी आगे बढ़ना चाहते हैं.
कुछ लोग ये भी पूछने लगे हैं कि क्या मोदी रूस, अमरीका और चीन को लेकर कन्फ्यूज़ हैं?
21 मई को मोदी सोची में पुतिन से चार-पांच घंटों
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रूस में हैं. सोची में मोदी की राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात होगी.
इसी साल मार्च महीने में एक बार फिर से छह सालों के लिए राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पुतिन की मोदी से ये पहली मुलाक़ात है.
इस मुलाक़ात को अनौपचारिक और बिना कोई एजेडा के कहा जा रहा है.
31 अप्रैल को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से इसी तरह की अनौपचारिक मुलाक़ात करने मोदी चीनी शहर वुहान पहुंचे थे.
वुहान और सोची में मोदी की अनौपचारिक मुलाक़ातें आख़िर किस रणनीति का हिस्सा है?
- क्यों दरक रही है भारत और रूस की दोस्ती की दीवार?
- रूस में भारत को लेकर इतनी दीवानगी क्यों?
- सीरिया मिसाइल हमले पर चुप क्यों है भारत?
https://twitter.com/narendramodi/status/998159596983373824
मोदी का ट्वीट
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि एक तरफ़ तो पीएम मोदी अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चीन का सामना करने के लिए साझेदारी बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ़ चीन, रूस और पाकिस्तान वाले शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन के साथ भी आगे बढ़ना चाहते हैं.
कुछ लोग ये भी पूछने लगे हैं कि क्या मोदी रूस, अमरीका और चीन को लेकर कन्फ्यूज़ हैं?
21 मई को मोदी सोची में पुतिन से चार-पांच घंटों की मुलाक़ात करेंगे और उसी दिन वापस आ जाएंगे.
मोदी ने इस दौरे की पूर्व संध्या पर रविवार को ट्वीट किया, "हमें पूरा भरोसा है कि राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत के बाद भारत और रूस की ख़ास रणनीतिक साझेदारी और मजबूत होगी."
विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी और पुतिन के बीच कई मुद्दों पर बात हो सकती है.
सीएएटीएसए का मुद्दा
सबसे बड़ा मुद्दा है सीएएटीएसए यानी अमरीका का 'काउंटरिंग अमरीकाज एडवर्सरिज थ्रू सेक्शन्स ऐक्ट.' अमरीकी कांग्रेस ने इसे पिछले साल पास किया था.
उत्तर कोरिया, ईरान और रूस पर अमरीका ने इस क़ानून के तहत पाबंदी लगाई है. कहा जा रहा है कि अमरीका की इस पाबंदी से रूस-भारत के रक्षा सौदों पर असर पड़ेगा.
भारत नहीं चाहता है कि रूस के साथ उसके रक्षा सौदों पर किसी तीसरे देश की छाया पड़े.
भारतीय मीडिया में ये बात भी कही जा रही है कि भारत ने ट्रंप प्रशासन में इस मुद्दे को लेकर लॉबीइंग भी शुरू कर दी है ताकि इस पाबंदी से भारत को रूस से रक्षा ख़रीदारी में किसी भी तरह की बाधा का सामना न करना पड़े.
अमरीका कै फ़ैसले और भारत पर उसका असर
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार भारत अपनी ज़रूरत के 68 फ़ीसदी हथियार रूस से ख़रीदता है.
अमरीका से 14 फ़ीसदी और इसराइल से आठ फ़ीसदी. ये आंकड़ा 2012 से 2016 के बीच का है.
ज़ाहिर है भारत के हथियार बाज़ार में अमरीका और इसराइल की एंट्री के बावजूद रूस का कोई तोड़ नहीं है. ऐसे में अमरीकी पाबंदी से दोनों देशों का चिंतित होना लाजिमी है.
इसके साथ ही अगले महीने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) और जुलाई में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भी होने जा रहे हैं.
एससीओ और ब्रिक्स में भारत के साथ रूस और चीन दोनों हैं.
इसके साथ ही ईरान से अमरीका द्वारा परमाणु समझौता तोड़ने का असर भी भारत की आर्थिक सेहत पर पड़ेगा.
भारत के लिए चुनौती
ईरान से पेट्रोलियम का आयात भारत के लिए आसान नहीं रह जाएगा.
इसके अलावा दोनों नेताओं के बीच सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवाद का मुद्दा भी अहम रहेगा.
ज़ाहिर है भारत और रूस के बीच का रिश्ता ऐतिहासिक रहा है पर अंतरराष्ट्रीय संबंध कभी स्थिर नहीं रहते. दोस्त बदलते हैं तो दुश्मन भी बदलते हैं.
हाल के वर्षों में भारत और अमरीका के संबंध गहरे हुए तो पाकिस्तान अमरीका से दूर हुआ. राष्ट्रपति ट्रंप ने खुलेआम पाकिस्तान पर हमला बोला.
दूसरी तरफ़ रूस और पाकिस्तान में कभी गर्मजोशी नहीं रही, लेकिन अब दोनों देश रक्षा सौदों के स्तर तक पहुंच गए हैं.
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर संजय पांडे भी मानते हैं कि रूस और भारत का संबंध आज के समय में सबसे जटिल अवस्था में है.
कश्मीर पर भारत के साथ रूस
संजय पांडे मानते हैं कि भारत न तो अमरीका को छोड़ सकता है और न ही रूस को.
वो कहते हैं, "भारत के पास यह विकल्प नहीं है कि वो रूस को चुने या अमरीका को. चुनौती यह है कि अमरीका और रूस में संबंध कभी अच्छे रहे नहीं इसलिए भारत दोनों से एक साथ मधुर संबंध बनाकर नहीं रह सकता. ऐसे में दोनों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाना ही भारत की समझदारी है और मोदी की भी यही कोशिश है."
रूस और पाकिस्तान का क़रीबी भी भारत को परेशान करने वाला है.
रूस ऐतिहासिक रूप से संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में कश्मीर को लेकर भारत के पक्ष में वीटो पावर का इस्तेमाल करता रहा है.
अब बदली विश्व व्यवस्था में दक्षिण एशिया में रूस भी अपनी प्राथमिकता बदल रहा है. दिसंबर 2017 में छह देशों के स्पीकरों का इस्लामाबाद में एक सम्मेलन हुआ था.
वन बेल्ट वन रोड परियोजना
इस सम्मेलन में अफ़ग़ानिस्तान, चीन, ईरान, तुर्की, पाकिस्तान और रूस के स्पीकर शामिल हुए थे. सम्मेलन में एक कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा एक प्रस्ताव पास किया गया था.
इस प्रस्ताव में कहा गया था कि वैश्विक और क्षेत्रीय शांति के लिए जम्मू-कश्मीर का भारत और पाकिस्तान के बीच संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के मुताबिक़ शांति ज़रूरी है.
पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को रूस समेत सभी देशों ने सहमति से पास किया था.
2017 के दिसंबर महीने में रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव नई दिल्ली आए थे और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारत को चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना में शामिल होना चाहिए.
उन्होंने कहा था भारत को इस व्यापक परियोजना में शामिल होने के लिए कोई रास्ता निकालना चाहिए.
संप्रभुता का गंभीर सवाल
चीन और पाकिस्तान के बीच चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से गुजरने पर भारत की तरफ़ से संप्रभुता के गंभीर सवाल उठाए जाने पर रूसी विदेश मंत्री ने कहा था कि कुछ ख़ास आपत्तियों के कारण राजनीतिक मतभेदों को सुलझाने के लिए शर्तें नहीं रखनी चाहिए.
इसके साथ ही रूसी विदेश मंत्री ने अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत की साझेदारी पर भी नाख़ुशी जताई थी.
उन्होंने कहा था कि एशिया-प्रशांत में सुरक्षा की जो टिकाऊ साझेदारियां हैं उसकी तुलना में इन साझेदारियों से कुछ हासिल नहीं होगा.
संजय पांडे भी मानते हैं कि अमरीकी नेतृत्व वाले सहयोगी देशों के साथ रूस के बढ़ते तनाव के कारण भारत के लिए और मुश्किल स्थिति हो जाती है.
उनका कहना है कि भारत के लिए दिक़्क़त यह है कि चीन दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव से पारंपरिक संतुलन को तोड़ रहा है और भारत इससे परेशान है.
पाकिस्तान और चीन
चीन और भारत के बीच बढ़ते शक्ति अंसतुलन के कारण दोनों देशों की सीमा पर अस्थिरता की आशंका और बढ़ गई है.
पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ती दोस्ती से भारत को दो मोर्चों से चुनौती की चिंता सता रही है.
दूसरी तरफ़ रूस की सोच है कि वो अमरीकी नेतृत्व वाले सहयोगी देशों को चीन के सहयोग से ही चुनौती दे सकता है.
वहीं भारत चीन की चुनौती का सामना करने के लिए रूस पर निर्भर नहीं रह सकता. प्रोफ़ेसर पांडे मानते हैं कि इसी सोच से भारत वैकल्पिक व्यवस्था की ओर रुख़ कर रहा है.
पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत के विद्रोही नेता डॉक्टर जुमा मारी बलोच पिछले 18 सालों से रूस में निर्वासित जीवन जी रहे हैं.
उन्होंने इसी साल 17 फ़रवरी को रूस के सरकारी मीडिया स्पूतनिक को दिए एक इंटरव्यू दिया था.
उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा था कि भारत बलूचों के आंदोलन को हाइजैक कर रहा है.
यह सब कुछ मॉस्को में हो रहा है और रूस होने दे रहा है. ज़ाहिर है यह भारत के लिए शर्मिंदगी से कम नहीं है.
रूस और भारत की पारंपरिक दोस्ती में आई इस दरार को पाटना मोदी के लिए बड़ी चुनौती है.