पाकिस्तान से आई आंखें नम कर देने वाली ख़ूबसूरत प्रेम कहानी
"अगर यह ख़ुश नहीं रहेंगी तो हम भी ख़ुश नहीं रहेंगे…" ये शब्द पाकिस्तान में रहने वाले मुख़्तार अहमद के हैं जो पाकिस्तान के मुल्तान में अपनी बेग़म शाहीन के साथ रहते हैं. शाहीन मानसिक रूप से बीमार हैं और मुख़्तार की ज़िंदगी का हर पल शाहीन की खुशामद में बीतता है. मुख़्तार हर रोज़ सूरज उगने के साथ ही उठते हैं, अपनी बेग़म को नहलाते हैं
"अगर यह ख़ुश नहीं रहेंगी तो हम भी ख़ुश नहीं रहेंगे…"
ये शब्द पाकिस्तान में रहने वाले मुख़्तार अहमद के हैं जो पाकिस्तान के मुल्तान में अपनी बेग़म शाहीन के साथ रहते हैं.
शाहीन मानसिक रूप से बीमार हैं और मुख़्तार की ज़िंदगी का हर पल शाहीन की खुशामद में बीतता है.
मुख़्तार हर रोज़ सूरज उगने के साथ ही उठते हैं, अपनी बेग़म को नहलाते हैं, बाल बनाते हैं, सुरमा लगाते हैं और तैयार करके अपने साथ ऑटो पर बिठाकर ले जाते हैं.
मुख़्तार अपना और अपनी पत्नी का पेट पालने के लिए ऑटो चलाते हैं लेकिन वे एक पल के लिए भी शाहीन को अपनी आँखों से ओझल नहीं कर सकते.
मुख़्तार जब शाहीन की ओर देखते हैं तो उनकी आँखों में शाहीन के प्रति प्रेम की तपिश महसूस होने लगती है.
और ये पल साहिर लुधियानवी के बेमिसाल शेर - 'इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर, हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक…'की याद दिलाते हैं.
शाहीन-मुख़्तार की प्रेम कहानी
अब से पैंतीस बरस पहले मुल्तान में रहने वाले मुख़्तार अहमद का निकाह शाहीन से हुआ था.
निकाह के बाद शाहीन नौ बार गर्भवती हुईं लेकिन हर बार उनका गर्भपात हो गया.
हर गर्भपात के साथ शाहीन अपना मानसिक संतुलन खोती जा रही थीं लेकिन बिगड़ती मानसिक सेहत के साथ मुख़्तार ने अपनी बेग़म का ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान रखना शुरू कर दिया.
धीरे-धीरे शाहीन की हालत इतनी ख़राब हो गई कि मुख़्तार को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी, घर छोड़ना पड़ा. मगर उन्होंने इस सबके बावजूद अपनी बेग़म का साथ नहीं छोड़ा.
फ़िलहाल शाहीन की हालत इतनी ख़राब हो चुकी है कि वे एक पल भी अकेले नहीं रह सकतीं.
मुख़्तार कहते हैं, "कम-ज़्यादा दुख-सुख तो ज़िंदगी में आते ही रहते हैं. लेकिन ऐसा नहीं होता कि ज़रा की तक़लीफ़ आई और बीवी को छोड़ दिया. इनको घर पर रखने की बात करना ठीक वैसे ही जैसे सूरज को यह बोलना कि इधर से नहीं उधर से निकलो, ये मेरे बगैर नहीं रह सकती."
''बच्चों की वजह से इन्होंने बहुत चिंता की. जब आखिरी बच्चा ख़राब हुआ तो वह पूरे नौ महीने चार दिन का होने के बाद ख़राब हुआ. उस बात इन्हें बहुत बड़ा झटका लगा.''
"हमारा कहना यह मानती थीं, हम इनका कहना मानते थे और फिर हमारे बीच प्यार हो गया, यहां शादी करने के बाद हम कराची चले गए थे. वर्कशॉप के ज़रिए हम सही कमाते थे लेकिन जब यह बीमार हुईं तो काम छोड़ना पड़ा. सारा दिन इन्हीं का ख़याल रखना पड़ता, कभी रोटी देनी है कभी दवाई देनी है. कभी तेल लगाना है, कंघा करना है, सुरमा लगाना है. कपड़े धोने हैं, खाना पकाना है. हम तो मर्द की जगह औरत बन गए खिदमत करने वाली."
'अल्लाह ने मुझे लाखों में एक बीबी दी है'
अक्सर ऐसा होता है कि पति या पत्नी की हालत ख़राब होने पर सगे सम्बंधी दूसरी शादी करने की सलाह देते हैं. मुख़्तार अहमद को भी ऐसे ही सुझावों से दो चार होना पड़ा.
वे कहते हैं, "मेरे माता-पिता, दोस्त यार और रिश्तेदार कहते थे कि कहीं और शादी कर लो, लेकिन अल्लाह ने मुझे लाखों में एक बीवी दी है. जब कभी कोई बच्चा ख़राब होता था और डॉक्टर इनके इंजेक्शन लगाते थे तो मुझे बुलाते थे कि बड़े मियां आओ, आपकी लड़की होश में आ गई है. ये अपनी उम्र से 20 साल छोटी लगती हैं."
दुश्वारियों से भरी ज़िंदगी
शाहीन का ख्याल रखते हुए मुख़्तार अहमद को तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है.
और मुख़्तार की ज़िंदगी में दुश्वारियों का सिलसिला जारी है.
लेकिन शाहीन के साथ इश्क की लौ आज भी मुख़्तार की आँखों में चमक बनाए हुए है.
मुख़्तार बताते हैं, "हम गाय भैंसों वाली जगह पर रहते हैं, उसके अंदर ही एक कमरा है. एक साल पहले उसकी छत गिर गई तो फ़िलहाल हम बाहर सोते हैं. हमारे पास दो चारपाइयां हैं, एक पर सामान रखा रहता है और दूसरी पर हम सोते हैं. अगर बारिश आ जाती है तो अपने ऊपर कोई छप्पर ले लेते हैं. हम कपड़े पहनकर ही नहाते हैं क्योंकि हमारे पास कपड़े उतारने की कोई जगह नहीं है. ऊपर वाले की दया से वक़्त गुज़र गया अब सर्दियां जाने वाली हैं."
"इनकी तबीयत कब ख़राब हो जाए पता नहीं चलता. इसलिए इनके साथ रहना हमारी मजबूरी भी है और रोज़गार भी चल रहा है. नाश्ता करने के बाद हम दोपहर 11-12 बजे के आसपास निकलते हैं फिर होटल में एक प्लेट ली और दोनों ने गुज़ारा कर लिया. अगर हमारा खर्चा 300 रुपए है तो हम 400 रुपये कमाकर घर बैठ जाते हैं.
"कई बार लोग इन्हें साथ में देखते हैं तो उन्हें लगता है साथ क्यों लेकर आया हूं. जो कम पढ़े-लिखे होते हैं वो सोचते हैं कि यह बीमार हैं, वो इनके साथ बैठने से इनकार कर देते हैं. वहीं जो पढ़े-लिखे लोग हैं वो इनसे मोहब्बत करते हैं.
"मेरी कोशिश है कि ज़िंदगी कुछ और बेहतर हो जाए, यह छत डल जाएगी तो इसको सुकून मिलेगा. अगर यह खुश नहीं रहेंगी तो हम भी खुश नहीं रहेंगे. जब ये मेरा हमसफ़र है तो क्या बात है."
शाहीन की हालत इतनी ख़राब है कि वे सामान्य बातों पर भी अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाती हैं. लेकिन मुख़्तार उनकी हर तकलीफ़ को समझ लेते हैं.