क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

इंटरनेट पर भुलाए जाने के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई

Google Oneindia News
भारत में इंटरनेट से जुड़े कानूनों में स्पष्टता की दिक्कत

नई दिल्ली, 16 मार्च। उस बात को दस साल से भी ज्यादा बीत चुके हैं जबकि एक्टर आशुतोष कौशिक को शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वह उस बात को पीछे छोड़ देना चाहते हैं लेकिन इंटरनेट उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा. इसीलिए वह इंटरनेट से अपना इतिहास हटाए जाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.

कौशिक ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. उनकी मांग है कि उनकी गिरफ्तारी और अन्य घटनाओं से जुड़े लगभग 20 लेख और वीडियो इंटरनेट से हटा दिए जाएं. कौशिक की यह मांग बहुत से लोगों की इंटरनेट से अपना बीता हुआ कल हटाए जाने की इच्छा से जुड़ी है.

कौशिक के वकील अक्षत बाजपेयी कहते हैं, "मेरे मुवक्किल एक दशक से भी ज्यादा समय से बहुत छोटी सी घटना की सजा भुगत रहे हैं, जबकि उसके लिए वह कीमत चुका चुके हैं. क्यों ऐसा होना चाहिए जब भी कोई उनका नाम गूगल पर सर्च करे तो उन्हें उस घटना की दोबारा सजा मिले?"

दर्जनों याचिकाएं लंबित

कौशिक द्वारा दायर याचिका ऐसी ही दर्जनों याचिकाओं में से एक है जिनमें इंटरनेट से सूचनाएं हटाने की अपील की गई है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये सूचनाएं निजता या अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करती हैं या फिर अब इनकी जरूरत और प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है.

बाजेयी कहते हैं कि जैसे सूचना का अधिकार जरूरी है, उतनी ही अहमियत भुलाए जाने के अधिकार की भी है. वह बताते हैं, "सूचना के अधिकार का भुलाए जाने के अधिकार के साथ तालमेल होना चाहिए. हर बार किसी का नाम गूगल करने पर छोटी-छोटी पुरानी बातें सामने आने से कौन सा सामाजिक भला हो रहा है?"

इस बारे में भारत में किसी तरह का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. इस वजह से हाल के समय में कई अदालतों ने भुलाए जाने के अधिकार को निजता के अधिकार का ही एक अंग मानते हुए फैसले सुनाए हैं. 2017 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार माना था. उसी आधार पर इंटरनेट पर अपनी सूचनाएं हटवाने को विभिन्न अदालतों ने निजता में निहित माना है.

अन्य देशों की स्थिति

सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण यह मुद्दा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी विवाद का विषय बन चुका है. इसी के चलते कई देशों ने तो इस बारे में कानून भी पास किए हैं. यूरोप ने 2014 में ही भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दे दी थी. यह यूरोपीय संघ के जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) का भी हिस्सा है. लेकिन 2019 में यूरोपीय संघ की सर्वोच्च अदालत ने एक फैसले में सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों को यह छूट दे दी थी कि कहीं और उन्हें इस कानून को लागू करने की जरूरत नहीं है.

अब बिना स्मार्टफोन के भी कर सकेंगे यूपीआई इस्तेमाल

भारत में भी डाटा प्रोटेक्शन बिल लंबे समय से चर्चा में है. अधिकारी कहते हैं कि इस बिल में भुलाए जाने का अधिकार भी शामिल है लेकिन बिल ही काफी वक्त से लंबित है.

कौशिक ने अपनी याचिका में गूगल के एक प्रवक्ता का नाम भी लिया है. उस प्रवक्ता का कहना है कि गूगल के पास ऐसी व्यवस्था मौजूद है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी को चिन्हित कर सकता है जो उसकी निजता का उल्लंघन करती है. प्रवक्ता के मुताबिक इस व्यवस्था में "स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने" का प्रावधान भी है. प्रवक्ता ने कहा, "हमारा मकसद हमेशा यह रहा है कि सूचना की सर्वोच्च सुलभता का समर्थन किया जाए."

2014 में यूरोपीय संघ का फैसला आने के बाद गूगल के पास लोगों द्वारा सूचनाएं हटाने के 12 लाख से ज्यादा आग्रह आए थे. इन आग्रहों में 48 लाख लिंक थे जो राजनेताओं और मशहूर हस्तियों से लेकर आम लोगों तक ने भेजे थे.

भारत में 2021 रहा यूनिकॉर्न स्टार्टअप कंपनियों का साल

सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों की यह जिम्मेदारी है कि "अनुचित और अप्रासंगिक" जानकारियां देने वाले लिंक को जनहित को ध्यान में रखते हुए हटा दे. गूगल के डाटा के मुताबिक आग्रहों में से लगभग आधे लिंक हटा दिए गए. अन्य देशों में भी इस बारे में नियम बनाए गए हैं. मसलन, रूस में कुछ मामलों में सूचनाएं इंटरनेट से हटाई जा सकती हैं. स्पेन, अर्जेंटीना और अमेरिका ने भी कुछ मामलों में भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दी है.

जिंदगी पर असर

भारत में सूचनाएं हटवाने की ज्यादातर याचिकाएं ऐसे लोगों ने की हैं जिन्हें किसी अपराध में सजा हुई और उन्होंने अपनी सजा भुगती. कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके बारे में सूचनाएं उनकी इजाजत के बिना प्रकाशित की गईं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन पुरानी सूचनाओं के कारण उनकी छवि, करियर और शादियां तक प्रभावित होती हैं.

कौशिक कहते हैं, "जब मैं शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए गिरफ्तार हुआ था तो 26-27 साल का था. अब मैं 42 साल का हूं और अब तक सजा भुगत रहा हूं. उन ऑनलाइन रिपोर्टों ने मेरे परिवार को प्रभावित किया और मेरा करियर भी. मेरी एक सार्वजनिक जिंदगी है लेकिन निजी जिंदगी भी तो है. निजता मेरा भी अधिकार है."

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनंदिता मिश्रा कहती हैं कि कानून ना होने के कारण अदालतों की अपनी सीमाएं हैं क्योंकि किसी सूचना को हटाने की बात करते ही वैध जनहित, सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दे खड़े हो जाते हैं. मिश्रा कहती हैं कि भुलाए जाने का अधिकार कई और बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकता है.

आईएफएफ का कहना है, "हमारा रुख है कि अगर कोई सूचना पब्लिक रिकॉर्ड में है तो उस पर निजता का अधिकार लागू नहीं होता और जब तक डाटा प्रोटेक्शन कानून नहीं बनता, तब तक कोर्ट का रिकॉर्ड पब्लिक रिकॉर्ड है." यानी जब तक यह कानून नहीं बन जाता, तब तक लोगों को हर मामले में अलग-अलग कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. यह लंबी और दुरूह लड़ाई हर बार जीती भी नहीं जाएगी.

वीके/एए (रॉयटर्स)

Source: DW

Comments
English summary
indians fight in court for right to be forgotten online
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X