कांग्रेस के बूढ़ों की बाजीगरी के सामने मात खा बैठे भाजपा के दिग्गज
नई
दिल्ली।
दक्षिण
के
महत्वपूर्ण
राज्य
कर्नाटक
में
मौजूदा
विधानसभा
चुनावों
और
उसके
परिणामों
ने
राजनीति
की
नई
ईबारत
लिखी
है।
परिणाम
आने
के
बाद
लगातार
पांच
दिनों
तक
चले
शह
मात
के
खेल
में
आखिर
कांग्रेस-जेडीएस
हारी
बाजी
को
भाजपा
से
छीनकर
अपने
पक्ष
में
पलटने
में
सफल
रही।
जीत
बेशक
कांग्रेस-जेडीएस
गठबंधन
की
हुई
हो
लेकिन
इसे
असलियत
में
कांग्रेस
की
ही
जीत
माना
जाएगा
क्योंकि
भाजपा
से
सीधे
मुकाबले
में
वो
ही
सामने
थी।
कर्नाटक
में
कांग्रेस
को
भाजपा
के
हाथों
ही
अपनी
सत्ता
गंवानी
पड़ी
थी
ऐसे
में
सबसे
ज्यादा
दबाव
भी
उसी
के
ऊपर
था।
परिणाम
सामने
आने
के
बाद
भाजपा
बहुमत
से
दूर
रही
तो
कांग्रेस
ने
हारी
बाजी
पलटने
के
लिए
पूरा
दम
झोंक
दिया,
क्योंकि
पार्टी
जानती
थी
कर्नाटक
हाथ
से
गया
तो
फिर
अगले
तीन
विधानसभा
और
लोकसभा
चुनावों
में
वापसी
करना
मुश्किल
हो
जाएगा।
ऐसे
में
पार्टी
ने
इस
किले
को
बचाने
के
लिए
अपने
सारे
दिग्गजों
को
कर्नाटक
में
झोंक
दिया।
इनमें
ज्यादातर
कांग्रेस
के
वो
वरिष्ठ
नेता
ही
थे
जिन्हें
चूका
हुआ
मान
लिया
गया
था।
उसके
मुकाबले
भाजपा
ने
केंद्र
के
दिग्गज
मंत्रियों
की
फौज
कर्नाटक
में
सरकार
बनाने
के
लिए
उतार
दी
थी।
लेकिन
कांग्रेस
के
बूढ़े
छत्रपों
के
सामने
भाजपा
के
दिग्गजों
की
सारी
रणनीति
ढेर
हो
गई,
नतीजतन
येदुरप्पा
को
मुख्यमंत्री
की
शपथ
लेने
के
बाद
भी
सरकार
से
रुखसत
होना
पड़ा।
कांग्रस ने तुंरत भेजे अपने दिग्गज नेता
कर्नाटक में चुनाव परिणाम आने के बाद जैसे ही त्रिशुंक विधानसभा की स्थिति बनी, कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलने की तैयारी कर ली। वो दांव था किसी भी तरह भाजपा को सत्ता से दूर रखने का और इसके लिए पार्टी बिना मांगे ही तीसरे नंबर वाली पार्टी जेडीएस को भी समर्थन देने को तैयार हो गई। क्योंकि अगर ऐसा हो जाता तो न सिर्फ कांग्रेस को एक और राज्य से हाथ धोना पड़ता बल्कि उसके अध्यक्ष राहुल गांधी पर भी उंगलियां उठती, जिसका खामियाजा पार्टी को आगामी चुनावों में उठाना पड़ता। लेकिन कांग्रेस को अंदाजा था कि उसका मुकाबला कनार्टक में येदुरप्पा के साथ भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से भी है। इसलिए पार्टी ने उनसे मुकाबले के लिए अपने पुराने नेताओं पर ही भरोसा जताया।
आजाद ने कुमार स्वामी से की बात
कांग्रेस ने कर्नाटक के परिणाम आते ही अपने वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद को कर्नाटक के लिए रवाना कर दिया। आजाद ने तुरंत जेडीएस के अध्यक्ष कुमार स्वामी से संपर्क साधा और उन्हें पार्टी के प्रस्ताव की जानकारी दी। कुमारस्वामी तुरंत तैयार हो गए। पार्टी के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले से ही वहां मोर्चा संभाले हुए थे। शाम होते होते मल्लिकार्जुन खड़गे भी वहां पहुंच गए और पार्टी की रणनीति पर काम शुरू हो गया। दूसरी ओर भाजपा की ओर से पार्टी महासचिव और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, प्रकाश जावडेकर, अनंत कुमार ने मोर्चा संभाल रखा था। इसके अलावा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह लगातार पल पल की खबर ले रहे थे। कांग्रेस नेताओं को इस बात का अच्छी तरह से एहसास था कि बहुमत साबित करने के लिए भाजपा उसके और जेडीएस के विधायकों को तोड़ने का प्रयास जरूर करेगी, इसलिए वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने तुरंत कांग्रेस विधायकों को राज्य से बाहर भिजवाने का इंतजाम किया और उन्हें हैदराबाद भेजा गया। कांग्रेस विधायकों के साथ साथ जेडीएस के विधायक भी वहां भेजे गए।
विधायकों को टूटने से बचाया
पार्टी के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे और गुलाम नबी आजाद लगातार अपने विधायकों के संपर्क में रहे और उनसे बातचीत करते रहे। तीनों वरिष्ठ नेताओं का जोर ज्यादा से ज्यादा अपने विधायकों को एकजुट रखने और इसके लाभ गिनाने पर रहा। वह अपने विधायकों को यह समझाने में सफल रहे कि कर्नाटक में उनकी ही सरकार बनने वाली है ऐसे में उन्हें एक बार फिर सत्ता में रहने का मौका मिलेगा।
जानकारों के अनुसार तीनों नेता लगातार कांग्रेस विधायकों की काउंसलिंग करते रहे। आज सुबह जब कांग्रेस विधायक विधानसभा में पहुंचे तब भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दो घंटे तक उनकी क्लास ली और उन्हें एकसाथ रहने के लिए तैयार किया। यही कारण रहा कि लाख प्रयास के बाद भी येदुरप्पा और भाजपा के दूसरे नेता कांग्रेस की किलेबंदी में सेंध नहीं लगा सके, नतीजतन हथियार डालना ही बेहतर समझा।
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