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अकेले अपनी लोकप्रियता के दम पर वेस्ट यूपी में महागठबंधन को चुनौती दे पाएंगे मोदी?

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नई दिल्ली- मायावती, अखिलेश यादव और अजीत सिंह के महागठबंधन में आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जातीय समीकरण इधर से उधर हो गया है। कांग्रेस अकेले चुनाव मैदान में है और कई सीटों पर मजबूत उम्मीदवारों के दम पर वह मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है। लेकिन, मोटे तौर पर उसकी चुनावी भूमिका गंभीर कम, बल्कि वोट कटवा की ज्यादा लग रही है। दूसरी तरफ भाजपा है, जिसके नेता और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता आज भी पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा है। जातिगत समीकरण को देखें तो महागठबंधन बनने के बावजूद गैर-यादव अति पिछड़ा वर्ग (OBC) अभी भी पूरी तरह से बीजपी के पक्ष में गोलबंधन नजर आता है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का भी इस वर्ग को काफी लाभ मिला है। 2014 के मोदी लहर में क्षेत्र की सारी की सारी सीटें भाजपा ने अधिकतर जगह भारी अंतर से जीत ली थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अकेले मोदी की लोकप्रियता के दम पर बीजेपी इसबार सपा-बसपा और आरएलडी के गठबंधन को मात दे पाने में सक्षम है?

पश्चिमी यूपी में क्या खिचड़ी पक रही है?

पश्चिमी यूपी में क्या खिचड़ी पक रही है?

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक पहले तीन चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जिन 20 सीटों पर चुनाव होने हैं, वहां महागठबंधन बनने के बावजूद बीजेपी रेस से बाहर नहीं है। अगर एक-एक सीट का गहराई से विश्लेषण करें, तो कहीं पर भी कोई लहर तो नहीं दिख रहा है, लेकिन मुस्लिमों की भारी तादाद के चलते आखिरकार दोनों ओर वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना खारिज नहीं की जा सकती। पहले चरण की 8 सीटों पर अगर गणित महागठबंधन के हक में है, तो दूसरे और तीसरे चरण को लेकर बीजेपी बहुत ही आशावादी बनी हुई है, क्योंकि लगभग आधे दर्जन सीटों पर कांग्रेस की मौजूदगी से गठबंधन सकते में है। देवबंद में मुसलमानों से मायावती की अपील को महागठबंधन की सबसे बड़ी आशंका से जोड़कर देखा जा सकता है। इसलिए बीजेपी मानकर चल रही है कि माया ने उसी का काम कर दिया है और गन्ना और गाय की सियासत के लिए चर्चित इस इलाके में ध्रुवीकरण होना तय है। मुजफ्फरनगर के खतौली के पास चीनी मिल में गन्ना ले जा रहे किसान चंद्रपाल सिंह से जब अखबार ने पूछा कि क्या, "तो, क्या आपको पैसा मिल जाता है?" उन्होंने जवाब दिया, "थोड़ी देर से सही, पर मिलता है।" जब उनसे पूछा गया कि आप वोट किसे देंगे? तो उन्होंने कहा, "ये कोई पूछने वाली बात है? निश्चित रूप से मोदी।" ज्यादातर जाट जो गन्ना किसान हैं, बीजेपी के समर्थन में नजर आते हैं। दरअसल, सरकार ने पिछले हफ्ते गन्ने का बकाया 10,000 करोड़ रुपये से कम करके 5,000 करोड़ रुपया करने के लिए भी काफी मेहनत की है। आरएलडी जाटों में बीजेपी की इसी घुसपैठ को तोड़ने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। जिसके चलते माना जा रहा है कि बागपत और मुजफ्फरनगर में वह भाजपा को परेशान भी कर सकती है। इसके साथ ही इस इलाके में आवारा पशुओं की समस्या भी किसानों की परेशानी का एक बहुत बड़ा कारण है। सरकार ने आवारा पशुओं के लिए ठिकाने बनाने शुरू भी किए हैं, लेकिन किसानों में अभी भी इसको लेकर नाराजगी बरकरार है और अखिलेश यादव और अजीत सिंह चुनावी फायदे के लिए इसे उछाल भी रहे हैं।

ध्रुवीकरण का खेल

ध्रुवीकरण का खेल

बीजेपी, महागठबंधन और कांग्रेस सभी इस क्षेत्र में अपने-अपने हिसाब से मतदाताओं की गोलबंदी चाहते हैं। योगी आदित्यनाथ विरोधी पर तंज कसते हुए कहते हैं, "उन्हें अली में भरोसा है, हमें बजरंगबली में भरोसा है।" वे जगह-जगह 80-20% के गणित की भी बात करते हैं। यहां 20% का इशारा मुस्लिम वोट बैंक की ओर होता है। जबकि, मायावती देवबंद में अपना मुस्लिम कार्ड चल ही चुकी हैं। इसके जवाब में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर मुसलमानों से कहते हैं कि ये दिल्ली के लिए चुनाव हो रहा है, लखनऊ के लिए नहीं। मतलब मायावती की बातों में न आकर मुसलमान को कांग्रेस उम्मीदवारों का साथ देना चाहिए। 8 अप्रैल के बाद से चुनाव प्रचार के आखिरी वक्त तक बीजेपी ने जिस तरह से माया के बयान को अपने हक में मोड़ने की कोशिश की है, उसने चुनावी फिजा को दिलचस्प जरूर बना दिया है, लेकिन यह बीजेपी को कितना फायदा पहुंचायेगा इसका अंदाजा लगाना बहुत ही मुश्किल है। गौरतलब है कि इसी इरादे से सीएम योगी मुजफ्फरनगर को फिर से याद दिलाने की भी कोशिश कर चुके हैं और 2013 की घटना को लेकर मोदी अजीत सिंह पर भी निशाना साध चुके हैं।

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राष्ट्रवाद और मोदी फैक्टर

राष्ट्रवाद और मोदी फैक्टर

बालाकोट एयरस्ट्राइक और राष्ट्रवाद के मुद्दों ने भाजपा के कई मौजूदा सांसदों के एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का असर काफी हद तक कम कर दिया है, यह एक जमीनी हकीकत है। मोदी-योगी से लेकर बीजेपी के हर नेता इसकी वोट खींचने की ताकत को भुनाने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ऊपर से मोदी का अपना करिश्मा अभी बरकरार है। इस बात को वो बखूबी समझते भी हैं। शायद इसलिए सहारनपुर और मेरठ की रैली में उन्होंने कहा कि लोग जो भी वोट देंगे वह उन्हें ही मिलेगा। अखबार के मुताबिक मोदी की यह अपील अपने सांसदों से नाराज बीजेपी वोटरों का भी गुस्सा कम कर रहा है। गौरतलब है कि अलीगढ़, मथुरा,मेरठ और नोएडा में पार्टी के वोटर अपने सांसदों से पहले नाखुश नजर आ रहे थे। लेकिन, मोदी के प्रभाव ने उनका गुस्सा नरम कर दिया है। इसी तरह गाजियाबाद और आगरा में कड़ी टक्कर के बावजूद मोदी फैक्टर बहुत प्रभावी नजर आ रहा है। इस तरह से कई सीटों पर अभी भी मोदी फैक्टर काफी मायने रख रहा है। आमतौर पर ज्यादातर वोटर मोदी सरकार के कामकाज से खुश नजर आ रहे हैं और वो बीजेपी को एक और मौका देना चाहते हैं।

लेकिन, मोदी का सामना यहां महागठबंधन के जातीय और मुस्लिम समीकरण से है, जो बीजेपी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। वैसे महागठबंधन की एक कमजोर कड़ी समाजवादी पार्टी खुद भी है, जिसके कार्यकर्ताओं का मनोबल अंदरूनी खींचतान के चलते काफी सुस्त नजर आ रहा है। बावजूद महागठबंधन की चुनौतियों के पश्चिमी यूपी में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा इसबार भी नरेंद्र मोदी ही हैं। जिनकी सरकार की उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय निर्माण और किसानों के खाते में पैसे जैसी योजनाओं का बहुत सारे लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा है। जिन लोगों की थोड़ी-बहुत नाराजगी है भी तो उनमें से कई लोग मोदी को एकबार फिर से चांस देना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में पश्चिमी यूपी के मतदाताओं का आखिरी फैसला क्या होगा इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है?

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English summary
Will Modi be able to challenge the mahagathbandhan in West UP on his popularity alone?
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