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जेपी नड्डा में ऐसा क्या है कि मोदी-शाह उन पर इतना भरोसा करते हैं

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को एक साल का विस्तार मिला है. उनके नेतृत्व में पार्टी नौ राज्यों का विधानसभा और अगला लोकसभा चुनाव लड़ेगी. उनकी शख़्सियत में ऐसी क्या ख़ूबी है.

By BBC News हिन्दी
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जेपी नड्डा
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जेपी नड्डा

कुछ साल पहले एक वीडियो ख़ूब शेयर हुआ था जिसमें किसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ चलने की कोशिश कर रहे जगत प्रकाश नड्डा को अमित शाह ने बांह से खींचकर पीछे कर दिया था. वो अमित शाह जो नरेंद्र मोदी के बाद भारतीय जनता पार्टी के सबसे कद्दावर नेता माने जाते हैं और मोदी के सबसे क़रीबी भी.

जेपी नड्डा और एक साल के लिए पार्टी के अध्यक्ष बने रहेंगे, ये जानकारी मीडिया को मंगलवार को अमित शाह से ही मिली. उन्होंने इसे एक 'शुभ समाचार' बताते हुए कहा कि 'कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से जगत प्रकाश नड्डा के कार्यकाल को जून 2024 तक बढ़ाने को सहमति' दे दी है.

बातों के क्रम में अमित शाह ने कहाकि जेपी नड्डा ने मोदी जी के करिश्माई नेतृत्व में उनकी लोकप्रियता का और विस्तार किया, और बीसवीं सदी की सबसे बड़ी महामारी के दौरान भी संगठन के काम को जारी रखा और उसे सुदृढ़ किया.

राजनीतिक विश्लेषक राधिका रामाशेषन कहती हैं कि सत्ता की उम्मीदों और ज़रूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी निभाने में वो एक 'मिसाल' हैं और 'सीमाओं को पार न करने की क्षमता रखते हैं, वो सीमाएं भी जिन्हें खुले तौर पर न बताया गया हो.'

राधिका रामाशेषन कहती हैं कि दो-दो बेहद शक्तिशाली नेताओं के साथ काम करना आसान नहीं, लेकिन जेपी नड्डा ने अपने लिए पार्टी में जगह बना ली है.

पार्टी के दो दिनों की राष्ट्रीय कार्यसमीति की बैठक के दौरान जो कट-आउट्स लगे थे उसमें नरेंद्र मोदी के बाद सबसे ज़्यादा तादाद जिस शख़्स के पोस्टरों की थी वो थे जेपी नड्डा. बैठक की जगह में भीतर आने के गेट पर भी एक ओर मोदी का कट-आउट था तो दूसरी तरफ़ जेपी नड्डा का.

https://twitter.com/JPNadda/status/1615345130046906377

नड्डा का अध्यक्ष के रूप में परफ़ॉर्मेंस

हालांकि मोदी के रोड-शो में अकेले नरेंद्र मोदी ही दिखे. उनके साथ ना तो वाहन पर और ना ही उनके पीछे की गाड़ी में अमित शाह और नड्डा थे.

हालांकि एक सवाल बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान मीडिया के हलकों में चल रहा था.

वो सवाल था कि नड्डा के नेतृत्व में पार्टी उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में चुनाव हार गई. उनके जन्म स्थान बिहार में सरकार हाथ से निकल गई. क्या उन्हीं जेपी नड्डा को पार्टी का नेतृत्व फिर से सौंपा जाएगा जबकि इस साल नौ राज्यों और अगले साल आम चुनाव होने हैं?

जगत प्रकाश नड्डा का जन्म बिहार में हुआ. प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी के पटना कॉलेज से बीए किया. उनके पास वकालत की डिग्री भी है. ये डिग्री उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से हासिल की है.

अमित शाह ने नड्डा के कार्यकाल में किए गए साल भर के विस्तार की घोषणा करते हुए कहा कि 'उनके नेतृत्व में बिहार में पार्टी को सबसे अधिक स्ट्राइक रेट मिला. एनडीए को गिनें तो उनके नेतृत्व में गठबंधन को महाराष्ट्र चुनाव में जीत मिली, उत्तराखंड, मणिपुर और असम में भी सफलता हासिल हुई, बंगाल में चंद सीटों की कमी से पीछे रहना पड़ा, तमिलनाडु में पार्टी ताक़त बनकर उभर रही है और गोवा में पार्टी ने हैट्रिक मारी है.'

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नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा
ANI
नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा

नड्डा का उत्कर्ष

गुजरात का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, "हमें मोदी जी के करिश्माई नेतृत्व में 156 सीटें और 53 प्रतिशत मत हासिल हुए और जेपी नड्डा ने मोदी जी की लोकप्रियता के आधार का और भी अधिक विस्तार किया."

राधिका रामाशेषन कहती हैं, "नरेंद्र मोदी प्रचारक भी रहे हैं और पार्टी प्रभारी भी. उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि एक बेहद ताक़तवर सरकार कहीं पार्टी को सरकार का पिछलग्गू न बना दे. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी के रहने का कारण ही समाप्त हो जाएगा.'

जेपी नड्डा ने लंबा समय बिहार में बिताया है, लेकिन उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हिमाचल प्रदेश से हुई. 1990 के दशक में जब नरेंद्र मोदी हिमाचल के प्रभारी थे तब से मोदी के साथ उनकी जान-पहचान रही है.

2014 का चुनाव राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में लड़ा गया. इसमें बीजेपी की सफलता के बाद मोदी ने धीरे-धीरे पार्टी पर अपनी पकड़ मज़बूत की.

उनके नेतृत्व में पार्टी ने पहले अमित शाह को अध्यक्ष चुना. वो दो बार पार्टी के अध्यक्ष रहे जिसके बाद जनवरी 2020 में पार्टी की कमान जेपी नड्डा को सौंपी गई. इससे पहले कुछ दिनों तक उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका भी निभाई थी.

पार्टी का कहना है कि महामारी की वजह से पार्टी में परंपरा के अनुसार, बूथ लेवल से लेकर ऊपर के स्तरों तक चुनाव का काम संपन्न नहीं हो पाया है जिसके लिए नड्डा की ज़िम्मेदारी को कुछ और समय के लिए बढ़ा दिया गया है.

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https://www.youtube.com/watch?v=KlCqOJorbUY

जेपी नड्डा की चुनौतियां

कार्यकारिणी के दौरान जेपी नड्डा के नाम का प्रस्ताव रक्षा मंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने रखा जिसका सभी ने अनुमोदन किया.

बिहार राज्य की तरफ़ से जूनियर तैराकी प्रतियोगिता में शामिल हो चुके जेपी नड्डा ने टेकनोलॉजी के इस्तेमाल में भी सहजता हासिल की है और कोरोना महामारी के दौरान वो इसके ज़रिए लगातार कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क में रहे. इसमें उन्हें इसलिए भी आसानी हुई क्योंकि वो छात्र जीवन से लगातार नेताओं के संपर्क में रहे थे.

हालांकि, हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लगातार तीन बार सदस्य रहे जेपी नड्डा के लिए पार्टी में दो मज़बूत लोगों के साथ काम करना इतना आसान नहीं रहा है. उनके सामने इस तरह के मौक़े भी आए हैं जब उन्हें अपने गृह राज्य का अध्यक्ष नियुक्त करना था या फिर गुजरात के मामले की निगरानी करनी थी.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों गुजरात से ताल्लुक़ रखते हैं जबकि हिमाचल में नियुक्ति को लेकर ज़ाहिर है नड्डा की अपनी दिलचस्पी थी.

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https://www.youtube.com/watch?v=NN4tJAIzVKA

नड्डा की ख़ासियत क्या है

अपना नाम ज़ाहिर ना करने की शर्त पर बीजेपी पर पैनी नज़र रखनेवाले एक अन्य व्यक्ति ने कहा, "दोनों शीर्ष के लोगों को वो सूट करते हैं. दोनों किसी और के साथ किसी तरह का चांस नहीं लेना चाहते हैं, वो एक ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जो उन्हें चैलेंज न करे."

कुछ जानकारों की राय है कि उन्होंने अपने आप को बहुत हद तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे की तर्ज़ पर ढाल लिया है जो वाजपेयी, एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, प्रमोद महाजन जैसे ताक़तवर नेताओं के बीच काम करते हुए अपने आप को ग़ैर-ज़रूरी बातों में नहीं उलझाते थे.

मगर दूसरों का ये कहना है कि कुशाभाऊ से उलट नड्डा सोशल मीडिया पर ख़ूब ऐक्टिव रहते हैं और एक हद से अधिक पीछे रहने में भी यक़ीन नहीं रखते हैं. साथ ही बैठकों को लेकर सारी बातें वो बड़ी मेहनत से डॉक्यूमेंट करते हैं. उनका स्टाइल सबको साथ लेकर चलने का भी है जो उन्हें और अधिक आगे जाने में मदद करेगा.

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English summary
why narendra modi amit shah trust on JP Nadda
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