मनमोहन की तरह अब आडवाणी भी हुए मौन
नई दिल्ली ( विवेक शुक्ला) पूर्व प्रधानमंत्री मनोमहन सिंह जब तक प्रधानमंत्री रहे तब तक उनकी चुप्पी आलोचना का विषस बनी रही। लेकिन अब भाजपा के शिखर नेता लाल कृष्ण आडवाणी भी लगता है उनकी राह पर चल निकले हैं। दोनों में आजकल एक समानता दिख रही है। दोनों ने लगभग चुप्पी सी साध ली है।
दोनों अहम सवालों पर भी नहीं बोल रहे। उदाहरण के रूप में मनमोहन सिंह संसद में भी चुप रहते हैं। काले धन से लेकर दूसरे किसी अहम सवाल पर भी नहीं बोलते। राज्य सभा में बैठकर वे नोट लेते रहते हैं।
चुप हैं आडवाणी
उधऱ, लाल कृष्ण आ़डवाणी ने भी अपने को बिल्कुल-थलग सा कर लिया है। वे भी पार्टी के किसी फोरम या लोकसभा में बोलते हुए नजर नहीं आते। हालांकि इसकी वजह कोई बताने की स्थिति में नहीं हैं।
कश्मीर चुनावों में नहीं दिखे
इस बीच, आडवाणी जम्मू-कश्मीर विधान सभा चुनावों में भी कहीं नहीं दिखे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और शाहनवाज हुसैन एवं मुख्तार अब्बास नकवी कश्मीर में कैंपेन करते हुए नजर आए, पर आडवाणी जी का कहीं पता नहीं चला।
जानकारों का कहना है कि भाजपा को आडवाणी जी के अनबव का कश्मीर में लाभ लेना चाहिए था। मिशन 44 प्लस के नारे के साथ सरकार बनाने के लिए मैदान में उतरी भाजपा हर कदम फूंक -फूंक कर रख रही है।
कश्मीर में पहली बार कमल का फूल खिलाने को लालायित पार्टी ने पूरा जोर लगा रखा है। बहरहाल, मनमोहन और आडवाणी का चुप्पी खत्म होनी चाहिए। दोनों दिग्गज नेता हैं।