क्यों पंजाब तक ही सीमित नहीं है प्रशांत किशोर की गांधी परिवार से मुलाकात ? जानिए
नई दिल्ली, 14 जुलाई: पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस के अंदर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और वहां के पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच मचे घमासान के बीच कल प्रशांत किशोर ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की थी। शुरुआती संकेत साफ थे कि वह कैप्टन के सलाहकार हैं और सिद्धू को पार्टी में लेकर आए हैं, इसलिए दोनों के बीच के विवाद को मिटाने के लिए राहुल के दरबार में पहुंचे हैं। लेकिन, बाद में खबरें आईं कि उस बैठक में वर्चुल माध्यम से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूद थीं। इसके बाद चर्चा पंजाब से निकलकर 2024 के लोकसभा चुनावों तक पहुंचने लगी। इसकी माकूल वजहें हैं।
क्यों पंजाब तक सीमित नहीं है पीके की गांधी परिवार से मुलाकात ?
मंगलवार को चुनावी रणनीतिकार की कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात की खबर आई तो लगा कि वो पंजाब में कांग्रेस की अंदरूनी संकट को लेकर मिले हैं। क्योंकि, नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में लाने में वह बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। लेकिन, बाद में ऐसी खबरें आईं कि राहुल गांधी के आवास पर हुई उस मुलाकात में दोनों भाई-बहनों के अलावा पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी वर्चुअल माध्यम से हिस्सा ले रही थीं। माना जा रहा है कि पंजाब तो बहाना था, यह मुलाकात बहुत कुछ आगे की कहानी बयां कर रही है। मसलन, पार्टी के एक नेता ने कहा है कि 'वे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियत हैं। स्वाभाविक है कि यदि वे पार्टी हाई कमान से मिलते हैं तो बातचीत का दायरा राष्ट्रीय हो सकता है और सिर्फ एक राज्य तक नहीं।'
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गांधी परिवार से पहले पवार से हो चुकी है कई दफे मुलाकात
प्रशांत किशोर, जिन्हें राजनीतिक गलियारों में आजकल पीके के नाम से भी काफी जाना जाने लगा है, गांधी परिवार से पहले कम से कम तीन दफे कभी किसी बहाने और कभी किसी बहाने से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी मुलाकात कर चुके हैं। हालांकि, उनकी हर मुलाकात को अनौपचारिक बताने की कोशिश की गई है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में डीएमकी को अपनी चुनावी रणनीति से कामयाबी दिला चुके पीके के इन सियासी मुलाकातों को पंजाब से भी आगे समझने के वाजिब कारण मौजूद हैं। गौरतलब है कि 2014 में नरेंद्र मोदी की चुनावी रणनीति बनाने में भी उनकी भूमिका अहम मानी जाती है। इसलिए, यह चर्चा स्वाभाविक है कि हो ना हो, वे 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए अभी से एंटी-बीजेपी फ्रंट की कोशिशों पर काम कर रहे हैं।
2017 के यूपी चुनाव में फेल हो गई थी उनकी रणनीति
पीके अभी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के राजनीतिक सलाहकार हैं। सिद्धू ने भाजपा की राज्यसभा सदस्यता छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ा था तो उसके पीछे प्रशांत किशोर ही थे। इसलिए, पंजाब में कैप्टन और सिद्धू के बीच की तनातनी के मद्देनजर यह राजनीतिक मुलाकात पंजाब की राजनीति को सुलझाने की कवायद भी हो सकती है। लेकिन, यह उसकी एकमात्र वजह नहीं लग रही है। जरा 5 साल पुराने बैकग्राउंड में चलते हैं। 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान पीके राहुल गांधी के सिपहसालार बने हुए थे। 'यूपी के लड़के' वाले नारे और खाट सभा की आइडिया की जब चुनावों में खटिया खड़ी हो गई थी तो उन्होंने कांग्रेस पर ही इसका ठीकरा फोड़ने की कोशिश की थी। न्यूज 18 की एक पत्रकार के मुताबिक निजी मुलाकातों में उन्होंने कांग्रेस को जिद्दी और अहंकारी तक कहना शुरू कर दिया दिया था। वे यहां तक बोल गए कि भविष्य में उसके साथ काम करने का सवाल ही नहीं है। शायद इन वर्षों में उनकी राहुल से कहीं कोई औपचारिक मुलाकात भी नहीं हुई। अलबत्ता प्रियंका से किसी न किसी रूप में वे संपर्क में जरूर रहे।
सोनिया-राहुल और प्रियंका से पीके के मुलाकात के मायने ?
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं। पश्चिम बंगाल के चुनाव का नतीजा आया तो पीके ने सार्वजनिक तौर पर ऐलान किया कि अब वो अब अपने काम से संन्यास ले रहे हैं और भविष्य में चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में नहीं रहेंगे। लेकिन, कुछ हफ्ते भी नहीं गुजरे और उनका पवार के साथ मुलाकातों का दौर शुरू हो गया। हालांकि, बंगाल में शानदार जीत के बाद ममता बनर्जी ने 2024 के लिए मोदी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी दावेदारी की ओर इशारा करना जरूर शुरू किया है। लेकिन, बाकी विपक्षी दलों को राष्ट्रीय स्तर पर उनकी दावेदारी कितनी कामयाब रहेगी, इसको लेकर काफी शक है। शरद पवार भी कह चुके हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी-विरोधी किसी भी गठबंधन का बगैर कांग्रेस का कोई मतलब नहीं है। इसलिए, तीनों गांधी से एक साथ बैठकर पीके ने जो भी रणनीति बनाई हो, लेकिन उसके मायने अगला लोकसभा चुनाव ही ज्यादा लग रहा है।
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कांग्रेस की कमी दूर करेंगे प्रशांत किशोर ?
माना जा रहा है कि 16 जुलाई से कांग्रेस महासचिव उत्तर प्रदेश के लिए चुनाव अभियान का आगाज कर सकती हैं। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में वहां अपना हाथ जला चुके किशोर फिर से कांग्रेस के लिए अपना दिमाग खपाना चाहेंगे, इसकी संभावना की कोई वजह नहीं है। यही नहीं, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी फिर से 'यूपी के दो लड़के' वाले राजनीतिक जोखिम लेने को तैयार होंगे, इसका भी संकेत नहीं है। इसलिए सारी संभावनाएं और राजनीतिक हालात इसी बात की ओर इशारा करते हैं कि यह मुलाकात दूर की राजनीति के लिए है; और सूत्र भी बता रहे हैं कांग्रेस अब जीत के लिए छटपटा रही है, जिसे सिर्फ एक राह दिखाने वाले की जरूरत है; और शायद लगता है कि पीके उसमें फिट बैठते हैं।