पराली जलाकर हवा को दमघोंटू क्यों बना रहे किसान, इससे क्यों नहीं करते ये कमाई
बेंगलुरु। दिल्ली और एनसीआर की हवा लगातार खराब होती जा रही है । हालात ऐसे हो गए हैं कि दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी लगानी पड़ी। दिल्ली और एनसीआर में बढ़े स्मॉग की समस्या के लिए प्रतिबंध के बावजूद लगातार पंजाब और हरियाणा में धान की कटाई के बाद जलायी गयी पराली जिम्मेदार है। पराली जलाए जाने के कारण वायु गुणवत्ता बहुत ज्यादा बिगड़ गई है। इसके धुंए ने हवा को ऐसा दम घोंटू बना दिया है कि लोगों को का घर से निकलना मुहाल हो गया है। इस पर जमकर सियासी घमासान भी शुरु हो गया है। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) इंडिया के अनुसार, दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 412 पर पहुंच गया है जो गंभीर श्रेणी में आता है।
यह पहला मौका नही है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा जलाए जाने वाले पराली के धुंए ने दिल्ली और एनसीआर की हवा में जहर घोला है। हर वर्ष इसी समय पर पराली को जलाने से प्रदूषण फैलता है और दिल्ली सरकार अपने पड़ोसी राज्यों पर इसका आरोप मढ़कर अपना पल्ला झाड़ लेती है। वहीं हरियाणा और पंजाब की सरकारें भी इसके प्रति उदासीन बैठी रहती है। जबकि पराली के जलाने से उनके यहां भी हवा प्रदूषित हो रही है।
पहले की तरह इस पर इस बार भी जमकर सियासत भी हो रही है और किसान इसे अपनी मजबूरी बता रहे हैं। सच्चाई यह है कि कभी पंजाब और हरियाणा के खेतों तक सीमित यह चलन अब पूरे देश में है। अब हालात चिन्ताजनक हैं। इसके लिए कोई कड़ी रोक-टोक नहीं है। यहीं नहीं कई बार खेतों की आग सटे जंगल तक तबाह कर देती है। सालों से दिल्ली पंजाब, एनसीआर और करीबी राज्यों की खरीफ और रवी की फसल कटने के बाद लगाई जाने वाली आग से गैस चेम्बर में तब्दील जाती है। अब ऐसे हालात पूरे देश में दिखने लगे हैं।अब सवाल उठता है कि पराली को जलाने के अलावा किसानों के पास क्या विकल्प है और वह उन पर अमल करके न केवल वायु को प्रदूषित करने के अपराध से बच सकते है बल्कि अपनी भूमि को और उपजाऊ बनाने के साथ पराली से अच्छी कमाई भी कर सकते हैं। इतने फायदे के बावजूद पराली जलाना किसान की मजबूरी क्यों बना हुआ ?
मशीनों से धान की कटाई के कारण बढ़ी पराली की समस्या
दरअसल धान की फसल के कटने के बाद बाकी बचा हुआ हिस्सा पराली होता है कई जगहों पर इसे पइरा भी कहते हैं। इसको जलाने का नया रिवाज शुरू हो गया है। जिसकी जड़ें भूमि में होती हैं। धान की फसल पकने के बाद किसान फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होता है। दरअसल धान की फसल कटने के बाद किसान खेतों में गेंहू की बिजाई करते हैं जिस कारण उन्हें खेत खाली करने की जल्दी होती है। किसान दिसंबर तक ही गेंहू की बिजाई कर सकते हैं क्योंकि उसके बाद बिजाई हुई तो फसल ठीक नहीं होती। इसी वजह से किसान खेतों में पड़ी पराली को आग लगा देते हैं। दोनों फसलों को तैयार होने में 6-6 महीने का वक्त लगता है। यह समय धान की फसल कटने के बाद गेहूं की फसल के लिए खेत तैयार करने का होता है। पिछले कुछ वर्षो से खेतों में पराली ज्यादा होने की वजह यह भी है कि किसान अपना समय बचाने के लिए ज्यादातर मशीनों से धान की कटाई करवाते है। मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और और नीचे का हिस्सा भी पहले से ज्यादा बचता है। किसान अगर धान को मजदूरों से या स्वयं काटे तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है। बाद में किसान इस पराली को चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
भूमि की उवर्रकता बढ़ाने में पराली का ऐसे करें इस्तेमाल
पर्यावरण विशेषज्ञ के अनुसार पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है। इससे अगली फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2-3 फ़ीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं। उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया,गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है। खेतो में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बीजी गई अगली फसल को भी कम पानी देना पड़ेगा।
किसान की पहुंच से दूर है कीमती मशीन
किसान मजबूरी में खेतों में पराली जला रहे हैं। किसान कह रहें है कि सरकार बताए कि किसान पराली को कहां लेकर जाएं। दूसरी फसल के लिए खेत को खाली करना जरूरी है वरना गेंहू की बिजाई नहीं कर सकते। अगर किसान गेंहू की बिजाई नहीं कर सके तो उनके परिवारों के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। पराली को जमीन में दबाने वाली विदेशी मशीन भी है मगर ये मशीन आम किसान के लिए लेना बहुत मुश्किल है। सरकार इसका समाधान निकाले और हमारी मदद करे। सरकारी दावों के बाद भी पराली जलाने के विकल्प किसानों तक नहीं पहुंच रहे हैं। इसका असर दिल्ली-एनसीआर की हवा पर हो रहा है। पंजाब और हरियाणा सरकार का दावा है कि किसानों को पराली जलाने के स्थान पर उन्हें दूसरे तरीके से नष्ट करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है। पंजाब के कृषि विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार सरकार ने पिछले साल से अब तक 500 करोड़ रुपये पराली जलाने पर खर्च किए हैं। इसके तहत पिछले साल 28,000 मशीनों को लगाया गया था और इस साल यह आंकड़ा 17,000 का है। हालांकि, इन मशीनों की कीमत 55 हजार से बढ़कर 2.7 लाख तक पहुंच गई है, जो आम किसानों की पहुंच से दूर है।
इससे ओजोन परत फट रही
इसके धुंए से वायुमण्डल में प्रदूषण के साथ ब्लैक कार्बन भी बढ़ता है जो ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ाता है। बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।
पराली के धुंए से स्वास्थ पर असर
चिकित्सकों के अनुसार बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक है, जो सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।
एक माह में 22,137 घटनाएं दर्ज हुई
23 सितंबर से 31 अक्टूबर के बीच लुधियाना के रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब के गांवों में पराली जलाने की 22,137 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इसी समय अवधि में पिछले साल 17,646 केस दर्ज किए गए थे जिसमें 22% तक की वृद्धि दर्ज की गई है। पंजाब की 29 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में फसल से 22 मिलियन टन पराली इकट्ठा होता है। इतनी बड़ी संख्या में पराली जलाने का असर दिल्ली की हवा पर पड़ता है। हरियाणा में 13 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर अक्टूबर में 4,257 आग जलाने की घटना दर्ज की गई है।
जुर्माने का प्रावधान
एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 हजार रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्मानना किया जाएगा। इसके लिए जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी की तय की है। एनजीटी के अनुसार, यह फाइन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है।
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