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दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को फलता-फूलता क्यों देखना चाहती है भाजपा ?

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नई दिल्ली- आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा का चुनाव पांच साल में किए काम के दावों के आधार पर जीतना चाहती है। 6 जनवरी को चुनाव के ऐलान के कुछ मिनटों बाद ही अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री ने 'ये चुनाव काम पर होगा' लिखकर अपना इरादा जाहिर कर दिया था। पार्टी को यकीन है कि वह राष्ट्रीय या ध्रुवीकरण वाले मुद्दों पर बीजेपी से पंगा नहीं ले पाएगी। इसलिए, नागरिकता संशोधन कानून पर भले ही केजरीवाल के डिप्टी मनीष सिसोदिया ने विवाद को सियासी रंग देने की कोशिश की भी हो, लेकिन इस मामले में खुद केजरीवाल बहुत ही संभल कर चले हैं। जबकि, बीजेपी की रणनीति इसके ठीक उलट है। वह केजरीवाल सरकार के काम के दावों पर तो उसे घेरने की कोशिश कर ही रही है, उसे राष्ट्रवाद और ध्रुवीकरण करने वाले मुद्दों पर भी भरोसा है, जिसके लिए वह कांग्रेस के प्रदर्शन पर उम्मीद टिकाए बैठी है। दिल्ली में पिछले दो चुनावों की तरह पार्टी ने अगर इस बार भी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया तो फिर भाजपा की बल्ले-बल्ले तय है। लेकिन, अगर कांग्रेस ने 2015 वाला प्रदर्शन दोहराया तो फिर बीजेपी की सारी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है।

दिल्ली में भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती हैं केजरीवाल

दिल्ली में भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती हैं केजरीवाल

2015 के विधानसभा चुनाव की तरह 2020 के चुनाव में भी राजधानी में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अरविंद केजरीवाल हैं। पार्टी वह दिन आज भी नहीं भूली है, जब 2014 की मोदी लहर पर इस नेता ने कुछ महीनों के भीतर ही सियासी ब्रेक लगा दिया था। इनकी पार्टी ने न केवल अपना वोट शेयर 21% बढ़ा लिया था, बल्कि पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल की आंधी में भाजपा का वोट शेयर भी लोकसभा चुनाव के मुकाबले 15% गिर गया था। तब आम आदमी पार्टी को दिल्ली में 70 में से 67 सीटें दिलाने में कांग्रेस का अहम रोल रहा था, क्योंकि उसका वोट शेयर सबसे कम 10% के स्तर तक पहुंच गया था। लेकिन, 2015 के चुनाव के बाद दिल्ली में दो चुनाव हुए हैं। 2017 में एमसीडी का और 2019 में लोकसभा का। दोनों चुनावों में कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया और मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में सफल रही, जिसका सीधा असर केजरीवाल की पार्टी पर पड़ा।

कांग्रेस ने जब भी अच्छा किया तो एएपी को नुकसान

कांग्रेस ने जब भी अच्छा किया तो एएपी को नुकसान

2015 के ऐतिहासिक विजय में दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 54% वोट मिले थे। जबकि, बीजेपी को अबतक के सबसे कम 32% ही वोट मिल पाए थे। वहीं कांग्रेस ने सिर्फ 10% वोट लाकर अपना सबसे खराब प्रदर्शन दिखाया था। लेकिन, उसके बाद 2017 के एमसीडी चुनाव में कांग्रेस की वजह से केजरीवाल की पार्टी के मंसूबों पर पहली बार पलीता लग गया। दो वर्षों में ही कांग्रेस अपने वोट शेयर को 10% से बढ़ाकर 21% तक ले गई और बीजेपी का वोट शेयर सिर्फ 3% बढ़कर 36% तक ही पहुंचा कि वह तीनों एमसीडी पर कब्जा कर बैठी। लेकिन, कांग्रेस के वोट में 11% की बढ़त ने आम आदमी पार्टी के 2015 के 54% वोट शेयर को घटाकर 26% तक गिरा दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो आम आदमी पार्टी दिल्ली की सियासी सीन में तीसरे पायदान पर पहुंच गई। कांग्रेस ने 22% वोट शेयर के साथ अपनी दावेदारी दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी के मुकाबले बढ़ा ली। लेकिन, उसके इस प्रदर्शन के बीच भाजपा का वोट शेयर न सिर्फ बढ़कर 57% तक पहुंच गया, बल्कि उसने दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें बहुत ज्यादा अंतर से जीत ली।

पिछले दो चुनावों में केजरीवाल की पार्टी पिट चुकी है

पिछले दो चुनावों में केजरीवाल की पार्टी पिट चुकी है

आंकड़ों से जाहिर होता है कि दावे जितने भी किए जाएं, लेकिन मुख्यमंत्री दिल्ली के चुनाव को हल्के में नहीं ले सकते। 2015 से 2017 के बीच सिर्फ दो वर्षों में उनकी पार्टी का वोट शेयर घटकर 26% तक पहुंच चुका है और उसके और दो वर्षों के बाद (2019) वह 18.1% तक पहुंच चुका है। जबकि, 2014 की मोदी लहर में भी उसने 33% वोट प्राप्त किए थे, जो कि 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिले वोट से 4% ज्यादा था। 2013 के चुनाव के बाद से कांग्रेस का सारा प्रदर्शन बताता है कि जब-जब उसने अच्छा किया आम आदमी पार्टी को नुकसान हुआ है और अगर कांग्रेस चुनाव में ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकी है तो केजरीवाल की पार्टी को भारी फायदा हुआ है। इसी का नतीजा है 2019 में भाजपा 70 में से जिन 5 विधासभा क्षेत्रों में पीछे रही, वहां आम आदमी पार्टी नहीं कांग्रेस के प्रत्याशियों ने बढ़त बनाई। कांग्रेस का यही ट्रेंड केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी हो सकती है, जो सीएए, एनपीआर और एनआरसी जैसे मुद्दों पर सक्रिय तौर पर भाजपा के मुकाबले खड़ी है। जबकि, अरविंद केजरीवाल ने इन मुद्दों को ज्यादा तूल देने से परहेज किया है। यही नहीं आर्टिकल-370 पर भी मोदी सरकार के साथ खड़े होने वाली विपक्षी पार्टियों में उन्हीं का दल सबसे आगे था, जबकि कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए मायने रखने वाले हर मुद्दे पर मोदी सरकार से सीधे भिड़ने की कोशिश की है।

तो इसलिए कांग्रेस से अच्छा प्रदर्शन चाहती है बीजेपी

तो इसलिए कांग्रेस से अच्छा प्रदर्शन चाहती है बीजेपी

2008 से दिल्ली में जितने भी चुनाव हुए हैं उसमें बीजेपी का सबसे बुरा प्रदर्शन 2015 में ही हुआ था, लेकिन तब भी पार्टी 32% वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। ऐसे में अगर कांग्रेस ने 2019 का अपना प्रदर्शन दोहराया और चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया तो गैर-भाजपा वोटों के बंटने का सीधा फायदा बीजेपी को मिलना तय है। माना जाता है कि लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जातियों और मुसलमानों का वोट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बंट गया। खासकर मुसलमानों के लिए यह माना जाता है कि उनका बहुत ही कम वोट ही बीजेपी के खाते में जाता है। 2015 में दिल्ली की 10 सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों का जीत का अंतर डाले गए मतों का महज 10% था। करीब 22 और सीटों पर यह अंतर 20% से कम था। ऐसे में अगर इन तमाम सीटों पर 2015 के मुकाबले मतदाताओं का थोड़ा भी झुकाव कांग्रेस के पक्ष में हुआ तो केजरीवाल की वापसी का सपना चकनाचूर हो सकता है और इसलिए बीजेपी इन तमाम सीटों पर कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी है।

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English summary
The result of the Delhi elections rests on the performance of the Congress, if the party is successful in triangular the contest then the BJP will get the benefit
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