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जब लोगों ने अपने गांव का नाम रख लिया पीओके

उत्तर प्रदेश में कानपुर के पास ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के न मिलने पर उठाया ये क़दम.

By रोहित घोष - बीबीसी हिंदी के लिए
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मूलभूत सुविधाओं से वंचित एक गाँव के लोगों ने प्रशासन और सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए अपने गाँव का नाम पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) रख दिया है.

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बात कानपुर मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर सिरम्मनपुर गाँव की है. करीब 600 की आबादी वाले इस गाँव के लोग ज़्यादातर मझोले किसान हैं और मवेशी भी पालते हैं.

गाँव के निवासी विजय मिश्रा कहते हैं, "बिजली विभाग हर दो-तीन साल में एक बार कुछ कंक्रीट के खम्बे लगा देता है पर बिजली के तार नहीं लगे हैं. पानी के लिए पूरे गांव को सिर्फ दो हैंड पंप का सहारा है. किसी भी घर में शौचालय नहीं है."

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उन्होंने कहा. "इस गाँव के कई आदमी शादी के इंतज़ार में बूढ़े हो गए हैं. गाँव की हालत देख कर लोग शादी से मना कर देते हैं."

एक भी शौचालय नहीं

सिरम्मनपुर के लोगों में गुस्सा इसलिए ज़्यादा है क्योंकि बगल के दो गाँव-दौलतपुर और ईंटारोड़ा में विकास हुआ है. वो कहते हैं, "गाँव का नाम पीओके रखना विद्रोह का एक तरीका है."

उनको उम्मीद थी कि नयी सरकार शायद गाँव में कुछ विकास के काम शुरू करेगी. पर जब ठोस कदम नहीं उठाये गए तो उन्होंने गाँव में तमाम जगह बैनर लगा दिए जिस पर पीओके लिखा हुआ है.

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उन्होंने बताया, "मोदी सरकार का शौचालय के ऊपर इतना ज़ोर है पर गाँव में एक शौचालय नहीं है."

गाँव की एक महिला सरोज देवी ने कहा, "चाहे बुज़ुर्ग हों या फ़िर विकलांग या लड़कियां या औरतें, सभी को शौच के लिए दूर जाना पड़ता है."

कैसे पड़ा नाम- पीओके

गाँव के किनारे एक बहुत बड़ा तालाब था, जो सूख चुका है. गाँव वाले अब उस सूखे तालाब में गाय और भैंस बांधते हैं.

गाँव में मवेशियों की संख्या करीब 2000 की है. उन्हें पानी पिलाने के लिए उनको सुबह-शाम पांच किलोमीटर दूर बहती ऋंद नदी तक ले जाना पड़ता है.

सिरम्मनपुर के आसपास कई किलोमीटर तक न ही कोई स्कूल है और न अस्पताल.

55 साल के प्रेमचंद की शादी नहीं हुई है. वे मज़ाक में कहते हैं, "अब मैं रिटायर हो चुका हूँ. जब गाँव की ही हालत इतनी खराब है तो कौन चाहेगा की उसकी लड़की यहाँ आकर रहे."

सिरम्मनपुर का हर व्यक्ति विजय मिश्रा का साथ दे रहा है. उनको कोई डर नहीं है कि गाँव का नाम पीओके रखने के कारण प्रशासन उन्हें देशद्रोही करार देकर उन्हें जेल भेज सकता है.

'सभी गांवों की हालत एक जैसी'

वो कहते हैं, "अपने गाँव के विकास के लिए मैं जेल भी जाने के लिए तैयार हूँ."

प्रशासन को जब मामले जानकारी हुई तो लेखपाल गाँव गए और लोगों से समस्याएं पूछीं और लौट गए.

गाँव के प्रधान अनिल पाल कहते हैं, "ये बात ग़लत है कि सिरम्मनपुर गांव अन्य गांवों के मुक़ाबले पिछड़ा है. बाकी सब गांव भी उतने ही पिछड़े हैं और वहां भी विकास की ज़रूरत है."

पाल तीन गांव के प्रधान हैं - दौलतपुर, ईंटारोड़ा और सिरम्मनपुर. वो इस बात से इंकार करते हैं की सिरम्मनपुर में ज़्यादा दिक्कतें हैं.

वोट की राजनति?

वो कहते हैं, "दिक्कत्तें हर गांव में हैं और धीरे-धीरे दूर किया जायेगा. उस गांव में एक हैंड पंप एक दो रोज़ में ठीक करवा दूंगा."

पाल के मुताबिक, "स्वच्छ भारत मिशन या हर घर में शौचालय तो अभी नयी बात है. वो भी धीरे धीरे लागू करेंगे."

पर गाँव के लोगों का कहना है कि प्रधान उनको वोट ना देने का बदला निकाल रहे हैं.

कानपुर के ज़िलाधिकारी सुरेंद्र सिंह ने बीबीसी को बताया कि मामला उनके संज्ञान में आया है और वो तथ्यों की जाँच करा रहे हैं.

BBC Hindi
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English summary
When people took the name of their village Pok
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