क्या मथुरा में धार्मिक स्थल को बदलना है इतना आसान? 1991 में बना ये कानून लगाता है इसपर रोक
नई दिल्ली, दिसंबर 07। उत्तर प्रदेश में चुनावी हवा के बीच सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश पिछले कुछ दिनों से की जा रही है। दरअसल, कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने 6 दिसंबर 2021 के लिए ऐलान किया था कि भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पर बनी शाही ईदगाह मस्जिद में कृष्ण जी की मूर्त को स्थापिता किया जाएगा और उनका जलाभिषेक होगा, जिसके बाद ना सिर्फ मथुरा के अंदर बल्कि पूरे यूपी के अंदर माहौल तनावग्रस्त हो गया था। मथुरा को तो कुछ दिनों के लिए छावनी में तब्दील कर दिया था। हर आने-जाने वाले श्रद्धालु पर विशेष नजर रखी जा रही थी। साथ ही प्रशासन ने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों से बात कर स्थिति को कंट्रोल में रखा था, लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अयोध्या में बाबरी विध्वंस से पहले जो माहौल बनाया गया था, उसी माहौल को मथुरा में बनाने की कोशिश की जा रही है? क्या कानूनी रूप से ये संभव है कि किसी मस्जिद की जगह मंदिर का निर्माण किया जा सके?
अयोध्या विवाद सुलझने के बाद मथुरा को लेकर दायर हुआ था केस
आपको बता दें कि 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने जब अयोध्या विवाद को सुलझाते हुए वहां की विवादित भूमि का मालिकाना हक हिंदुओं को सौंपा था तो उसके बाद ही हिंदू संगठनों ने मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर मालिकाना हक होने का केस फाइल किया था। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में चुनावी वक्त होने की वजह से मथुरा के इस मसले को उछाला जा रहा है। भाजपा के कई बड़े नेताओं की तरफ से इस मसले पर बयानबाजियां भी हो रही हैं। ऐसे में मुस्लिम पक्ष के लोगों में अभी से एक डर का माहौल ये है कि क्या कानूनी रूप से कोई ऐसा तरीका है, जिससे मथुरा में मस्जिद की जगह मंदिर बन सकता है?
क्या है पूजा स्थल कानून 1991
आइए ऐसे में हम आपको बताते हैं कि ऐसा संभव है कि नहीं। वैसे तो ये मामला अभी कोर्ट में लंबित है, लेकिन एक कानून है, जिसके अंतर्गत किसी धार्मिक स्थल को परिवर्तित नहीं किया जा सकता फिर चाहे मामला कोर्ट में ही क्यों ना हो। उस कानून का नाम है 'पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, जिसके अंतर्गत प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 से पहले जो धार्मिक स्थल जिस भी धर्म का था वो उसी का रहेगा, उसे बदला नहीं जाएगा और अगर कोई इस कानून का उल्लंघन करता है तो उसे 1-3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
कांग्रेस की सरकार में लाया गया था ये कानून
आपको बता दें कि 18 सितंबर 1991 को कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में जिस वक्त ये कानून लाया गया था, उस समय देश में अयोध्या विवाद चरम पर था और कोर्ट में वो मामला चल रहा था, इसलिए उस विवाद को इस कानून से बाहर रखा गया था। 1991 में मंदिर आंदोलन चरम पर था, इसलिए आने वाले समय में मंदिर-मस्जिद विवाद को रोकने के लिए ये कानून लाया गया था।
भाजपा ने किया था कानून का विरोध
जानकारी के मुताबिक, 1991 में जब इस कानून को संसद के पटल पर रखा गया था तो उस वक्त भाजपा ने इस कानून का विरोध किया था। भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली और उमा भारती ने उस कानून को जेपीसी के पास भेजने की मांग की थी। हालांकि ये कानून बाद में पास हो गया था। भाजपा का कहना था कि ये कानून इस देश में आक्रांताओं के द्वारा धार्मिक उन्माद के बाद स्थापित किए गए धार्मिक स्थलों को मंजूरी प्रदान करता है।
क्यों जरूरी था ये कानून?
आपको बता दें कि जब ये कानून लाया गया था तो उस वक्त अयोध्या विवाद अपने चरम पर था। देश में अयोध्या की तरह ही अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर भी ये दावेदारी की जा रही थी कि वहां मंदिर का निर्माण हो। जानकारी के मुताबिक, देशभर में लगभग 100 से अधिक ऐसे स्थल हैं, जहां अन्य धार्मिक स्थलों पर मंदिर की दावेदारी की जाती है, अगर ये कानून नहीं होता तो विवाद गहराता और देश में धार्मिक उन्माद फैल सकता था।