रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत पर क्या असर होगा?
जानकार मानते हैं कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन अगर यूक्रेन पर हमले का आदेश देते हैं तो उन्हें पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ चीन के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी. ऐसे में रूस और चीन की दोस्ती और गहरी हो सकती है और भारत अछूता नहीं रह सकेगा.
जर्मनी के नेवी प्रमुख काई आखन सोनबर को पिछले हफ़्ते शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर डिफ़ेंस इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस में दिए गए बयान के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा था.
लेकिन जर्मन नेवी प्रमुख ने जो बातें कही थीं, उनमें यह बात भी थी कि रूस एक अहम देश है और चीन के ख़िलाफ़ जर्मनी के साथ भारत के लिए भी ज़रूरी है. जर्मन नेवी प्रमुख के बयान को अब भारत के संदर्भ में रूस की अहमियत को यूक्रेन संकट के आईने में देखा जा रहा है.
कहा जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर कभी भी हमले का आदेश दे सकते हैं. पुतिन को अमेरिका, ब्रिटेन और ईयू के देशों से लगातार चेतावनी मिल रही है. लेकिन पुतिन नहीं मानते हैं और हमले का आदेश दे देते हैं तो इससे केवल यूरोप ही प्रभावित नहीं होगा बल्कि भारत पर भी असर पड़ेगा.
अमेरिका ने यूक्रेन से अपने राजनयिकों के परिवारों को वापस आने के लिए कहा है. ब्रिटेन का कहना है कि पुतिन अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें भारी क़ीमत चुकानी होगी. ईयू के देश भी इस तरह की चेतावनी दे रहे हैं.
इन सबके बीच जर्मन नेवी प्रमुख का यह कहना कि पश्चिम को चीन को काबू में रखने के लिए रूस की ज़रूरत पड़ेगी; यह मायने रखता है. विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम के देश यूक्रेन पर हमले की स्थिति में रूस को अलग-थलग करने के लिए कई बड़े प्रतिबंध लगाएंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इसके संकेत दे भी दिए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे में रूस को चीन की ज़रूरत पड़ेगी और चीन पश्चिमी प्रतिबंधों का असर कम करने के लिए पड़ोसी रूस का साथ दे सकता है. चीन आधिकारिक रूप से अब तक यही कह रहा है कि मामले को बातचीत के ज़रिए सुलाझाना चाहिए. लेकिन वह इस बात का भी समर्थन कर रहा है कि यूक्रेन को नेटो का सदस्य नहीं बनना चाहिए.
माना जा रहा है कि पश्चिम के देश रूस पर प्रतिबंध लगाएंगे तो इसकी भरपाई चीन ही कर सकता है और ऐसी स्थिति में चीन-रूस की क़रीबी और बढ़ेगी. ऐसे में भारत के साथ रूस की दोस्ती पर भी असर पड़ने की आशंका है.
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भारत की चिंता
स्वीडिश थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की क़रीब 60 फ़ीसदी सैन्य आपूर्ति रूस से होती है और यह एक बेहद अहम पक्ष है. जब पूर्वी लद्दाख में चीन और भारत के सैनिक अब भी आमने-सामने हैं, ऐसे में यूक्रेन के मामले में भारत, रूस को नाराज़ करने का जोख़िम नहीं ले सकता है.
दूसरी तरफ़ यूरोप और अमेरिका भी भारत के अहम साझेदार हैं. भारत-चीन सीमा पर निगरानी रखने में भारतीय सेना को अमेरिकी पट्रोल एयरक्राफ़्ट से मदद मिलती है. सैनिकों के लिए विंटर क्लोथिंग भारत अमेरिका और यूरोप से ख़रीदता है. ऐसे में भारत न तो रूस को छोड़ सकता है और न ही पश्चिम को. यूक्रेन-रूस संकट भारत के लिए भी किसी संकट से कम नहीं है.
यूक्रेन संकट के बीच अगर रूस पर चीन दबाव बनाए कि वो भारत की सैन्य सप्लाई रोके तब रूस क्या करेगा?
दिल्ली स्थिति जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता है कि रूस यूक्रेन पर हमला करेगा. पुतिन के लिए हमला करना इतना आसान नहीं है. रूस की अर्थव्यवस्था यूरोप में गैस सप्लाई पर बहुत हद तक निर्भर है. अगर हमला करता है तो चीन के साथ रूस की क़रीबी बढ़ेगी और यह भारत के लिए ठीक नहीं होगा. रूस सैन्य आपूर्ति तो नहीं रोकेगा लेकिन इंडो-पैसिफ़िक में अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी प्रभावित होगी.''
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राजन कुमार कहते हैं, ''2014 में जब पुतिन ने क्रीमिया को रूस में मिला लिया था तब भारत की प्रतिक्रिया थी- रूस का यूक्रेन और क्रीमिया में तार्किक हित जुड़ा है. भारत ने 'एनेक्सेशन' शब्द का भी इस्तेमाल नहीं किया था. इस बार भी भारत का रुख़ यही रहेगा कि दोनों शक्तियों के टकराव के बीच में नहीं आएगा. लेकिन कई बार बिना आए भी आप प्रभावित हो जाते हैं. 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट और भारत पर चीन का हमला, दोनों एक साथ हुए थे. सोवियत यूनियन को चीन के समर्थन की ज़रूरत थी. ऐसे में रूस ने भारत को मुश्किल वक़्त में समर्थन नहीं दिया था.''
कहा जा रहा है कि अभी एक बार फिर से रूस को चीन की ज़रूरत होगी और ऐसे में रूस अपना हित देखते हुए भारत के साथ संबंधों की परवाह नहीं करेगा. राजन कुमार कहते हैं, ''भारत के लिए मुश्किल वक़्त है. जिस तरह से अमेरिका एक साथ रूस और चीन को मैनेज नहीं कर सकता है, उसी तरह से भारत एक साथ रूस और अमेरिका दोनों को हर परिस्थिति में नहीं साध सकता है.''
राजन कुमार कहते हैं, ''जर्मन नेवी प्रमुख को जिस बात के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा, रूस को लेकर यूरोप में यही भावना है कि पुतिन से अच्छे संबंध होने चाहिए. लेकिन अमेरिका यूरोप में पुतिन का डर बनाकर रखना चाहता है ताकि नेटो की भूमिका प्रासंगिक बनी रहे.''
रूस की तरफ़ झुका भारत
खाड़ी के युद्ध के बाद अमेरिका का सैन्य हस्तक्षेप दुनिया भर में बढ़ा. इनमें बोस्निया और कोसोवो में 1990 के दशक के सैन्य हस्तक्षेप भी शामिल हैं. 1999 में सर्बिया की राजधानी बेलग्रेड में नेटो ने बमबारी की थी. इसी आधार पर रूस कहता रहा है कि नेटो गठबंधन केवल अपनी सुरक्षा के लिए नहीं है. बेलग्रेड में जब नेटो ने बमबारी की थी तो चीनी दूतावास भी प्रभावित हुआ था और चीन इसे नहीं भूला होगा.
9/11 के आतंकवादी हमले के बाद नेटो ने अनुच्छेद पाँच का इस्तेमाल करते हुए अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया था. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका ने पिछले साल अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया और उसके समर्थन वाली सरकार के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी भी देश छोड़कर भाग गए. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान से पीछे हटने के बाद एक संदेश गया कि अमेरिकी ऑर्डर वाली दुनिया कमज़ोर पड़ रही है. अभी पुतिन ने कज़ाख़स्तान में सफलता पूर्वक सैन्य हस्तक्षेप को अंजाम दिया और अब यूक्रेन पर आशंका गहरा रही है.
नवंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन क्राइमिया में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को लेकर एक प्रस्ताव लाया था और भारत ने इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट किया था. अमेरिका इस प्रस्ताव के समर्थन में था. ज़ाहिर है कि यहाँ भी भारत ने अमेरिका के बदले रूस का साथ चुना था.
मार्च, 2014 में जब रूस ने क्राइमिया को अपने में मिला लिया तब भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिव शंकर मेनन ने कहा था, ''रूस का बिल्कुल न्यायसंगत हित क्राइमिया में है.'' यानी भारत ने क्राइमिया के मिलाने का भी समर्थन किया जबकि अमेरिका समेत यूरोप के देश इसे आज भी अवैध मानते हैं.
तब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत के समर्थन के लिए शुक्रिया अदा करते हुए कहा था, ''मैं उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने क्राइमिया में रूसी कार्रवाई का समर्थन किया. चीन का मैं शुक्रगुज़ार हूँ, जहाँ के नेतृत्व ने क्राइमिया में रूस के क़दम का समर्थन किया. हम भारत के संयम और निष्पक्षता की बहुत सराहना करते हैं."
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भारत कैसे होगा प्रभावित
रूस और यूक्रेन के बीच कोई सैन्य टकराव हुआ तो रूस पर पश्चिम के देश प्रतिबंध लगाएंगे. ऐसे में रूस यूरोप में गैस की आपूर्ति में कटौती कर सकता है. इसका असल तेल की क़ीमत पर पडे़गा. यूक्रेन का डोनबास इलाक़ा, जो रूस और यूक्रेन बीच विवाद में सबसे अहम है और यहाँ का सबसे बड़ा रिज़र्व है. ऐसी स्थिति में रूस चीन के साथ तेल और गैस बेचने की बात करेगा. वैश्विक ऊर्जा बाज़ार प्रभावित होगा और तेल की क़ीमत बढ़ सकती है. ऐसे में भारत पर भी इसका असर पड़ेगा.
बीजिंग में चार फ़रवरी से विंटर ओलंपिक शुरू हो रहा है और इसके उद्घाटन समारोह में रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी जाने वाले हैं. इस दौरे में पुतिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलेंगे. दिसंबर में फ़ोन पर पुतिन और शी जिनपिंग के बीच बात हुई थी और चीनी नेता ने पुतिन की उस मांग का समर्थन किया था कि यूक्रेन को नेटो में शामिल नहीं होना चाहिए.
अभी पाकिस्तान भी रूस के साथ द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी ख़त्म होने के बाद से ही पाकिस्तान रूस के साथ द्विपक्षीय साझेदारी बढ़ाने में लगा है. यूक्रेन संकट के कारण भारत और रूस के रिश्ते प्रभावित होते हैं तो पाकिस्तान के लिए भी यह मौक़ा माना जा रहा है. हाल ही में पाकिस्तानी पीएम ने फ़ोन कर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को पाकिस्तान आने का न्योता दिया है. पुतिन अगर पाकिस्तान जाते हैं तो यह उनका पहला दौरा होगा.
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