राजद ने माले को क्यों दी आरा सीट? क्या है डील की असल वजह?
नई दिल्ली। राजनीति में कोई यूं ही मेहरबान नहीं होता। मेहरबानी की आड़ में सौदेबाजी होती है। लालू यादव जैसे मजबूत नेता की पार्टी ने आखिर आरा लोकसभा सीट भाकपा माले को क्यों दी ? इस राजनीति त्याग की वजह क्या है ? दरअसल राजद ने दूर की कौड़ी खेली है।
पोलिटिकल डील के लिए होमवर्क
रामकृपाल यादव से मीसा भारती की हार को राजद भूल नहीं पाया है। उसे ये हार हरदम चुभती है। अपनों का दिया दर्द भूलाये नहीं भूलता। राजद को बाजी पलटने की बेचैनी थी। पाटलिपुत्र सीट पर हार की गहन समीक्षा की गयी। उन कारणों का पता लगाया गया जो मीसा भारती की हार का कारण बने थे। जो इनपुट मिला उस पर होम वर्क शुरू हुआ। 2014 में पाटलिपुत्र सीट पर रामकृपाल यादव को 3 लाख 82 हजार 262 वोट मिले थे जब कि मीसा भारती 3 लाख 42 हजार 940 वोट। दूसरी तरफ जदयू के रंजन यादव को 97 हजार 228 वोट, भाकपा माले के रामेश्वर प्रसाद को 51 हजार 623 वोट मिले थे। राम कृपाल यादव ने मीसा भारती को करीब 41 हजार वोटों से हराया था। मीसा भारती की हार का अंतर माले के वोट से कम था। पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में भाकपा माले का बहुत प्रभाव है। अगर पिछले चुनाव में माले के वोट राजद को मिले होते तो मीसा भारती की चुनावी नैया पार लग जाती। इसके बाद माले को साधने की कोशिश शुरू हुई।
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इस हाथ दें उस हाथ लें
राजद ने भाकपा माले के मजबूत जनाधार वाले इलाकों की पहचान की। उसकी नजर आरा लोकसभा सीट पर गयी। 1989 में भाकपा माले ने इस सीट पर लोकसभा का चुनाव जीत कर तहलका मचा दिया था। रामेश्वर प्रसाद के रूप में पहली बार कोई धुर वामपंथी नेता भारत की संसद में पहुंचा था। 2014 में आरा लोकसभा सीट पर माले उम्मीदवार राजू यादव को 98 हजार 805 वोट मिले थे। राजद के उम्मीदवार भगवान सिंह कुशवाहा को 2 लाख 55 हजार 204 वोट मिले थे। जब कि जीतने वाले भाजपा प्रत्याशी राज कुमार सिंह को 3 लाख 91 हजार 74 वोट मिले थे। अगर राजद और माले के वोट को मिला दिया जाए तो आंकड़ा विजयी उम्मीदवार के करीब पहुंच जाता है। इस गुणा भाग के आधार पर राजद ने माले से लेन देन करना तय किया। फिर राजद ने पाटलिपुत्र सीट पर समर्थन के बदले माले को आरा सीट देने का ऑफर दिया। माले को भी इस प्रस्ताव में दम नजर आया।
यूं बनी बिगड़ी बात
शुरू में भाकपा माले, माकपा और भाकपा भी महागठबंधन का हिस्सा बनने वाले थे। पटना में जब माले की रैली हुई थी तो इसमें राजद के नेता भी गये थे। डील के मुताबिक सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन इस बीच उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी के आने से महागठबंधन में सीट बंटवारे का संतुलन गड़बड़ा गया। दूरगामी फायदे को देख कर राजद ने कुशवाहा और मुकेश सहनी को तवज्जो दी। वामपंथियों को महागठबंधन में शामिल नहीं किया गया। लेकिन राजद को मीसा भारती के लिए पाटलिपुत्र सीट की चिंता थी। उसने आउट ऑफ फ्रेम जा कर माले को फिर पुरानी डील की याद दिलायी। माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्या राजद के रवेये से नाराज थे। लेकिन जब ठंडे दिमाग से राजद के प्रस्ताव पर विचार किया तो उन्हें यह फायदे का सौदा लगा। माले को लगा कि कम से एक सीट पर वो जीतने की स्थिति में आ सकती है। डील रिवाइज हुई। राजद ने घोषणा कर दी कि वह अपने कोटे की एक सीट भाकपा माले को देगा। ऊपरी तौर पर दिखाने के लिए राजद ने कहा कि गरीबों का हमदर्द होने की वजह से माले को ये सीट दी गयी है। आरा सीट माले को मिल गयी। इसके बदले माले ने घोषणा की कि वह छह से आठ सीटों पर चुनाव लड़ेगा लेकिन एक सीट पर वह राजद को समर्थन देगा। इस तरह पाटलिपुत्र सीट पर राजद को माले की मदद मिल गयी। अब माना जा रहा है कि 2019 के चुनाव में मीसा भारती केन्द्रीय मंत्री रामकृपाल यादव को कांटे की टक्कर देंगी।