क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'बैठने के अधिकार' की पूरी लड़ाई क्या है

केरल में सिल्क की साड़ियों के बड़े-बड़े शोरूम और उनमें ख़ूबसूरत साड़ियां पहने सेल्सवुमेन, एक आम नज़ारा है. पर वहां ख़रीदारी करने जाने वालों को शायद ये अंदाज़ा ना हो कि इन सेल्सवुमेन को 10-11 घंटे लंबे अपने काम के दिन के दौरान कुछ देर बैठने का भी अधिकार नहीं है.

यहां तक कि अगर काम के बीच थकान होने पर दीवार से पीठ टिकाकर खड़ी हो जाएं तो दुकान के मालिक जुर्माना लगा देते हैं.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
साड़ी की दुकान
BBC
साड़ी की दुकान

केरल में सिल्क की साड़ियों के बड़े-बड़े शोरूम और उनमें ख़ूबसूरत साड़ियां पहने सेल्सवुमेन, एक आम नज़ारा है. पर वहां ख़रीदारी करने जाने वालों को शायद ये अंदाज़ा ना हो कि इन सेल्सवुमेन को 10-11 घंटे लंबे अपने काम के दिन के दौरान कुछ देर बैठने का भी अधिकार नहीं है.

यहां तक कि अगर काम के बीच थकान होने पर दीवार से पीठ टिकाकर खड़ी हो जाएं तो दुकान के मालिक जुर्माना लगा देते हैं.

साधारण-सी लगने वाली ये मांग पूरी करवाने के लिए औरतें आठ साल से संघर्ष कर रही हैं.

उत्तर भारत की दुकानों से अलग, यहां ज़्यादातर औरतें ही सामान दिखाने का काम करती हैं. मर्द इनसे ऊंचे पदों पर काम करते हैं.

इसलिए ये 'राइट टू सिट' औरतों का मुद्दा बन गया, और जो आवाज़ उठातीं, उनकी नौकरी तक पर बन आती.

माया देवी
BBC
माया देवी

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

जब माया देवी ने भी ये अधिकार मांगा तो उनकी नौकरी चली गई. चार साल पहले वो साड़ी के एक प्रसिद्ध शोरूम में काम करती थीं.

नौकरी थकाऊ थी पर उनका गुरूर थी और बाक़ी सेल्सवुमेन की ही तरह उन्हें शौचालय की सहूलियत तक नसीब नहीं थी.

माया ने बताया कि वो पानी भी कम पीती थीं. उन्हें पैरों में दर्द, 'वैरिकोज़ वेन्स', गर्भाशय संबंधी शिकायतें, यूरीनरी इन्फ़ेक्शन और कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो रही थीं.

वो बोलीं, "मैं 'राइट टू सिट' आंदोलन का हिस्सा इसलिए बनी क्योंकि मुझे लगा कि अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना ज़रूरी है."

पी. विजी
BBC
पी. विजी

संगठित होकर विरोध

माया को हिम्मत इस आंदोलन की मुखिया पी. विजी से मिली. विजी पेशे से दर्ज़ी हैं. दस साल की उम्र में ही उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा था.

वो ख़ूब आत्मविश्वास के साथ बात करती हैं. बहुत साफ़गोई से वो मुझे समझाती हैं कि उनकी जैसी अनपढ़ औरतों को इस आंदोलन के लिए जुटाना क्यों ज़रूरी था.

वो कहती हैं, "कपड़ा उद्योग में काम करनेवाली इन औरतों को श्रम क़ानून की जानकारी नहीं है और अगर कोई अपने पति को अपनी प्रताड़ना के बारे में बताए तो वो उसी को कसूरवार मानते हैं. इन्हीं वजहों से मुझे इनकी आवाज़ बनना पड़ा."

पर विजी के लिए ये आसान नहीं था. ज़्यादातर औरतों के लिए उनकी छोटी-मोटी सैलरी और नौकरी की वजह से घर से बाहर निकलने की आज़ादी बहुत क़ीमती है जिसे वो ख़तरे में नहीं डालना चाहतीं.

इसलिए सबसे पहले उन्होंने औरतों के अधिकारों के बारे में जानकारी छापकर शोरूम के बाहर बांटना शुरू किया.

विजी जानती थी कि सरकार की नीति बदलने के लिए ये ज़रूरी है कि औरतों के मुद्दों पर मर्दों की अध्यक्षता वाले रसूख़दार मज़दूर संघों का समर्थन मिले. पर उन्होंने कहा कि ये मांगें अहम नहीं हैं.

विजी बताती हैं, "उन्होंने कहा कि ये औरतें सिर्फ़ व़क्त काटने के लिए नौकरी करती हैं, सोचिए महिला कामगारों को ये मज़दूर संघ ऐसे नज़रिए से देखते हैं."

आख़िरकार विजी ने अपना मज़दूर संघ बनाया. कुछ हड़तालें भी आयोजित कीं.

इन्हीं सब की बदौलत सरकार ने कहा कि वो ये दस्तूर ख़त्म कर देगी, पर कुछ ख़ास नहीं बदला है.

केरल के कालीकट की कई दुकानों के चक्कर लगाने के बाद भी वहां काम करनेवाली औरतों ने यही बताया कि वो अपने मालिकों से बैठने का अधिकार मांगने से डरती हैं कि कहीं नौकरी ना चली जाए.

टी. नज़ीरुद्दीन
BBC
टी. नज़ीरुद्दीन

इंतज़ार क़ानून के लागू होने का

केरल व्यापारी संघ के राज्य सचिव टी.नज़ीरुद्दीन के मुताबिक सेल्सवुमेन को बैठने के लिए काफ़ी मौके दिए जाते हैं.

उन्होंने कहा, "केरल में हज़ारों दुकानदार हैं. अगर एक या दो कुछ बुरा बर्ताव कर रहे हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि सभी ख़राब हैं."

हालांकि राज्य सरकार के मुताबिक उन्हें व्यापारियों के रवैये के ख़िलाफ़ सेल्सवुमेन से कई शिकायतें मिली हैं और इसीलिए वो जुर्माने की सज़ा भी लेकर आएंगे.

सेल्सवुमेन को उनकी महिला ग्राहकों से भी ख़ूब समर्थन मिल रहा है.

सड़क पर औरत
BBC
सड़क पर औरत

बाज़ार में बात की तो एक महिला ने कहा, "उन्हें बैठने का अधिकार मिलना चाहिए. ख़ास तौर पर जब कोई ग्राहक ना हों, उनके पास कुछ खाली व़क्त हो, उन्हें बैठने देना चाहिए."

दूसरी बोली कि ये अधिकार इसलिए भी मिलना चाहिए क्योंकि औरतें नौकरी तो करती ही हैं. उससे पहले वो घर के सारे काम भी ख़त्म करती हैं.

अब इंतज़ार है क़ानून के लागू होने का ताकि औरतें बेख़ौफ़ अपने बैठने के अधिकार के लिए खड़ी हो सकें.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
What is the whole battle of seating rights
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X