'मुज़फ़्फ़रपुर' का सच निकालने वाली TISS कि रिपोर्ट में क्या है?
मोतिहारी में 'निर्देश' संस्था के ज़रिए चलाए जा रहे ऐसे ही एक बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम का ज़िक्र रिपोर्ट में किया गया है. वहां पर रह रहे लड़कों ने कोशिश की टीम से उन पर हो रहे शारीरिक हिंसा का ज़िक्र किया है. रिपोर्ट के मुताबिक लड़कों को पाइप से मारा जाता था. किसी भी लड़के की गलती पर वहां रह रहे सभी लड़कों को सज़ा दी जाती थी.
बिहार सरकार ने शेल्टर होम पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (TISS) की ऑडिट रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया है.
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ़ से क़दम उठाते हुए बिहार सरकार को ऐसा करने का आदेश दिया है.
समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने बीबीसी को बताया, "TISS की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने का मक़सद कुछ छिपाना नहीं था. हमने सुप्रीम कोर्ट से भी तत्काल सार्वजनिक नहीं करने की वजह बता दी है. ऐसा करने पर आरोपी पूरे मामले को कवर-अप करने की कोशिश कर सकते थे."
रिपोर्ट में सुधार गृह की कमियों के साथ-साथ कुछ सुधार गृहों को सराहा भी गया है. लेकिन इस रिपोर्ट में ऐसा क्या था, जिसकी वजह से इसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा था, बीबीसी ने इसकी पड़ताल की.
आखिर क्या है TISS की रिपोर्ट में?
इस साल मार्च में TISS की एक टीम 'कोशिश' ने बिहार के 35 ज़िलों के 110 ऐसी संस्थाओं की ऑडिट रिपोर्ट बनाई थी. ये सभी संस्थाएं राज्य सरकार में सामाजिक कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आती हैं.
गौर करने वाली बात यह है कि हर राज्य में सामाजिक कल्याण विभाग गुमशुदा बच्चों, बाल मजदूरों, अनाथ बच्चों, मानसिक रूप से कमज़ोर, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के रहने और पुनर्वास के लिए कई तरह की संस्थाएं और कार्यक्रम चलाती है.
इनमें से ज़्यादातर संस्थाएं स्थनीय गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की देख-रेख में चलती हैं, जिसकी एवज में एनजीओ को सरकार से पैसे मिलते हैं.
ये 110 संस्थाएं ऐसी ही थीं, जो सरकारी मदद से चल रही थीं. इस रिपोर्ट में ऐसी संस्थाओं का ज़िक्र किया गया था, जहां TISS की टीम को इन संस्थाओं में रहने वालों के साथ होने वाली हिंसा (शारीरिक, मानसिक और यौन) के सबूत मिले. मुज़फ़्फ़रपुर उनमें से एक है, लेकिन वह एकमात्र नहीं है.
मुज़फ़्फ़रपुर में तो लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार की बात सामने आई है, लेकिन इस रिपोर्ट में लड़कों के लिए चल रहे ऐसे शेल्टर होम में उनके साथ हो रही हिंसा (शारीरिक, मानसिक और यौन) का भी ज़िक्र किया गया है.
शेल्टर होम नहीं नरक
TISS की इस रिपोर्ट में 14 दूसरे शेल्टर होम का ज़िक्र है, जहां रहने वालों की ज़िंदगी नरक से भी बदतर है.
111 पन्नों की इस रिपोर्ट को पढ़ कर इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि इन बच्चों को एक नरक से निकालकर दूसरे नरक में कैसे झोंक दिया जाता था.
कहीं लड़कियों को महीना आने पर सेनेटरी पैड तक नहीं दिया जाता था, तो कहीं सुरक्षा के नाम पर रखा गया गार्ड ही उनके साथ यौन शोषण करता था, कहीं लोहे के रॉड से पिटाई की जाती थी, तो कहीं जिस बाथरूम में लड़कियां जाती थीं वो अंदर से बंद नहीं किए जा सकते थे, किसी-किसी जगह तो तीन वक़्त का खाना तक नसीब नहीं होता था.
40 डिग्री की गर्मी में जब पंखा, बत्ती न हो, सोने के लिए गद्दा न हो और इन सबके बाद अगर आप अपने भगवान को याद करना चाहें तो उसकी इजाज़त भी न मिले. तो जरा सोचिए वहां रहने वाले पर क्या बीतती होगी.
उनके साथ किस स्तर की शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा चल रही थी इसका अंदाज़ा बच्चों की इस बात से लगाया जा सकता है कि बच्चों ने तो यहां तक कह दिया कि बाहर निकल कर हम इनका मर्डर करना चाहते है.
ये रिपोर्ट सरकार की अनदेखी का एक सच्चा सबूत है. कैसे वहां रहने वाले लड़के, लड़कियों, महिलाओं के नाम पर एनजीओ ने करोड़ों कमाए. लेकिन उस कमाई का दस फ़ीसदी भी उन पर खर्च नहीं किया गया.
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सभी सुधार गृहों में यौन हिंसा ही होती थी या तमाम शेल्टर होम नरक का पर्याय बन चुके हैं.
इसी रिपोर्ट में आठ जगहों के सुधार गृह को उनके अच्छे काम के लिए सराहा भी गया है.
बिहार में और कितने 'मुज़फ़्फ़रपुर'?
आप भी पढ़ें रिपोर्ट का वो हिस्सा जिसमें मुज़फ़्फ़रपुर के आलावा दूसरे सुधार गृहों के बारे में भी लिखा गया है:
1. मोतिहारी में 'निर्देश' संस्था के ज़रिए चलाए जा रहे ऐसे ही एक बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम का ज़िक्र रिपोर्ट में किया गया है. वहां पर रह रहे लड़कों ने कोशिश की टीम से उन पर हो रहे शारीरिक हिंसा का ज़िक्र किया है. रिपोर्ट के मुताबिक लड़कों को पाइप से मारा जाता था. किसी भी लड़के की गलती पर वहां रह रहे सभी लड़कों को सज़ा दी जाती थी. जब कोशिश की टीम उस चिल्ड्रेन होम में पहुंची तो वहां केवल एक ही कर्मचारी मौजूद था, जिसे ये भी नहीं पता था कि आखिर उसका काम क्या है.
2. भागलपुर में 'रुपम प्रगति समाज समिति' के बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम में रह रहे लड़कों ने कोशिश की टीम से बताया की उन्हें खाना तक नहीं दिया जाता था. ऑडिट पर पहुंची टीम को वहां एक लेटर बॉक्स मिला जिसमें वहां रह रहे लड़कों ने उन पर हो रही शारीरिक हिंसा के ब्यौरा लिखकर डाला था. टीम ने जब उस बक्से को खोलने की चाबी मांगी तो पहले तो उसके गायब होने की बात की गई लेकिन सख़्ती दिखाने पर उस बक्से को खोला गया.
3. मुंगेर में 'पनाह' के बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम की कहानी भी दूसरों से मिलती-जुलती थी. वैसे तो इसे एक 'ऑब्जर्वेशन होम' होना चाहिए था. क्योंकि ऑब्जर्वेशन होम में पुनर्वास कार्यक्रम चलाया जाता है, लेकिन यहां लड़कों के पुनर्वास से जुड़ा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा था.
'ऑब्जर्वेशन होम' और बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम में यही सामान्य अंतर होता है. यहां लड़कों को सुपरिटेंडेंट के घर पर खाना बनाने के लिए लगाया जाता था. जो लड़के ऐसा करने से मना करते उन्हें मारा जाता था. सज़ा का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक लड़के ने अपने चेहरे पर 3 इंच गहरा घाव दिखाया, जो सज़ा उसे खाना बनाने से इनकार करने के लिए मिली थी.
4. गया ज़िले में बॉयेज़ चिल्ड्रेन होम जिसे 'डीओआरडी' नामक संस्था चला रही थी, उसमें लड़कों को लॉक-अप में रखा जाता था. उनसे महिलाओं के ख़िलाफ़ भद्दे/अश्लील मैसेज लिखाए जाते थे. बच्चों ने वो डंडा भी दिखाया जिससे उनकी पिटाई की जाती थी.
5. कोशिश की टीम ने तीन अडॉप्शन एजेंसियों (बच्चा गोद लेने वाले केंद्र) का भी मुआयना किया जिनमें पटना के 'नारी गुंजन', मधुबनी के 'आरईवीएसके' और कैमूर के 'ज्ञान भारती' शामिल हैं. इन एजेंसियों के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि वो जगह बच्चों के रहने लायक नहीं थी. वहां के बच्चों को गोद लेने की संख्या भी बहुत ही कम थी. हालांकि बच्चे इतने छोटे थे कि उनसे बात नहीं हो सकती थी.
6. अररिया के 'ऑब्जर्वेशन होम' में रहने वाले लड़कों की कहानी सबसे दर्दनाक थी. उस शेल्टर होम का गार्ड लड़कों को सरिये से मारता था. लड़कों को इतनी बुरी तरह मारा गया था कि उनकी हड्डियाँ तक टूट गई थीं. कई लड़कों को तो टूटी हड्डियों के लिए इलाज़ भी मुहैया नहीं करवाया गया. इन लड़कों के भीतर वहां के सुरक्षा गार्ड के लिए इतनी नफ़रत थी कि वो शेल्टर होम से निकलते ही सबसे पहले उसका मर्डर करना चाहते थे. एक लड़के ने कोशिश की टीम से कहा - ''इस जगह का नाम तो सुधार गृह के जगह बिगाड़ गृह कर देना चाहिए.''
7. पटना के शॉर्ट स्टे होम 'इकार्द'(IKARD) में रहने वाली लड़कियों का दुख सबसे अलग था. कुछ लड़कियां इस स्टे होम में सिर्फ इस वजह से पहुंच गई थीं क्योंकि उन्हें अपने घर का रास्ता याद नहीं था. हालांकि उनके पास घर का पता और फ़ोन नंबर दोनों थे लेकिन उन्हें अपने घर में बात करने तक की इजाज़त नहीं थी. इस स्टे होम में भी लड़कियों के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार होता था.
यहां एक लड़की ने साल भर पहले भी आत्महत्या की थी. यहां रहने वाली लड़कियों को न तो कपड़े दिए जाते थे, न नहाने-धोने का सामान और न ही दवाइयां दी जाती थीं. कुल मिला कर रिपोर्ट के अनुसार ये रहने लायक जगह नहीं थी.
- यह भी पढ़ें | जब एक 'पीर बाबा' ने बचपन में उसका 'रेप' किया..
8. मोतिहारी में सखी के शॉर्ट स्टे होम में तो महिला काउंसिलर ही लड़कियों के साथ शारीरिक हिंसा में शामिल पाई गईं. वह स्टे होम किसी मंदिर की तरह दिखता था. वहां रहने वाली मुस्लिम महिला को नमाज़ पढ़ने की इजाज़त नहीं थी. उसकी क़ुरान तक को फाड़ दिया गया. वहां लड़कियों को सेनेटरी पैड भी नहीं दिए जाते थे.
9. मुंगेर के शॉर्ट स्टे होम को 'नोवेल्टी वेलफ़ेयर सोसाइटी' चलाती थी, यहां लड़कियों के बाथरूम में दरवाजा लॉक तक नहीं होता था. सोने के लिए पलंग पर गद्दे तक नहीं थे. इस स्टे होम का एक हिस्सा दस हज़ार रु किराए पर किसी दूसरे परिवार को रहने के लिए दे दिया गया था.
10. मधेपुरा और कैमूर के शॉर्ट स्टे होम में महिलाओं की हालत बाकी शेल्टर होम जैसी ही दिखी. कैमूर में तो सुरक्षा गार्ड तक महिलाओं के प्राइवेट पार्ट छूने की कोशिश करता था, उन पर भद्दे कमेंट करता था.
11. सेवा कुटीर मुज़फ़्फ़रपुर जिसे ओम साईं फाउंडेशन चला रही थी, वहां भी रहने वालों के साथ शारीरिक और यौन हिंसा की शिकायतें कोशिश की टीम को मिली. यहां केयर टेकर उन्हें मारता-पीटता भी था. कमरों में न तो पंखा ना और ना ही रोशनी के लिए बत्ती. इतना ही नहीं पीने के लिए साफ पानी तक नहीं था. कइयों को यहां काम देने का झांसा देकर लाया गया था.
12. पटना में कुशल कुटीर और गया में सेवा कुटीर में भी रहने वालों ने मिलती-जुलती दास्तान सुनाई.
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस रिपोर्ट में केवल सरकार की आलोचना ही की गई है.
- यह भी पढ़ें | भारत में बच्चों को रेप के बारे में कैसे बताएं?
अच्छे शेल्टर होम
दरभंगा के आब्ज़र्वेशन होम उन आठ अच्छे शेल्टर होम में से एक है जिसका ज़िक्र TISS की रिपोर्ट में किया गया.
दरभंगा के अलावा बक्सर, सारन, कटिहार, भागलपुर, पूर्णिया और नालंदा के शेल्टर होम की भी तारीफ की गई है.
जहां एक शेल्टर होम में रहने वालों से बागवानी कराई जाती थी, तो दूसरे शेल्टर होम में कर्मचारी वहां के बच्चों की पढ़ाई में मदद करते थे. इन सुधार गृहों में रहने वालों के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिली.
सारन के अडॉप्शन सेंटर को तो TISS की टीम 'मॉडल अडॉप्शन सेंटर' तक कहा है. भागलपुर में बच्चियों के लिए चलाए जाने वाले चिल्ड्रेन होम में वहां काम करने वाले कर्मचारी अपने बच्चों का जन्मदिन सुधार गृह में मनाते थे. पूर्णिया के शेल्टर होम में बाहर से वॉलिंटियर आते थे और वहां रहने वालों को काम सिखाते थे.
दिलचस्प बात यह है कि इस रिपोर्ट के लिए TISS का चयन खुद बिहार सरकार ने ही किया था. रिपोर्ट में इस बात का भी साफ़ तौर पर ज़िक्र किया गया है कि इस पूरे ऑडिट के लिए TISS की टीम ने किसी तरह का कोई पैसा नहीं लिया है.
- देवरिया बालिका गृह चलाने वाली गिरिजा त्रिपाठी कौन?
- कैसे लोग चलाते हैं बालिका गृह?
- आँखों देखी: पटना के शेल्टर होम के भीतर का डरावना सच