जेल से रिहा होते हुए भीम आर्मी चीफ रावण ने मायावती के बारे में क्या कहा?
सहारनपुर में हुई हिंसा के बाद रासुका के तहत गिरफ्तार किए गए भीम आर्मी के संस्थापक और अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ 'रावण' को जेल से रिहा कर दिया गया है।
नई दिल्ली। सहारनपुर में हुई हिंसा के बाद रासुका के तहत गिरफ्तार किए गए भीम आर्मी के संस्थापक और अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ 'रावण' को जेल से रिहा कर दिया गया है। गुरुवार को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने चंद्रशेखर के ऊपर से रासुका हटाने का फैसला लिया, जिसके बाद देर रात करीब दो बजे चंद्रशेखर जेल से बाहर आए। जेल से बाहर निकलते ही चंद्रशेखर को उनके समर्थकों ने घेर लिया और उन्हीं समर्थकों के बीच उन्होंने ऐलान किया कि अब उनका लक्ष्य 2019 में भाजपा को हराना है। इस बीच चंद्रशेखर ने बसपा सुप्रीमो मायावती को लेकर भी बड़ा बयान दिया।
मायावती को लेकर ये बोले चंद्रशेखर
जेल से बाहर आकर पत्रकारों से बात करते हुए चंद्रशेखर ने कहा, 'मेरी रिहाई भाजपा की साजिश है, वो 10 दिन के अंदर मुझे फिर से किसी ना किसी मामले में फंसाकर जेल में डाल सकती है। 2019 में भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकना ही उनका लक्ष्य है। भीम आर्मी का पूरा समर्थन महागठबंधन को होगा और उनके संगठन का एक भी व्यक्ति भाजपा को वोट नहीं करेगा। बीएसपी की अध्यक्ष मायावती मेरी बुआ हैं। उन्होंने दलित समाज के लिए बहुत काम किया है, उनसे हमारा किसी तरह का कोई विरोध नहीं है।'
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दलितों की नाराजगी से बचने के लिए रिहाई?
आपको बता दें कि मई 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर में हुई जातीय हिंसा के बाद, रामपुर में दलितों की महापंचायत में बवाल के दौरान चंद्रशेखर को गिरफ्तार किया गया था। उनके ऊपर रासुका के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया था। इस दौरान उनकी रिहाई के लिए भीम आर्मी के सदस्यों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भी विरोध प्रदर्शन किया था। पश्चिमी यूपी के कई जिलों में भीम आर्मी का प्रभाव है। माना जा रहा है कि दलितों की नाराजगी से बचने के लिए चंद्रशेखर के ऊपर से रासुका हटाकर उन्हें रिहा किया गया है।
'झूठे मामले में फंसाकर मुझे जेल भेजा'
चंद्रशेखर का कहना है कि जिस दिन यह बवाल हुआ, उस दिन वह परिवार के सदस्यों के साथ अपने गांव छुटमलपुर स्थित घर पर थे। चंद्रशेखर के मुताबिक 10 मई को रामपुर में हुई वारदात में सभी लोग भीम आर्मी के सदस्य नहीं थे। उन्होंने कहा कि रामपुर में बवाल होने के बाद अधिकारियों ने उसे विरोधियों को शांत करने के लिए बुलाया था। हिंसा के दौरान उन्होंने प्रशासन की मदद की थी। सरकार ने इसके बावजूद उन्हें झूठे मामले में फंसाकर जेल भेज दिया।
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