West Bengal election:मुकुल रॉय क्यों कहलाते हैं बंगाल की राजनीति के चाणक्य ?
कोलकाता: मुकुल रॉय के बीजेपी में शामिल हुए अभी ठीक से साढ़े तीन साल भी नहीं हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी हाशिए से उठकर सत्ता की प्रबल दावेदार बनी है तो उसमें कभी ममता बनर्जी के लेफ्टिनेंट रहे इस कद्दावर नेता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सुवेंदु अधिकारी जैसे दिग्गज तो अब टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं, लेकिन उनसे पहले ऐसा करने वाले तृणमूल नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिन्हें भगवाधारी बनाने में रॉय की बड़ी भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। वो जब टीएमसी के साथ थे, तो वहां भी उन्हें ममता बनर्जी के बाद उन्हें नंबर दो का स्थान मिला हुआ था। जाहिर है कि उनकी सियासी कीमत को आंकने के बाद ही 'दीदी' ने भी भाव दिया था और अब भाजपा भी बहुत ज्यादा अहमियत दे रही है।
टीएमसी में सेंध लगाने में माना जाता है सबसे बड़ा रोल
सोमवार को भी तृणमूल कांग्रेस के पांच और विधायकों ने बीजेपी का कमल थामा है। इनमें सोनाली गुहा, टॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री चक्रवर्ती, जटु लाहिरी, रबींद्रनाथ भट्टाचार्या, सीतल सरदार और दिपेंदु बिश्वास शामिल हैं। बंगाल की राजनीति में ये सारे बड़े नाम हैं। मसलन, सोनाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की खास मानी जाती रही हैं। सुवेंदु अधिकारी की तरह भट्टाचार्य सिंगुर भूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरे माने जाते हैं। इन सबको भाजपा में लाने में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकल रॉय का क्या योगदान है, इसका संकेत गुहा ने दिया है। उन्होंने कहा है कि वो 'मुकुल दा' के अनुरोध पर ही पार्टी में शामिल हुई हैं। खुद रॉय कभी टीएमसी चीफ के सबसे खास और दिल्ली में पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरा रह चुके हैं। लेकिन, पिछले करीब साढ़े तीन वर्षों से बीजेपी के लिए अपनी पूर्व नेता की सियासी जमीन खोद रहे हैं।
दिल्ली में किया 'दीदी' का प्रतिनिधित्व
आज बंगाल में बीजेपी की राजनीति का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जिससे 66 वर्षीय ये नेता नावाकिफ हैं। मुकुल दा ने अपना सियासी करियर लगभग ममता बनर्जी के साथ ही यूथ कांग्रेस से शुरू किया था। 1998 में जब 'दीदी' ने कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की तो रॉय उसके संस्थापक सदस्य बने। जल्दी ही वह दिल्ली में पार्टी का चेहरा बन गए और 2006 में उन्हें राज्यसभा की सदस्यता मिल गई। यूपीए-2 में उन्हें पहले जहाजरानी में राज्यमंत्री बनने का मौका मिला और बाद में बनर्जी के आशीर्वाद से कुछ वक्त के लिए रेलमंत्री का ताज भी मिल गया।
तो इसलिए बंगाल की राजनीति के चाणक्य कहलाते हैं
2015 में जब उनका नाम शारदा घोटाले और नारदा स्टिंग ऑपरेशन में आया तो उनकी मुख्यमंत्री से दूरी बनने लगी। आखिरकार 2017 के सितंबर में पार्टी ने उन्हें 6 साल के लिए बाहर किया और दो महीने बाद ही वो बीजेपी के हो गए। तब से ही वो प्रदेश में भाजपा का जनाधार मजबूत करने में लगे हुए हैं। पार्टी में कभी भी उनका नाम सीएम उम्मीदवार के तौर पर नहीं उछलता है, लेकिन वो 'अबकी बार 200 पार' मिशन के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की शानदार सफलता का श्रेय उन्हें यूं ही नहीं दिया जाता। क्योंकि, दो साल के अंदर ही उन्होंने टीएमसी में भगदड़ मचा दी थी। जाहिर है कि इस वजह से उन्हें अब बंगाल की राजनीति में चाणक्य कहा जाने लगा है।
अब ममता के निशाने पर रहते हैं मुकुल रॉय
हालिया पांच विधायकों के अलावा रॉय को टीएमसी के जिन नेताओं को बीजेपी में लाने का श्रेय दिया जाता है, उनमें खुद उनके बेटे और विधायक सुभ्रांषु रॉय, सोवन चटर्जी, सब्यसाची दत्ता, सुनील सिंह, बिस्वजीत दास, विल्सन चामपरामरी और मिहिर गोस्वामी शामिल हैं। इनके अलावा अगर पार्टी टीएमसी से सुवेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी और जीतेंद्र तिवारी जैसे नेताओं से पाला बदलवा चुकी है तो उसमें भी इनका बहुत बड़ा रोल माना जाता है। बंगाल की राजनीति को जानने वाले कहते हैं कि उनकी 'चाणक्य नीति' ने ही आज दीदी कैंप की नींव को हिलाकर रख दिया है। यही वजह है कि अमूमन हर झटके के बाद सीएम बनर्जी उनपर 'गद्दारी' का आरोप लगाकर जमकर भड़ास निकालती हैं। सीएम का हालिया गुस्सा उनके खिलाफ तब भड़का था, जब उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी की पत्नी से ईडी ने पूछताछ की थी। वो बोली थीं कि 'बाघ का बच्चा चूहे और बिल्लियों से नहीं डरता।'