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उद्धव ठाकरे शायद भूल गए हैं राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में उन्हें कौन लेकर आया!

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बेंगलुरू। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे को आए अब 11 दिन बीते चुके हैं, लेकिन महाराष्ट्र में बडे़ भाई और छोटे भाई का खेल किसी नतीजे पर पहुंचने में नाकाम रहा है। शिवसेना अगर इतिहास खंगालेगी तो उसे पता चलेगा कि महाराष्ट्र प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति में शिवसेना कैसे पहुंची, जो वर्ष 1990 से पहले कभी महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव तक नहीं लड़ी थी। इतना ही नहीं, वर्ष 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव शिवसेना ने बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर लड़ा था, क्योंकि उसके पास तब कोई चुनाव चिन्ह नहीं था।

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शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अगर इतिहास में झांकेंगे कि राज्य राजनीति में प्रवेश से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में शिवसेना का लाने का श्रेय बीजेपी को ही जाता है। इस तरह शिवसेना का बड़ा भाई बीजेपी ही होगा, लेकिन अफसोस की बात है कि शिवसेना को यह बात अभी तक क्यों नहीं समझ में आई है। कमोबेश एक ही विचारधारा वाली दोनों पार्टियां इसलिए पिछले 30 वर्षो से साथ-साथ हैं, क्योंकि दोनों स्वाभाविक पार्टनर है।

दोनों दल वर्ष 1995 में आधिकारिक पार्टनर के रूप में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए शीट शेयरिंग फार्मूले के तहत 1995 विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीट और बीजेपी 105 सीट पर मैदान में उतरी। शिवसेना-बीजेपी गठबंधन को जनादेश मिला तो शिवसेना नेता मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री चुना गया था।

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वर्ष 1995 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 183 सीटों पर लड़कर 73 सीटों पर विजयी रही थी जबकि बीजेपी 105 सीटों पर लड़कर 52 सीटों पर मैदान मार लिया था, जो वर्ष 1990 की तुलना में 10 सीटें अधिक थी, बावजूद इसके बीजेपी ने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए मनोहर जोशी को गठबंधन का नेता माना था और बिना कोई न नुकर किए मनोहर जोशी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार में शामिल हुए। यह अलग बात है कि मनोहर जोशी के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र की पहली गैर कांग्रेस गठबंधन सरकार में बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। महाराष्ट्र में यह एनडीए गठबंधन सरकार पूरे पांच वर्ष तक बिना किसी अवरोध के चलते रही

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उल्लेखनीय है शिवसेना ने वर्ष 1990 से पूर्व महाराष्ट्र नगर निगम चुनावों में व्यस्त रहती थी और एनडीए शीट शेयरिंग फार्मूले के बाद पहली बार उसने विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई थी। वर्ष 1990 में बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर विधानसभा चुनाव लड़ी शिवसेना को एनडीए शीट शेयरिंग के तहत 183 सीट और बीजेपी को 104 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी थी।

इस चुनाव में बीजेपी को 42 और शिवसेना को 52 सीटें मिली थीं। बीजपी शिवसेना की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन शिवसेना ने 183 सीटों पर लड़कर महज 52 सीट जीतकर आई शिवसेना ने बीजेपी 42 सीटों जीत को छोटा करते हुए खुद को बीजेपी को जबरन बड़ा भाई घोषित कर लिया।

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जबकि वर्ष 1990 विधानसभा चुनाव में सीटों पर शिवसेना की जीत का औसत बीजेपी की तुलना में खराब थी। बीजेपी 104 सीटों पर लड़कर 42 सीटों पर विजयी रही थी। बीजेपी की जीत का औसत करीब 42 फीसदी थी जबकि शिवसेना 183 सीटों पर लड़कर 52 सीटें जीती थी और उसकी जीत का औसत बीजेपी से पूरी 10 फीसदी कम थी यानी कि महज 32 फीसदी थी।

वर्ष 1995 में दोनों दलों ने एक साथ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे। इस बार एनडीए सीट शेयरिंग फार्मूले के तहत बीजेपी को एक सीट ज्यादा मिली, जिससे बीजेपी 105 और शिवसेना खुद 183 सीट पर चुनाव लड़ी। चुनाव नतीजे आए तो शिवसेना के होश फाख्ता थे।

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शिवसेना 183 सीटों पर लड़कर कुल 73 सीटों पर विजयी रही और एक बार फिर वह बीजेपी से पिछड़ गई थी, क्योंकि 105 सीटों पर लड़ी बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में मिली सीटों से 23 सीटें अधिक जीती थीं। बीजेपी ने वर्ष 1995 विधानसभा चुनाव में 105 सीटों पर लड़कर कुल 65 सीटें जीती थी।

बीजेपी और शिवसेना ने वर्ष 1995 विधानसभा चुनाव में मिलकर पहली बार महाराष्ट्र में सरकार जरूर बनाई, लेकिन शिवसेना को उसके बड़े भाई होने का मुगालता दूर नहीं हुआ और माना जा रहा है कि वर्ष 1995 में चला रहा आ रहा शिवसेना का यह भ्रम ही महाराष्ट्र में दोनों दलों के बीच का मुख्य झगड़ा है।

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हालांकि वर्ष 1999 के विधानसभा चुनाव में एनडीए शीट शेयरिंग के तहत बीजेपी को 117 सीट और शिवसेना 161 सीटों पर चुनाव लड़ाया गया था। बीजेपी का जनाधार महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ रहा था और उसने 1999 विधानसभा चुनाव में 117 में से 56 निकालने में कामयाब रही जबकि शिवेसना ने 69 सीटों पर सिमट गई थी। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन वाली एनडीए के हाथों से सत्ता खिसक चुकी थी।

यहां एक बात साफ हो गई कि बीजेपी का तेजी से उभार की ओर बढ़ रही थी और शिवसेना तेजी से ह्रास हो रहा था। वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 163 सीटों पर और बीजेपी 111 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया गया। इस चुनाव में भी शिवसेना को और बड़ा झटका लगा और 163 सीटों पर लड़कर वह महज 62 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी और बीजेपी को 54 सीटों पर जीत दर्ज की। एक ओर जहां बीजेपी ने तेजी पकड़ी हुई थी दूसरी ओर शिवेसना महाराष्ट्र में पिछड़ चुकी थी।

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माना जाता है कि शिवसेना बीजेपी को बड़ा भाई दो कारणों से मानने को तैयार नहीं था। पहला कारण है कि शिवसेना महाराष्ट्र में बीजेपी को राजनीतिक प्रश्रय देने का श्रेय लेती है, जिसके चलते महाराष्ट्र में बीजेपी का जनाधार लगतार बढ़ता गया। दूसरा, शिवसेना खुद को बीजेपी का बड़ा भाई इसलिए भी मानती है, क्योंकि शिवसेना की स्थापना वर्ष 1966 में हुई थी, जो अब 54 वर्ष पुरानी पार्टी है जबकि बीजेपी उसकी तुलना में नवोदित पार्टी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1980 में की गई है।

यह अलग बात है कि बीजेपी से पूर्व भारतीय जनसंघ वर्ष 1967 से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हिस्सा लेती आ रही थी। वर्ष 1976 में भारतीय जनसंघ ने 166 सीटों पर चुनाव लड़कर 8.17 फीसद वोट हासिल किए थे और चार सीटें जीती थीं और जनसंघ के भारतीय जनता पार्टी में बदलने के तुरंत बाद हुए 1980 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी अकेले 145 सीटों पर चुनाव लड़कर 9.38 फीसद वोट और 14 सीटें जीतने में सफल रही थी।

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बीजेपी-शिवसेना ने वर्ष 2009 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरी थी। बीजेपी 119 सीटों के साथ चुनाव मैदान में उतरी और शिवसेना को 169 सीटों चुनाव लड़ी। अकेले लड़ने से बीजेपी 119 सीटों पर लड़कर 46 सीट ही जीत सकी और 169 सीटों पर लड़ी शिवसेना गिरकर 44 सीटों पर पहुंच गई। इस बार कम सीटों पर लड़कर भी बीजेपी शिवसेना से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही थी, जिससे बीजेपी का आत्मविश्वास सातवें आसमान था।

इसी का नतीजा था कि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शिवसेना की शर्तों पर समझौता नहीं किया दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। बीजेपी 260 सीटों पर लड़कर 122 सीटें जीत गई और शिवसेना 282 सीटों पर लड़कर भी 63 सीटों पर सिमट गई।

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बीजेपी ने इशारों-इशारों में शिवसेना को बता चुकी थी कि महाराष्ट्र में बीजेपी ही शिवसेना का बड़ा भाई था और है, बीजेपी केवल एनडीए शीट शेयरिंग के फार्मूले के तहत कम सीटों पर चुनाव लड़ रही थी। वर्ष 1995 से 2014 के सफर में पहली बार दोनों दलों की साझा सरकार में बीजेपी हावी थी। विधायक दल के नेता चुने गए बीजेपी नेता देवेंद्र फड़णवीस महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के पहले मुख्यमंत्री थे, लेकिन बीजेपी ने शिवसेना को कुछ मलाईदार मंत्रालय जरूर दिया, लेकिन डिप्टी मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया।

शिवसेना को यह बात कचोट तो रही थी, लेकिन सत्ता में काबिज होने के लिए उसने न चाहते हुए उसने बीजेपी को बड़ा भाई को ओहदा तो दे दिया, लेकिन बड़ा भाई कभी नहीं माना। यही कारण था कि वर्ष 2019 विधानसभा चुनाव से पूर्व सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलो के बीच में बड़े-छोटे भाई को लेकर खूब रस्साकसी हुई, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर दूसरी प्रचंड जीत से केंद्र की सत्ता में पहुंची बीजेपी के आगे शिवसेना नतमस्तक हो चुकी है और 124 सीटों पर लड़ने के तैयार हो गई और बीजेपी ने 162 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।

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वर्ष 2019 का विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बार बीजेपी के लिए ज्यादा उत्साहजनक नहीं रहे। बीजेपी, जो 162 सीटो के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी, उसे महज 105 सीटों पर जीत मिली जबकि 124 सीटों पर मैदान में उतरी शिवसेना को 56 सीटों पर विजयश्री मिली। बीजेपी का ग्राफ गिरा तो शिवसेना को जैसे मन मांगी मुराद मिल गई है, क्योंकि बीजेपी का ग्राफ नीचे गिरने के बाद ही शिवसेना बड़े भाई के ओहदे पर अपना दावा कर सकती थी।

हालांकि सीटों पर जीत का औसत अभी बीजेपी की शिवसेना से बेहतर है, लेकिन शिवसेना के लिए इतना ही काफी है कि बीजेपी 122 से 105 पर आ गई थी। शायद यही कारण है कि बहुमत के बाद भी शिवसेना बीजेपी के सामने डिप्टी सीएम नहीं बल्कि 50-50 फार्मूले को लेकर अड़ी हुई है।

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ऐसा कहा जा सकता है कि अगर बीजेपी 50-50 फार्मूले पर तैयार नहीं हुई तो शिवसेना बीजेपी का साथ छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ वाली सरकार में भी शामिल हो सकती है, क्योंकि ऐसा लगता नहीं है कि बीजेपी 50-50 फार्मूले पर बीजेपी तैयार होती दिख रही है। माना जा रहा है कि शिवसेना प्रमुख पुत्र मोह में अंधे हुए जा रहे हैं और हर हाल में पुत्र आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। हालांकि यह तय नहीं है कि एनसीपी और कांग्रेस आदित्य ठाकरे को गठबंधन का सीएम मानेंगे या नहीं?

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हालांकि ताजा आसार कहते हैं कि दोनों दल अंततः एक राय हो जाएंगे और महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन की सरकार जल्द शपथ ग्रहण कर लेगी। महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस जहां आज बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने दिल्ली पहुंचे हैं। वहीं, शिवसेना भी दवाब बनाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं से दिल्ली में मिल रही है।

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Comments
English summary
Shiv sena chief Uddhav Thackeray may have forgotten who brought him in state and national politics otherwise shiv sena chief never approach NCP and congress to form government in Maharashtra. in maharasthra Shiv sena consider themself bigger party than BJP, while party not even fought a assembly election before 1990
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