क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

गुजरात की राजनीति में स्वामीनारायण संप्रदाय की भूमिका?

ऐसी क्या वजह है कि गुजरात में कोई भी राजनीतिक पार्टी स्वामीनारायण संप्रदाय को नाराज़ करने का जोखिम नहीं लेती?

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर

गुजराती में एक कहावत है कि साधु हो तो स्वामीनारायण का. इस कहावत को अगर आप हल्के में लेने की भूल करते हैं तो गुजरात की राजनीति को समझने में चूक कर बैठते हैं.

स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त और 'महिमा' को गुजरात की राजनीति कभी चुनौती नहीं दे पाई. पिछले साल ही संप्रदाय के प्रमुख स्वामी का निधन हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली से दुख जताने गुजरात पहुंचे.

और सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी की बात नहीं है. गुजरात में जिसकी भी सत्ता रही वो स्वामीनारायण संप्रदाय के साथ रहा. इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि स्वामीनारायण संप्रदाय भी हमेशा से सत्ता के क़रीब रहा.

आख़िर इस संप्रदाय में ऐसा क्या है कि इसके साधुओं पर किसी ने उंगली नहीं उठाई और कोई चुनौती नहीं मिली?

गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में स्वामीनारायण जी की मूर्ति
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में स्वामीनारायण जी की मूर्ति

उत्तर प्रदेश में छप्पैया के घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय की ऐसी दुनिया रची कि साल 2000 तक केवल अमरीका में स्वामीनारायण के 30 मंदिर हो गए. अमरीका के साथ दक्षिण अफ़्रीका, पूर्वी अफ़्रीका और ब्रिटेन में भी स्वामीनारायण के बहुत से मंदिर हैं.

अहमदाबाद के वरिष्ठ गांधीवादी राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश शाह कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ''6 दिसंबर 1992 के पहले भी गुजरात का अयोध्या कनेक्शन था और इसके लिए हमें घनश्याम पांडे का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. घनश्याम पांडे द्वारका आए थे. यहां आने के बाद सहजानंद स्वामी बने और आगे चलकर स्वामीनारायण बन गए. उन्हें श्री जी महाराज भी कहते थे.''

घनश्याम पांडे जवानी के दिनों में अयोध्या के छप्पैया से सौराष्ट्र में द्वारका पहुंचे थे. द्वारका के बाद वो अहमदाबाद पहुंचे. लोगों का कहना है कि पांडे जी ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व की ऐसी छाप छोड़ी कि वो जल्द ही घनश्याम से सहजानंद स्वामी बन गए.

प्रकाश शाह कहते हैं कि जब 200 साल पहले घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय की नींव रखी तो कुछ अच्छी चीज़ें भी हुईं.

गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में स्वामीनारायण की मूर्ति के सामने प्रमुख स्वामी का जीवंत चित्र
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में स्वामीनारायण की मूर्ति के सामने प्रमुख स्वामी का जीवंत चित्र

उन्होंने ग़ैर-ब्राह्मण और ग़ैर-बनिया जातियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की. प्रकाश शाह मानते हैं कि ''हर संगठन ख़ुद को स्थापित करने के लिए पहले कुछ ऐसा करता है ताकि उसके साथ ज़्यादा से ज़्यादा लोग जुड़ सकें लेकिन, जैसे ही चीज़ें संगठित हो जाती हैं तो असली चेहरा सामने आता है.''

गौरांग जानी कहते हैं कि सहजानंद स्वामी ने जीते जी अपना मंदिर बनवाया था.

सेंटर फोर सोशल नॉलेज एंड एक्शन अहमदाबाद के अच्युत याग्निक बताते हैं कि 19वीं सदी में ही स्वामीनारायण ने अपने दो भतीजों को यूपी से बुलाया. एक को कालूपुर मंदिर की गद्दी दी और दूसरे भतीजे को वडताल मंदिर की.

लेकिन उनका दोनों भतीजों को गद्दी देना लोगों को रास नहीं आया. इसे लेकर विरोध शुरू हुआ. विरोध के बाद स्वामीनारयण संप्रदाय दो खेमों में बंट गया. घनश्याम पांडे के खेमे ने वंश परंपरा को स्वीकार किया और दूसरे खेमे ने साधु परंपरा को अपनाया.

गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर

20वीं शताब्दी में साधु परंपरा के शास्त्री महाराज ने नई गद्दी चलाई. इस गद्दी को नाम दिया गया बोचासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम संप्रदाय. यह संप्रदाय आधुनिक समय में बाप्स नाम से लोकप्रिय है. बाप्स परंपरा के लोगों को ही साधु परंपरा वाला कहा जाता है.

स्वामीनारायण संप्रदाय वैष्णव परंपरा का हिस्सा है और कहा जाता है कि यह ब्राह्मणों और जैनों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए सामने आया. इसने वल्लभाचार्य परंपरा को भी कटघरे में खड़ा किया.

अच्युत याग्निक बताते हैं कि बाप्स परंपरा वालों में पाटीदारों का प्रभुत्व रहा है. बाप्स परंपरा के सामने वंश परंपरा वाले स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त कमतर होती गई. अक्षर पुरुषोत्तम पाटीदार थे.

याग्निक कहते हैं, ''19वीं शताब्दी के आख़िर में पाटीदारों की आर्थिक हैसियत काफ़ी मजबूत हुई. इसी दौरान पाटीदार समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले वल्लभभाई पटेल का भी दायरा बढ़ रहा था.''

दरअसल, 19वीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आख़िर में यहां अकाल पड़ा था. याग्निक कहते हैं कि ''अकाल से बचने के लिए पाटीदार बड़ी संख्या में पूर्वी अफ़्रीका और इंग्लैंड गए. इसके साथ ही वल्लभभाई पटेल के कारण बड़ी संख्या में लोगो कांग्रेस में भी शामिल हुए. पाटीदारों ने छोटे, मझोले उद्योग-धंधों में भी पांव पसारना शुरू कर दिया था.

गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
गांधीनगर का अक्षरधाम मंदिर

अक्षर पुरुषोत्तम के बाद योगी महाराज को गद्दी मिली और इनके बाद प्रमुख स्वामी आए. प्रमुख स्वामी भी पाटीदार ही थे. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में प्रमुख स्वामी की ही मूर्ति है.

याग्निक बताते हैं कि गुजरात में दो तरह के बनिया होते हैं- एक वैष्णव बनिया और दूसरे जैन बनिया. इन दोनों की ताक़त को पाटीदारों ने ही चुनौती दी. गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी बताते हैं कि गुजरात में पाटीदारों का उभार ही स्वामीनारायण का उभार है.

स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि 1987 में गुजरात के जाने-माने इतिहासकार मकरंद मेहता ने स्वामीनारायण के ख़िलाफ़ एक लेख लिखा तो मुक़दमा कर दिया गया. वो मुक़़दमा आज भी चल रहा है. तब कांग्रेस की सरकार थी और अमर सिंह चौधरी मुख्यमंत्री थे.

याग्निक कहते हैं वल्लभाचार्य और विट्ठलाचार्य के महिलाओं को लेकर स्कैंडल के कारण स्वामीनारयण को और बल मिला. इसी स्कैंडल को ध्यान रखते हुए यह नियम बनाया गया कि स्वामीनारायण संप्रदाय के साधु महिलाओं को देख भी नहीं सकते. यह नियम आज भी उतना ही सख्त है.

गौरांग जानी ने बताया, ''वल्लभाई पटेल के पिताजी स्वामीनारायण मंदिर में ही बैठे रहते थे. राजमोहन गांधी ने पटेल पर लिखी अपनी किताब में एक दिलचस्प वाक़ये का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि स्वामीनारायण का एक साधु एक मुक़दमे में फंस गया तो वल्लभाई पटेल के पिता ने अपने बेटे से उस साधु को बचाने के लिए कहा था. इस पर सरदार पटेल ने अपने पिता को कहा था कि उसने जो किया उसे वो ख़ुद भुगतेगा.''

प्रकाश शाह के अनुसार, ''स्वामीनारायण संप्रदाय और ब्रिटिश शासकों के बीच समझौता था. ये एक दूसरे की मदद करते थे. गांधी जी को लगता था कि यह संप्रदाय धर्म के नाम पर पागलपन को बढ़ावा दे रहा है.''

आख़िर मकरंद मेहता के उस लेख में क्या था कि उन पर मुक़दमा किया गया?

प्रकाश शाह कहते हैं कि मकरंद मेहता ने जो लिखा उसका ठोस आधार था. उन्होंने लिखा था कि सहजनानंद स्वामी ने अपने शिष्यों से कहा कि ''आप मेरी इतनी प्रशंसा कीजिए कि मेरी महिमा हर जगह हो.'' उन्होंने चमत्कारों के बारे में लोगों से बताने के लिए कहा था.

स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक सहजानंद स्वामी की घोड़े पर बैठी मूर्ति
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक सहजानंद स्वामी की घोड़े पर बैठी मूर्ति

प्रकाश शाह बताते हैं कि पिछले 25 सालों में स्वामीनारायण संप्रदाय का राजनीति से संपर्क गहरा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी से इनके संबंध काफ़ी अच्छे रहे हैं.

शाह कहते हैं, ''जैसे बीजेपी के हिन्दू धर्म के अन्य संप्रदायों और शक्ति के केंद्रों से अच्छे संबंध हैं वैसे ही यहां स्वामीनारायण से भी है. चाहे बाबा रामदेश हों या श्री श्री रविशंकर. सबसे बीजेपी के अच्छे संबंध हैं. बीजेपी का स्वामीनारायण के साथ रिश्ता काफ़ी अहम है. स्वामीनारायण का ही एक संगठन है अनुपम मिशन जो यूनिवर्सिटी में वीसी की नियुक्ति करता है.''

प्रकाश शाह कहते हैं स्वामीनारायण मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए कांग्रेस ने गुजरात में सत्याग्रह शुरू किया था. मंदिरों में पहले दलितों को प्रवेश नहीं था. शाह कहते हैं कि स्वामीनारायण में मंदिर में भी साधुओं के बीच जाति को लेकर भेदभाव है. उन्होंने कहा कि भगवा ऊंची जाति वाले पहनते हैं और सफ़ेद नीची जाति वाले.

स्वामीनारायण संप्रदाय
SAM PANTHAKY/AFP/Getty Images
स्वामीनारायण संप्रदाय

गौरांग जानी कहते हैं, ''बीजेपी के लिए स्वामीनारायण संप्रदाय ऊर्वर ज़मीन की तरह रहा है. बीजेपी ने गांधी को पीछे रख दिया और स्वामीनारायण को आत्मसात कर लिया''۔

अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई के मुताबिक स्वामीनारायण मंदिर से राजनीतिक पार्टियों को चंदा भी मिलता है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
The role of Swaminarayan sect in Gujarats politics
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X