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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, पुरुष अकेले व्यभिचार का दोषी कैसे? महिला पर भी चले मुकदमा

जब आज महिला और पुरुष को एक समान माना जाता है तो कानून इन्हें क्यों अलग मान रहा है? यही सवाल सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है। व्यभिचार या एडल्ट्री के केस में अब तक केवल पुरुषों पर मुकदमा चलता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा करने जा रहा है।

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Supreme Court

नई दिल्ली। जब आज महिला और पुरुष को एक समान माना जाता है तो कानून इन्हें क्यों अलग मान रहा है? यही सवाल सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है। व्यभिचार या एडल्ट्री के केस में अब तक केवल पुरुषों पर मुकदमा चलता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा करने जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह 157 साल पुराने प्रावधान की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा और चार सप्ताह में इसकी प्रतिक्रिया मांगने के लिए केंद्र को नोटिस जारी करेगा।

कोर्ट ने कहा, 'आपराधिक कानूनों में भेदभाव क्यों?'

कोर्ट ने कहा, 'आपराधिक कानूनों में भेदभाव क्यों?'

केरल के एक्टीविस्ट जोसेफ साइन ने सुप्रीम कोर्ट में आईपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती दी है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि ये समानता के हक के खिलाफ है। इसपर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्य पीठ ने इस धारा पर कई सवाल उठाए हैं। पीठ का कहना है कि जब महिला-पुरुष बराबर हैं तो आपराधिक कानूनों में ये भेदभाव क्यों? ये पुरुषों के साथ भेदभाव है।

व्यभिचार में महिलाओं को पीड़ित मानता है कानून

व्यभिचार में महिलाओं को पीड़ित मानता है कानून

आईपीसी की धारा 497 के तहत शादी के बाहर किसी महिला से संबंध बनाने वाले पुरुष पर व्यभिचार का मुकदमा चलता है और उसे पांच साल तक की सजा हो सकती है। लेकिन अगर व्यभिचार महिला ने किया हो तो वो उसे पीड़ित मानता है। संबंध बनाने में भले ही दोनों पक्षों की सहमति हो, लेकिन पीड़ित हमेशा महिलाओं को माना जाता है। कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर पति अपनी पत्नी को किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाने की इजाजत देता है, तो क्या वो महिला को एक वस्तु में नहीं बदल देता।

महिलाओं को क्यों न मिले सजा?

महिलाओं को क्यों न मिले सजा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून हमेशा महिलाओं को पीड़ित मानकर उन्हें संरक्षण नहीं दे सकता। ये कानून पुरुषों को समानता का अधिकार नहीं देता। यह जांचना आवश्यक है कि एक विवाहित महिला, जो एक विवाहित पुरुष के साथ व्यभिचार के अपराध के बराबर साथी हो सकती है, जो उसका पति नहीं है, उसे पुरुष के साथ क्यों दंडित नहीं किया जाना चाहिए।

समाज की प्रगति के साथ बदले सोच

समाज की प्रगति के साथ बदले सोच

सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने कहा कि वर्तमान में, कानून महिला के प्रति एक 'संरक्षक रवैया' मानता है और उसे एक पीड़ित के रूप में देखता है जो कि मौलिक अधिकारों और लिंग भेदभाव का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा समय आ गया है जब समाज को एहसास होना चाहिए कि महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर है। प्रथम दृष्ट्या से ये प्रावधान काफी पुरानी प्रतीत होती है। जब समाज की प्रगति होती है और अधिकार प्राप्त होते हैं, तो लोगों की सोच बदलती है।

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English summary
Supreme Court to examine law that only punishes men in adultery when women are equal partner in crime.
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