बेसहारों के घर के खंडहर में बदलने की कहानी
एक तीन मंज़िला विशालकाय सफ़ेद रंग में पुती इमारत जो कभी बेसहारा, बेघर और बेबस महिलाओं और लड़कियों का घर था.
आज श्री नगर कॉलोनी, रोहतक में स्थित ये इमारत ख़ुद बेबस, बेसहारा और बुढ़ापे की तरफ बढ़ चली हैं.
इसका लोहे का बारह फुट से ऊंचा गेट पिछले छह साल से बंद है और यहां कोई नहीं आता.
भारत विकास संघ संस्थान द्वारा चलाए जाने-वाला यह मकान "अपना घर" नाम से प्रसिद्ध था.
एक तीन मंज़िला विशालकाय सफ़ेद रंग में पुती इमारत जो कभी बेसहारा, बेघर और बेबस महिलाओं और लड़कियों का घर था.
आज श्री नगर कॉलोनी, रोहतक में स्थित ये इमारत ख़ुद बेबस, बेसहारा और बुढ़ापे की तरफ बढ़ चली हैं.
इसका लोहे का बारह फुट से ऊंचा गेट पिछले छह साल से बंद है और यहां कोई नहीं आता.
भारत विकास संघ संस्थान द्वारा चलाए जाने-वाला यह मकान "अपना घर" नाम से प्रसिद्ध था.
इसकी संचालिका जसवंती देवी, उसकी बेटी सिम्मी, दामाद जय भगवान, भाई जसवंत और पांच अन्य कर्मचारियों को पंचकूला की सीबीआई कोर्ट ने दोषी पाया है कि वो यहाँ पर लड़कियों से ग़लत काम करवाती थी, उनको डांस पार्टीज़ में भेजती थीं और जो सफेदपोश उसको सरकारी ग्रांट दिलवाने में मदद करते थे उनको ख़ुश रखने के लिए मासूम, नाबालिग़ लड़कियों को उनके साथ जाने के लिए मज़बूर करती थीं.
इन नौ अपराधियों के ख़िलाफ़ सज़ा का फ़ैसला जल्द आने वाला है. इनकी सरगना रोहतक के ही बहु अकबरपुर गांव की रहने वाली जसवंती देवी थीं.
जसवंती देवी जहां जेल की सलाखों के पीछे अपने पापों की सज़ा भुगत रही हैं वहीं 'अपना घर' नाम से जाने जाना वाला 450 गज़ में फैला हुआ ये तमाम सुख-सुविधा संपन्न महलनुमा मकान, जहां कभी सौ से ज़्यादा महिलायें और लड़कियां रहती थीं, आज अकेले में अपना समय काटने को मजबूर हैं.
जिन कुसिर्यों पर कभी सिर्फ़ वीआईपी सफ़ेदपोश या आला अधिकारी जसवंती को मैडम-मैडम कहकर पुकारते थे आज बरामदे में पड़ी वो कुर्सियां टूटी पड़ी हैं और मख़मल वाले कालीन काले धब्बेदार हो चुके हैं.
फ़र्श पर रेत की चादर दर्शाती है कि यहाँ सालों से किसी ने क़दम तक नहीं रखा. दिन में तीन-तीन बार जिन मेज़-कुर्सियों की सफ़ाई होती हों उनके ये हाल बयां करता है कि जसवंती देवी के पापों की सज़ा वो भी साझा कर रहे हैं.
तीन में से दो लोहे के दरवाज़ों की दरारों में इनकी बदहाली देखी जा सकती हैं. मानों ये पूछ रहे हों कि हमको किस बात की सज़ा दी जा रही है.
चालीस फुट की गली में से गुज़रते हुए, सफ़ेद रंग के इस मकान की दीवार पर कुछ फटे हुई पोस्टर हैं जिसमें से दो पर सरकार के मंत्रियो के फोटो चिपके हुए हैं. महिला हेल्पलाइन लाइन नंबर वाला साइन बोर्ड और दो स्प्लिट एयर कंडीशनर के पंखे अपनी जगह पर डटे हुए हैं.
पिछले वाला लोहे के करीब चार क्विंटल के गेट की जाली में से झांकने पर सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा दिखाई देता हैं.
कुछ देर चश्मदीद गवाह बने रहे पर सिर्फ़ बिल्ली की मियाऊं-मियाऊं, कबूतर की गुटरगू-गुटरगू सुनाई देती है.
पता नहीं कैसे जहां रौशनी भी नहीं जा सकती हो वहां चीटियाँ अपने सिर पर खाने का सामान लेकर निकल रही हैं. मानो कह रही हों अब बस बहुत हो गया हम भी यहाँ नहीं रहेंगे अपने लिए नया घर तलाशेंगे.
पोर्च वाले जगह में सफ़ेद एम्बुलेंस मिट्टी में लिपटकर काली और पीली हो चुकी हैं. यह वही एम्बुलेंस हैं जो बेबस महिलाओं और लड़कियों का पता लगते ही सहायता के लिए टायें-टायें करती हुई दौड़ती थी.
हालाँकि, आज की हालत को देखकर लगता है कि अब वो कभी नहीं चल पाएगी, चारों टायर फ्लैट हो चुके हैं. आस-पास चारों तरफ पक्षियों की बीट ने सफ़ेद फ़र्श का रंग पीला और हरा कर दिया है.
सिर्फ़ कबूतर, चिड़िया और बिल्ली ही नहीं, मकड़ी भी पूरे मकान पर अपना अधिकार सिद्ध कर रही हैं. मकड़ी के जाले इतने गहरे हैं कि सूरज की तपती रोशिनी को भी घर के आँगन में आने से पहले दीवार बनकर खड़ी रहती हैं.
अगर सीमेंट की दीवार के अलावा कुछ अलग सा दिखाई देता है तो वो है लोहे की कटी-फटी जालियां जिनका मुँह चालीस फ़ीट रोड की तरफ खुलता है.
कभी जसवंती देवी के आलीशान मकान की ये जालियां अब गूंगी हो चुकी हैं, यहाँ से अब आवाज़ नहीं आती.
वरना ऐसा हो ही नहीं सकता था कि कोई दिन में गली से गुज़रे और उनकी नज़र इन लोहे की महीन जालियों पर न पड़े.
पिछले छह साल से ये भी शाप को भुगत रही हैं, ना आसपास के लोग इस मकान के बारे में बात करते हैं और ना ही कोई पूछता है.
अब जब पंचकूला की सीबीआई कोर्ट को जसवंती और नौ लोगों के खिलाफ सज़ा का फ़ैसला सुनाना है तो क़रीब 1995 में बने हुए इस मकान का भविष्य भी उसी दिन तय होगा कि इसकी मालकिन जसवंती कितने सालों बाद आकर इसको संभालेंगी. अभी इस पर प्रशासन का कब्ज़ा है.
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