क्रिकेट के पूर्व कैप्टन के घर पहुंचे सरकार के वाइस कैप्टन, क्या खाया और क्या पकाया ?
नई दिल्ली, 09 मई। सरकार के वाइस कैप्टन शुक्रवार को क्रिकेट के पूर्व कैप्टन के घर गये। केंद्र सरकार में गृहमंत्री का पद नम्बर दो का ओहदा माना जाता है। इस लिहाज से अमित शाह सरकार के वाइस कैप्टन हुए। वे रात्रि भोज के लिए सौरव गांगुली के घर आमंत्रित थे। भोजन में बंगाल की सांस्कृतिक पहचान खुशबू बिखेर रही थी।
गुजरात के अमित शाह को बंगाली जायका पहुत पसंद आया। उन्होंने चावल, रोटी, लूची (बंगाल की खास पूड़ी), आलूदम, बेगुन भाजा, शाही पनीर, दाल मखनी, काजू की बर्फी, रसगुल्ला और मिष्टी दोई का आनंद उठाया।
गांगुली के घर के बाहर शाह-सौरभ जिंदाबाद के नारे
क्या अमित शाह का सौरव गांगुली के घर जाना महज शिष्टाचार मुलाकात थी? गृहमंत्री के साथ पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार, नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी और चिंतक स्वप्न दास गुप्त भी वहां गये थे। क्या यह इत्तेफाक था? क्या इस रात्रि भोज में सियासत का तड़का नहीं लगा था? अगर ऐसा ही था तब उस समय गांगुली के घर के बाहर शाह-सौरभ जिंदाबाद के नारे क्यों लग रहे थे? अगर यह रात्रि भोज व्यक्तिगत आयोजन था तब फिर ममता बनर्जी ने शाह को मिष्टी दोई खिलाने का कटाक्ष क्यों किया? क्या अमित शाह कड़वा बोलते हैं और वे उन्हें मीठा खिलाने की सलाह दे रही थीं ?
अटकलों से पहले ही सौरव ने दी सफाई
अमित शाह 6 जून को एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोलकाता आये थे। संस्कृति मंत्रालय ने कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में 'मुक्ति मातृका' कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में सौरव गांगुली की पत्नी डोना गांगुली ने अपनी मंडली 'दीक्षा मंजरी' के साथ नृत्य प्रस्तुत किया था। डोना भारत की मशहूर ओडिसी नृत्यांगना हैं। इस कार्यक्रम में सौरव गांगुली के अलावा उनके बड़े भाई और भाभी भी आये थे। तब सौरव ने गृहमंत्री को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया। गांगुली को मालूम था कि अमित शाह को अपने घर बुलाने पर राजनीतिक अटकलें शुरू होंगी, इसलिए उन्होंने पहले ही सफाई दे दी। उन्होंने मीडिया से कहा कि क्रिकेट की वजह से वे अमित शाह को 2008 से जानते हैं। बीसीसीआइ के अध्यक्ष के रूप में वे उनके पुत्र जय शाह (बीसीसीआइ के सचिव) के साथ काम करते हैं। ये पुराना जुड़ाव है। इसका राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है।
'सौरव का ऐसा कोई इरादा नहीं है'
सौरव गांगुली ने आखिर ये सफाई क्यों दी ? वे भाजपा में नहीं जा रहे, ये बताने के लिए ? पिछले साल से ही सौरव के भाजपा में जाने की चर्चा चलती रही है। अभी तक तो इसकी कोई संभावना नहीं दिख रही। शुक्रवार को जब फिर उनके भाजपा में जाने की अफवाह उड़ी तो डोना गांगुली ने कहा, सौरव का ऐसा कोई इरादा नहीं है। हालंकि जब वे राजनीति में आएंगे तब उन्हें भरोसा है कि वे क्रिकेट जैसा ही अच्छा प्रदर्शन करेंगे। सौरव गांगुली की राजनीतिक सोच क्या है ? क्रिकेट ने सौरव गांगुली को बुलंदियों पर पहुंचाया। पश्चिम बंगाल के लोग उन्हें दिलोजान से प्यार करते हैं। इसी प्यार की वजह से लोग उन्हें लोग प्रिस ऑफ कोलकाता कहते हैं। वे बंगाल के सांस्कृतिक गौरव की पहचान बन चुके हैं। ऐसे में सौरव के मन में राजनीति को लेकर हमेशा दुविधा रही है। उन्हें लगता है कि अगर वे राजनीतिक में आएंगे तो उनकी देशव्यापी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी।
पशोपेश में क्यों हैं सौरव गांगुली
दूसरी बात ये है कि वे राजनीति में अपनी टीम को लेकर भी पशोपेश में हैं। इधर जाएं कि उधर जाएं। वे तृणमूल कांग्रेस के भी नजदीक हैं और भाजपा के भी। वे ममता बनर्जी की भी बहुत इज्जत करते हैं। ममता बनर्जी भी उनसे बहुत स्नेह रखती हैं। दीदी ने 2015 में गांगुली को बंगाल क्रिकेट संघ का अध्यक्ष बनाने में बहुत मदद की थी। पिछले साल टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप प्रतियोगिता का फाइनल मैच दुबई में हुआ था। तब सौरव ने ममता बनर्जी को यह मैच देखने के लिए खास तौर पर निमंत्रण दिया था। यह पहला मौका था जब विदेश में आयोजित किसी बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता के लिए बीसीसीआइ ने किसी मुख्यमंत्री को न्योता दिया हो।
आखिर शाह की राजनीति क्या है
आमतौर पर ऐसे आयोजन में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को निमंत्रण दिया जाता रहा है। लेकिन सौरव ने लीक से हट कर फैसला लिया था। इससे समझा जा सकता है कि वे ममता बनर्जी का कितना सम्मान करते हैं। कई मौकों पर वे अपनी भावना प्रगट कर चुके हैं। दूसरी तरफ जय शाह के चलते वे अमित शाह के भी करीब हैं। 2009 में जब नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गये थे। उस समय अमित शाह गुजरात के गृहमंत्री थे। वे गुजरात क्रिकेट संघ के उपाध्यक्ष चुने गये थे। सौरव गांगुली ने अपना अंतिम टेस्ट मैच नवम्बर 2008 में खेला था। यानी तभी से सौरव की अमित शाह से जान-पहचान है। अमित शाह की राजनीति क्या है ? अमित शाह ने भाजपा को पश्चिम बंगाल में स्थापित करने का बीड़ा उठा रखा है। पिछले साल विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाने के बाद भी भाजपा का सफर 77 पर ही थाम गया था। बहुमत का लक्ष्य अभी भी बहुत दूर है। ऊपर से भाजपा विधायकों में पार्टी छोड़ने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में भाजपा का 'मिशन पश्चिम बंगाल' बीच में ही डगमगाने लगा है।
भाजपा का दामन थामने में हिचक रहे गांगुली
भाजपा में जान फूंकने की नीयत से ही गृहमंत्री गत शुक्रवार को कोलकाता पहुंचे थे। भाजपा को मजबूत करने के लिए वे कई रणनीति पर काम कर रहे हैं। उनकी ड्रीम टीम में बहुत पहले से सौरव गांगुली शामिल हैं। लेकिन बंगाल गौरव गांगुली भाजपा का दामन थामने में हिचक रहे हैं। पिछले साल उन्होंने भाजपा में शामिल होने से इंकार कर दिया था। उनकी तबीयत खराब थी इसलिए भाजपा ने भी बहुत जोर नहीं लगाया। अब यह कोशिश फिर शुरू हुई है। अमित शाह का सौरव के घर जाना एक राजनीतिक संकेत भी है। सौरव भाजपा में शामिल हों या न हों लेकिन अमित शाह उनसे अपने जुड़ाव को प्रचारित करना चाहते हैं। सौरव के भाजपा में शामिल होने की चर्चा से भी पार्टी को कुछ न कुछ फायदा मिल जाएगा। इससे बंगाल के भद्रजन समुदाय में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ेगी। एक तरफ भाजपा अपने को 'बंगाल विभूतियों' से जोड़ रही है तो दूसरी तरफ सीएए के एजेंडे पर भी काम कर रही है। पिछले चुनाव में मिथुन चक्रवर्ती को जोड़ा था। अब सौरव पर नजर है। भाजपा जानती है कि जब तक वह बंगाल की अस्मिता से नहीं जुड़ेगी तब तक उसकी जड़े गहरी नहीं होंगी।
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