प्राइवेट सेक्टर के खस्ता हाल ने रोजगार के लिए खड़ा किया बड़ा संकट
नई दिल्ली। 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्री की एनडीए सरकार से लोगों को भारी उम्मीद थी, माना जा रहा था कि नई सरकार के आने के बाद देश में निवेश बढ़ेगा और बड़ी संख्या में रोगजार का सृजन होगा। लेकिन हाल ही में जो आंकड़े सामने आए हैं वह इसके बिल्कुल उलट हैं। पिछले वर्ष दिसंबर के तिमाही के निवेश के आंकड़े पर नजर डालें तो यह अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी के आंकड़े के अनुसार भारती कंपनियों ने दिसंबर तिमाही में 1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश का ऐलान किया है जोकि सिंतबर की तिमाही की तुलना में 53 फीसदी कम है। वहीं पिछले वर्ष इसी तिमाही की बात करें तो यह 55 फीसदी कम है। प्राइवेट सेक्टर में जिस तरह से तमाम सेक्टर में प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं उसकी वजह से रोजगार पर भी काफी बड़ा असर पड़ा है। प्रोजेक्ट्स के शुरू नहीं हो पाने की वजह से रोजगार की संभावनाओँ को काफी नुकसान पहुंचा है।
निवेश में आई कमी की सबसे बड़ी वजह मौजूदा प्रोजेक्ट का रुके रहना है। प्राइवेट सेक्टर में मौजूदा 24 फीसदी प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं। इसके साथ ही खराब कर्ज, सरकार की नीतियों में बढ़ती अस्थिरता भी एक अहम वजह हैं जिसकी वजह से कई प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं। ऊर्जा सेक्टर और निर्माण क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिली है। ऊर्जा सेक्टर में 35.4 फीसदी प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं, जबकि निर्माण क्षेत्र में 29.2 फीसदी प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं।
जो तमाम प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं उसकी एक बड़ी वजह यह भी है फंड की कमी, कच्चे माल की कमी और मौजूदा बाजार में गिरावट। जिस तरह से बैंकों की स्थिति पिछले कुछ सालों में बिगड़ी है उसकी वजह से ये बैंक इन प्रोजेक्ट्स के लिए लोन देने की स्थिति में है। जिस तरह से लोकसभा चुनाव की तारीखों नजदीक आ गई है उसकी वजह से देश मे राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है, लिहाजा नए निवेश की संभावनाओं को लेकर खास उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
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