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तो यह है चाचा और भतीजे अखिलेश यादव का UP प्लान, लड़ेंगे साथ-साथ, दिखेंगे अलग-अलग!

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बेंगलुरू। समाजवादी पार्टी चीफ अखिलेश यादव का होली पर्व पर सैफई पहुंचने, प्रसपा चीफ और चाचा शिवपाल यादव का सार्वजनिक मंच पर पैर छूने और फिर चाचा-भतीजे नारे पर नाराजगी जताने की पटकथा 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए लिखी गई है, जिसका चरमोत्कर्ष सपा और प्रसपा के बीच चुनावी गठबंधन में छिपा है।

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दरअसल, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहले चाचा शिवपाल यादव की घर वापसी का सपना देख रहे थे, लेकिन अखिलेश यादव भूल गए थे कि जब उन्होंने चाचा रामगोपाल यादव की शह पर पिता और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव का तख्तापलट किया था, उसके बाद से ही चाचा शिवपाल यादव उनके साथ खिलाफ खड़े हो गए थे।

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गौरतलब है अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के मुखिया बनने के बाद चाचा शिवपाल यादव को बहुत अपमानित किया था। यही कारण था कि वर्ष 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव और 2019 में लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी में बिल्कुल कम सक्रिय दिखाई दिए और पार्टी को इसका खामियाजा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा जब पार्टी के पारंपरिक वोटर भी सपा से छिटककर भाजपा के पास चले गए।

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गत 1 जनवरी, 2017 को यानी वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सपा सुप्रीमो बने अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में राजनीतिक लड़ाई ठनी थी, जिसके बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा और लोकसभा के हुए दोनों चुनावों करारी हार का सामना करना पड़ा था। दोनों चुनावों में अखिलेश यादव की राजनीतिक सूझबूझ और कौशल का भी मुजाहरा हो चुका था।

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अखिलेश यादव की राजनीतिक समझ और काबिलियत का नमूना ही था 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गंठबंधन करके चुनाव में उतरी समाजवादी पार्टी महज 224 से 47 सीटों पर सिमट गई और 2019 लोकसभा चुनाव में धुर विरोधी बसपा के साथ किया गया गठबंधन भी फेल हो हुआ।

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उल्लेखनीय है पार्टी संरक्षक व संस्थापक मुलायम सिंह यादव बसपा के साथ गठबंधन से बिल्कुल तैयार नहीं थे, क्योंकि दोनों दलों के जातिगत वोट बैंक से मुलायम सिंह बखूबी परिचित थे। लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन करने वाली समाजवादी चारो खानो चित्त हो गई और महज 5 सीटों पर विजय पताका लहरा पाई जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में जीरो पर रही बसपा ने 10 सीट झटकने में कामयाब रही।

यह भी पढ़ें-अखिलेश यादव के, 'क्या भाई चाचा?' को 'हां भाई भतीजा' बोल पाएंगे शिवपाल यादव

बसपा से गठबंधन करके सपा को चुनाव में बेहद नुकसान हुआ था

बसपा से गठबंधन करके सपा को चुनाव में बेहद नुकसान हुआ था

बसपा से गठबंधन करके समाजवादी पार्टी को चुनाव में बेहद नुकसान हुआ। पार्टी कन्नौज सीट भी गंवा बैठी, जहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव उम्मीदवार थी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि दोनों दलों के पारंपरिक वोटरों ने वोट परस्पर विरोधी दलों को वोट देने में असहज थे। चुनाव के नतीजे के बाद बसपा फायदे में रही थी, क्योंकि समाजवादी पार्टी पारंपरिक वोटरों के वोट बसपा में शिफ्ट हो गए, जिससे पार्टी 10 जीतने में कामयाब रही, लेकिन बसाप के पारंपरिक वोटर्स ने सपा उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया, जिससे सपा की दुर्गति हुई और इसी को बहाना बनाकर मायावती ने सपा से भविष्य में गठबंधन से इनकार कर दिया।

अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा एक के बाद एक लगातार 3 चुनाव हारी

अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा एक के बाद एक लगातार 3 चुनाव हारी

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी एक के बाद एक लगातार तीन चुनाव में बुरी तरह हारती आई है। इनमें 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव प्रमुखा हैं। हालांकि गोरखपुर और कैरना के उपचुनाव में अखिलेश यादव ने आंशिक सफलता का स्वाद जरूर चखा था, लेकिन वह केवल उपचुनाव तक ही सीमित रह सका। इसे अखिलेश यादव की दूरदर्शिता की कमी ही कहेंगे कि जनता ने वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में अकेली लड़ी सपा बहुमत सौंपकर सत्ता पर बिठाया था, लेकिन वर्ष 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हें बुरी तरह उठाकर पटक दिया था।

2012 विधानसभा चुनाव में 30% वोट के साथ SP ने जीती थीं 224 सीट

2012 विधानसभा चुनाव में 30% वोट के साथ SP ने जीती थीं 224 सीट

वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में सपा कुल 29.29 फीसदी वोट हासिल किए थे, लेकिन वर्ष 2017 में हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव में उतरी सपा को महज 47 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी और उसका वोट शेयर भी गिरकर 21.8 फीसदी पहुंच गया। सपा के वोट शेयर में करीब 8 फीसदी की कम आई, जिसका सीधा कारण यूपी में खत्म हो चुकी कांग्रेस के साथ उसका गठबंधन था। वर्ष 2017 में सपा के साथ गठबंधन में उतरी कांग्रेस कुल 114 सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ 6.2 फीसदी वोट हासिल कर सकी। कह सकते हैं कि अखिलेश यादव पिछले यूपी विधानसभा चुनाव और पिछले दो लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी के चलते पार्टी को गर्त में ले गए।

 कई सालों बाद अखिलेश यादव इस बार सैफई होली खेलने पहुंचे

कई सालों बाद अखिलेश यादव इस बार सैफई होली खेलने पहुंचे

यही वजह है कि अखिलेश यादव कई सालों बाद अखिलेश यादव इस बार सैफई होली खेलने पहुंचे और वहां पहुंचकर चाचा शिवपाल सिंह यादव के पैर छुए। यही नहीं, होली पर्व पर चाचा शिवपाल को चचेरे भाई रामगोपाल यादव का पैर छूते हुए देखा गया, जिनके दिशा-निर्देश पर कभी अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल यादव का पार्टी प्रमुख और यूपी प्रमख पद से तख्तापलट किया था। हालांकि परिवार री यूनियन से उत्साहित होकर जब कार्यकर्ताओं ने चाचा भतीजा जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू किए तो अखिलेश नाराज हो गए। अखिलेश यादव का यह नाराजगी स्वाभाविक थी, क्योंकि चाचा-भतीजा जिंदाबाद के नारे उन्हें चिढ़ा रहे थे जबकि शिवपाल यादव यह सुनकर अंदर ही अंदर मुस्कुरा रहे थे।

होली पर्व पर सपा परिवार के री यूनियन के बाद चला अटकलों का दौर

होली पर्व पर सपा परिवार के री यूनियन के बाद चला अटकलों का दौर

होली पर्व पर समाजवादी पार्टी परिवार के री यूनियन के बाद ऐसी अटकले चलाई जाने लगीं कि कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा और बहुजन समाज पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव लडऩे वाली समाजवादी पार्टी अब एकला चलो की राह पर है और शिवपाल यादव और अखिलेश यादव एक साथ आएंगे, लेकिन प्रतापगढ़ पहुंचे शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का नादान नेता कहकर अलग शिगूफा शुरू कर दिया। बाराबंकी में दिए बयान में शिवपाल यादव से पार्टी के समाजवादी पार्टी में विलय करने की अफवाह की भी हवा निकाल दी।.

चाचा शिवपाल ने भतीजे के साथ गठबंधन के रोशनदान को खुला छोड़ा है

चाचा शिवपाल ने भतीजे के साथ गठबंधन के रोशनदान को खुला छोड़ा है

हालांकि चाचा शिवपाल यादव ने आगामी चुनाव में भतीजे अखिलेश यादव के साथ गठबंधन के रोशनदान को खुला छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें सम्मान दिया गया तो समाजवादी पार्टी के गठबंधन से पार्टी को कोई परहेज नहीं है। यही वजह है कि हालिया बयान में अखिलेश यादव ने 2022 उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सरकार के सत्ता में लौटने का दावा करते फिर रहे हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में अलग-अलग चुनाव लड़कर चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव को अपनी वस्तुस्थिति का एहसास हो चुका है।

2022 में सपा और प्रसपा गठबंधन में लड़ सकती है विधानसभा चुनाव

2022 में सपा और प्रसपा गठबंधन में लड़ सकती है विधानसभा चुनाव

पूरी संभावना है कि समाजवादी पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अलग-अलग, लेकिन गठबंधन में चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में एक बार फिर काम के बदौलत सत्ता में वापसी की संभावना तलाश रहे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भूल गए हैं कि 2017 विधानसभा चुनाव में काम बोलता है नारा बुरी तरह फेल हो गया था।

चुनाव जीतने के लिए राम-हनुमान को नहीं, काम को पकड़ूंगाः अखिलेश यादव

चुनाव जीतने के लिए राम-हनुमान को नहीं, काम को पकड़ूंगाः अखिलेश यादव

बकौल अखिलेश यादव, 2022 में मुझे अपनी पार्टी की सरकार बनाने के लिए राम और हनुमान पकडऩे की जरूरत नहीं, काम को पकड़ूंगा। अपने काम काम पर वोट मांगूंगा। अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि इस बार साइकिल और सभी जाति धर्म को मिलाकर चुनाव जीतेंगे। हालांकि कन्नौज में जयश्री राम के नारे पर अपनी नाराजगी पर उन्हें सफाई देनी जरूर पड़ गई जब उन्होंने मंच से तल्खी भरे अंदाज में जयश्री बोलेने वाले को सबक सिखाने के लिए उसकी कुंडली तक खंगाल डाली थी।

अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते!

अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते!

एनआरसी, सीएए और एनपीआर के विरोध में खड़े समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों को नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते है, लेकिन जयश्री राम बोलने पर उन्हें आपत्ति है। सीएए के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण करेंगे, लेकिन उम्मीद करते हैं कि 2022 विधानसभा चुनाव में साइकिल को सभी जाति धर्म मिलकर उन्हें वोट दे। समाजवादी पार्टी के मुखिया ने बाकायदा ऐलान किया है कि समाजवादी पार्टी के लोग 2021 जनगणना के दौरान एनपीआर का फॉर्म नहीं भरेंगे।

Comments
English summary
Former UP Chief Minister Akhilesh Yadav was at first dreaming of returning home to uncle Shivpal Yadav, but Akhilesh Yadav forgot that when he overthrew father and SP founder Mulayam Singh Yadav and uncle Shivpal Yadav at the behest of uncle Ram Gopal Yadav, Since then, uncle Shivpal Yadav had stood against him.
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