क्या भारत को चीन के साथ व्यापार का बहिष्कार करना चाहिए? जानिए इसके नुकसान-फायदे
नई दिल्ली। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के बीच देश में चीनी उत्पादों का विरोध हो रहा है और चीनी उत्पाद के बहिष्कार की बात कही जा रही है। लोग चीन के राष्ट्रपति का पुतला फूंक रहे हैं, घर से टीवी और अप्लायंसेस फेंक रहे हैं और तोड़ रहे हैं, दुकानों पर चीनी उत्पाद उपलब्ध नहीं है का साइन बोर्ड लगा रहे हैं। सोशल मीडिया पर इसको लेकर एक अभियान चलाया जा रहा है। ना सिर्फ सोशल मीडिया, आम जनता बल्कि कई ट्रेड यूनियन, व्यापार संगठन, बड़े-बड़े नेता भी शामिल है। लेकिन क्या सच में चीनी उत्पाद का बहिष्कार करना भारत के हित में है, इसे हमे समझना जरूरी है। अगर तथ्यों और तर्कों की बुनियाद पर बात करें तो यह विरोध देश को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।
कितना व्यापार करता है भारत, चीन से?
भारत का चीन से कुल आयात-निर्यात 14%-5% है। वहीं यूएस डॉलर में दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात की बात करें तो चीन के कुल निर्यात का महज 3 फीसदी हिस्सा ही भारत से है। जबकि आयात का महज एक फीसदी या उससे भी कम हिस्सा भारत से है। यानि जो बहिष्कार भारत में चीन का हो रहा है वही बहिष्कार अगर चीन ने भारत के साथ किया तो उसे महज एक फीसदी का नुकसान होगा। लिहाजा चीनी उत्पादों का बहिष्कार का भारत को ज्यादा नुकसान होगा, बल्कि चीन को बिल्कुल नहीं। इसका एक बड़ा असर यह भी होगा की बाजार में व्यापार में प्रतिस्पर्धा काफी कम होगी।
चीन के बहिष्कार से भारत को नुकसान
- चीन से आने वाले कच्चे माल को रोकने से कई उद्योग-धंधों पर असर पड़ेगा और सामान महंगा होगा
- भारत में कई ऐसे उद्योग हैं जो चीन के कच्चे माल पर निर्भर है, लिहाजा उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा
- पहले से जिन व्यापारियों ने चीनी माल खरीद रखा है, उन्हें माल बेचने में दिक्कत होगी और उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा
- सस्ता सामान नहीं मिलने का सीधा असर गरीबों पर होगा
- पहले से खस्ताहाल अर्थव्यवस्ता और जीडीपी और बिगड़ेगी
- चीन से आने वाले सामान का विकल्प हमारे पास मौजूद नहीं
- भारत को बड़े व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ेगा
- WTO के नियमों का जो उल्लंघन का देश को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नुकसान होगा
- विदेशी निवेश (FDI) को नुकसान पहुंचेगा, अन्य देश भी निवेश से हिचकेंगे।
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वैश्वीकरण हर देश के हित में
वैश्विकरण के इस दौर में अलग-अलग देशों की अलग-अलग कुशलता है और उनकी अलग-अलग क्षमता होती है। दुनियाभर के देश एक दूसरे से आपस में व्यापारिक जरूरतों को लिए जुड़े होते हैं। लिहाजा जो देश जिस काम में दक्ष है उसका लाभ अन्य देश उठाते हैं। यानि अगर कोई देश को उत्पाद अच्छा बनाता है और उसकी तकनीक अच्छी है तो दूसरा देश उसके साथ व्यापार करके उसका लाभ उठा सकता है। लेकिन अगर उस देश का विरोध होगा तो वह देश के लिए हितकारी नहीं होगा।
आसान नहीं है चीन का बहिष्कार
वैश्विकरण के इस दौर में चीन का बहिष्कार लगभग असंभव है। मैन्युफैक्चरिंग के मामले में चीन दुनियाभर के देशों से कहीं आके हैं। तमाम देशों में चीन कच्चे माल और सेवाओं का निर्यात करता है। उदाहरण के दौर पर आई फोन की बात करें तो उसमे चीन की सेवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। या किसी ऐसे उत्पाद की बात करें जिसमे चीन की स्टील का इस्तेमाल होता है तो आप कैसे उसकी पहचान करेंगे और उसका बहिष्कार करेंगे। चीन के सामान और सर्विस दुनियाभर में जाती हैं।
क्या है बेहतर विकल्प
चीनी उत्पाद का बहिष्कार करने से बेहतर विकल्प भारत के लिए यह है कि वह अपने देश में उद्योग-धंदे, इंडस्ट्री, फैक्ट्रियों को बढ़ावा दे। इन्हें बढ़ाने के लिए नीतियों में बदलाव किया जाए, इन्स्पेक्टर राज, भ्रष्टाचार को खत्म कर माहौल को उद्योग के अनुकूल किया जाए। फैक्ट्री और उद्योग धंधों को सुचारू रूप से चलाने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं को मुहैया कराया जाए। नौकरशाही को जितना हो सके कम कर अधिक से अधिक पारदर्शिता लाई जाए, जिससे छोटे उद्योग-धंधे, फैक्ट्रियां आगे बढ़ें। आत्मनिर्भर भारत को अधिक से अधिक बढ़ावा जाए और सरकार इसके लिए युद्ध स्तर पर काम करे। जिससे कि चीन पर देश की निर्भरता कम हो और देश का निर्यात बढ़े।
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