
शिवसेना का कांग्रेस-NCP से मोहभंग! भाजपा के साथ लौटने को मजबूर हुए उद्धव ?
नई दिल्ली, 12 जुलाई: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपने लोकसभा सांसदों के दबाव में राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे सकती है। इसका संकेत उद्धव के खासमखास नेता संजय राउत ने आज दिया है। कल उद्धव के घर पर इसी मसले पर पार्टी सांसदों के साथ हुई बैठक के एक दिन बाद राउत ने ये इशारा किया है। जानकारी के मुताबिक शिवसेना के अधिकतर सांसदों को अभी भी लगता है कि यदि पार्टी ने मुर्मू का समर्थन कर दिया तो एकनाथ शिंदे गुट और भाजपा के साथ फिर से गठबंधन का रास्ता खुल सकता है। उद्धव ठाकरे के खेमे में चल रही इस सियासी पैंतरेबाजी ने लगता है कि एनसीपी को भी नाराज किया है। क्योंकि, पार्टी चीफ शरद पवार ने अब औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलने पर ऐतराज जता दिया है।

शिवसेना ने दिए द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने के संकेत
लगता है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे गुट ने पार्टी में एक और टूट को रोकने के लिए अपने सांसदों के दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं। सोमवार को मुंबई में उनके आवास मातोश्री में हुई पार्टी सांसदों की बैठक में शिवसेना के 19 में से 12 सांसदों ने एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का दबाव डाला था। अब पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने एएनआई से कहा है, 'हमने अपनी बैठक में द्रौपदी मुर्मू पर चर्चा की...... द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का मतलब बीजेपी का समर्थन करना नहीं है। शिवसेना की भूमिका एक-दो दिन में साफ हो जाएगी।'

शिवसेना दबाव में फैसले नहीं लेती है-राउत
वैसे शिवसेना नेता संजय राउत ने यह भी दावा किया है कि शिवसेना जो भी फैसला लेगी, बिना दबाव में लेगी। उनका कहना है, 'विपक्ष जिंदा रहना चाहिए। विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के प्रति भी हमारी सद्भावना है... हमने पहले प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया था...एनडीए उम्मीदवार का नहीं। हमने प्रणब मुखर्जी का भी समर्थन किया था। शिवसेना दबाव में फैसले नहीं लेती है।' वैसे सूत्रों का कहना है कि राउत तो अभी भी यशवंत सिन्हा के लिए बैटिंग करना चाह रहे हैं, लेकिन पार्टी के ज्यादातर सांसद इसके पक्ष में नहीं हैं। बता दें कि शिवसेना के 19 लोकसभा सांसदों में से 18 महाराष्ट्र से और 1 कलाबेन डेलकर दादरा और नागर हवेली की लोकसभा सांसद हैं।

शिंदे गुट और बीजेपी से सुलह का खुल सकता है रास्ता!
अंदर की जानकारी के मुताबिक शिवसेना के सांसदों ने उद्धव को इशारों में यह भी समझाने की कोशिश की है एकबार अगर उनकी पार्टी ने मुर्मू को समर्थन देने का औपचारिक ऐलान कर दिया तो एकनाथ शिंदे गुट और बीजेपी के साथ सुलह नया रास्ता खुल सकता है। यही नहीं पार्टी सांसदों ने पूर्व सीएम से यह भी कहा है कि वैसे तो वे उनके साथ हैं, लेकिन भाजपा के साथ गठबंधन के बिना 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना पार्टी के लिए मुश्किल हो सकता है। इनका कहना है कि अगर शिवसेना बीजेपी के साथ नहीं लौटी तो उसका सियासी भविष्य प्रभावित हो सकता है। गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे ने 2019 में बीजेपी पर मुख्यमंत्री पद को लेकर वादाखिलाफी का आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ लिया था और विरोधी दलों एनसीपी और कांग्रेस से मिलकर सरकार बना ली थी।

शहरों का नाम बदलने पर नाराज है पवार-रिपोर्ट
उधर शिवसेना में जारी संकट का असर महाराष्ट्र की मुख्य विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी पर भी साफ नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले अपनी कैबिनेट के आखिरी बैठक में पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने का फैसला लिया था। कैबिनेट की बैठक में कांग्रेस और एनसीपी कोटे के मंत्री भी मौजूद थे। लेकिन, टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक अब एनसीपी सुप्रीमो ने 28 जून के उस निर्णय को उद्धव ठाकरे का 'एकतरफा फैसला' बताया है। रविवार को पवार ने कहा है कि शहरों का नाम बदलना शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के एमवीए सरकार के लिए बने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का हिस्सा नहीं था। एनसीपी के एक नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर दावा किया है कि शहरों के नाम बदलने का प्रस्ताव चुपचाप और बिना किसी चर्चा के पास किया गया था।

मुस्लिम वोट बैंक की वजह से नाराज हुए पवार ?
दरअसल, महाविकास अघाड़ी सरकार के औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदलने के फैसले को लेकर कांग्रेस और एनसीपी के मुस्लिम नेता परेशान हैं। इसके विरोध में उसी समय औरंगाबाद और मराठवाड़ा में सैकड़ों कांग्रेस पदाधिकारियों और कार्यकताओं ने इस्तीफा भी दे दिया था। कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता ने तब नाम नहीं जाहिर होने की शर्त पर कहा था, 'हम में से कई लोग हैरान हैं कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों के नेताओं ने बिना किसी आपत्ति के प्रस्ताव को मंजूर कर दिया। समुदाय में और जो लोग धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास करते हैं, उन सभी में इसका गलत संदेश गया है।' (इनपुट एएनआई से भी)