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नाराज किसानों का तोड़ है अकाली-बसपा गठबंधन?, 31 फीसदी दलितों पर बादल परिवार की नजर

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नई दिल्ली, जून 12: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में गठबंधन कर लिया है। पंजाब के विशाल दलित वोट बैंक को देखते हुए दोनों पार्टियां 25 साल बाद एक साथ आई हैं। पंजाब में लगभग 31 प्रतिशत मतदाता दलित हैं और राजनीतिक दलों के भाग्य का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गठबंधन की घोषणा शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और बसपा नेता सतीश मिश्रा ने शनिवार को संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में की।

शिअद 97 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी

शिअद 97 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी

सुखबीर ने कहा कि पंजाब विधानसभा चुनाव में कुल 117 सीटों में ये 20 पर बसपा चुनाव लड़ेगी और शिअद 97 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेगी। इस अवसर पर बसपा नेता और सांसद सतीश मिश्रा ने कहा कि यह पंजाब की सियासत में यह ऐतिहासिक दिन है, जब बसपा और शिअद का गठबंधन हुआ है। अब पंजाब की यह सबसे बड़ी सियासी ताकत हो गई है। दोनों दलों ने 1996 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी।

31 प्रतिशत दलित वोटों पर दोनों दलों का नजर

31 प्रतिशत दलित वोटों पर दोनों दलों का नजर

दोआबा क्षेत्र में, जिसमें 31 प्रतिशत दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा है, बसपा आठ सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी मालवा की सात और माझा क्षेत्र की पांच सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारेगी। बसपा को जो विधानसभा क्षेत्र आवंटित किए गए हैं उनमें करतारपुर साहिब, जालंधर-पश्चिम, जालंधर-उत्तर, फगवाड़ा, होशियारपुर, टांडा, दसूया, चमकौर साहिब, बस्सी पठाना, महल कलां, नवांशहर, लुधियाना उत्तर, सुजानपुर, बोहा, पठानकोट, आनंदपुर साहिब, मोहाली, अमृतसर मध्य और उत्तर और पायल शामिल हैं।

दलित वर्ग से डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान

दलित वर्ग से डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान

अकाली दल बीएसपी के सहारे इस दलित वोट बैंक को हासिल कर एक बार फिर से सत्ता में आने की कोशिशों में जुटी है। अकाली दल ने दलित वोट बैंक को लुभाने को लेकर पहले ही ऐलान कर दिया है कि अगर प्रदेश में अकाली दल की सरकार बनती है तो उपमुख्यमंत्री दलित वर्ग से बनाया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि अकाली दल ने किसानों के चल रहे आंदोलन के संदर्भ में यह रणनीतिक गठबंधन किया था।

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अकाली दल के लिए कृषि कानून बड़ा खतरा

अकाली दल के लिए कृषि कानून बड़ा खतरा

विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि लोकसभा द्वारा विवादास्पद कृषि कानून पारित किए जाने के बाद शिअद ने भाजपा से नाता तोड़ लिया था, लेकिन वह इस धारणा को खारिज करने में विफल रही कि उसने विधेयकों को पारित होने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया। यह कानून पारित होने के बाद हुए नगर निकाय चुनावों के दौरान स्पष्ट तौर पर दिखा कि अकाली दल भारी हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के भीतरी जानकारों का मानना है कि, किसान अभी भी कृषि कानूनों को लेकर नाराज हैं। इसलिए पार्टी को लगता है कि वह जाति के आधार पर काम कर सकती है और इसलिए एक ऐसी पार्टी के साथ गठजोड़ कर सकती है जिसने राज्य में दलित बहुल इलाकों में ऐतिहासिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। यही कारण है कि शिअद ने दोआबा क्षेत्र की 23 में से आठ सीटें गठबंधन सहयोगी को दे दी हैं।

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English summary
Shiromani Akali Dal and Bahujan Samaj Party formally stitched an alliance in Punjab Farmers Dalits
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