सुप्रीम कोर्ट में जनरल कैटेगरी के 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने की याचिक खारिज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक संशोधन को चुनौती देने वाली इस याचिका पर शुक्रवार को केंद्र को नोटिस भी जारी किया है। राजनीतिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने सरकार की इस फैसले का विरोध जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को टैग किया था।
पूनावाला ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि आर्थिक और पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने पूनावाला की इस याचिका को खारिज कर दिया है। इससे पहले भी कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। संविधान के मुताबिक, 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण संभव नहीं है, लेकिन मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन कर आर्थिक और पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए कानून बनाया है, जिससे कि आरक्षण का कोटा बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गया है।
याचिका में कहा गया है, 'संवैधानिक संशोधन ने इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले द्वारा निर्धारित कानून का औपचारिक रूप से उल्लंघन किया है... और सिद्धांतिक तौर पर आरक्षण के उद्देश्यों के लिए पिछड़ापन केवल आर्थिक स्थिति पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है।' पूनावाला ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि मंडल मामले में 1992 में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया सुनाते हुए कहा था कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।
याचिका में संविधान में हुए संशोधन का विरोध जताते हुए कहा गया कि यह 50 फीसदी से आरक्षण पूरी तरह से संविधान का उल्लंघन है। इससे पहले देश के सबसे बड़े कोर्ट ने 25 जनवरी को बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने उस वक्त सरकार को नोटिस जारी कर कहा था वे इस पर जांच करेंगे, तब तक इस पर रोक नहीं लगेगी।