'ज़ीरो' बनने से बचने के लिए क्या करते हैं सलमान, शाहरुख़ ख़ान
जयंतीलाल गड़ा का मानना है कि जब कोई बड़ा स्टार फ़िल्म की मार्केटिंग से जुड़ा होता है तो दबाव अधिक होता है. स्टार के पिछले काम और इमेज को देखते हुए मार्केटिंग की रणनीति बनानी होती है. वही छोटी फ़िल्म की मार्केटिंग आसान होती है क्योंकि उसमें किसी की दखलंदाज़ी नहीं होती उन्हें सिर्फ फ़िल्म का कॉन्टेंट ही बेचना होता है.
एक अच्छी फ़िल्म की मार्केटिंग फ़िल्म को 30 फीसदी का फ़ायदा दिला सकती है वही अगर फ़िल्म की ग़लत मार्केटिंग हुई तो उतने का ही नुक़सान उठाना पड़ सकता है.
'ग़जनी' के प्रमोशन के लिए आमिर ख़ान सैलून में जाकर हज्जाम का रोल निभा रहे थे. आप भूले नहीं होंगे.
दर्शक सिनेमाहॉल तक चले आएं, इसके लिए नए-नए तरक़ीब आजमाए जा रहे हैं, जिसे आज कल फ़िल्म प्रोमोशन और फ़िल्म मार्केटिंग का नाम दिया जाता है.
फ़िल्म मार्केटिंग की अहमियत का जिक्र करते हुए टी-सिरीज़ के ग्लोबल मार्केटिंग प्रेसिडेंट और सह-निर्माता विनोद भानुशाली कहते हैं, "भारत में लोग फ़िल्म बहुत देखते हैं लेकिन हमारे देश में थिएटर में पैसे खर्च करके फ़िल्म देखने वालो की संख्या चार करोड़ से भी कम है और देश भर में तकरीबन साढ़े आठ हज़ार स्क्रीन हैं. इन दर्शकों को थिएटर तक लाना हमारा लक्ष्य होता है क्योंकि फ़िल्म की असल कमाई यहीं से आती है."
आप गिनते-गिनते थक जाएंगे, बॉलीवुड हर साल उतनी फ़िल्में बना रहा है. ट्रेड पंडित तो यहां तक कहते हैं कि ये संख्या हज़ार से ज़्यादा है.
जहाँ एक ज़माने में पोस्टर देखकर दर्शक सिनेमाघरों की तरफ़ खींचे चले आते थे, आज पोस्टर, होर्डिंग या ट्रेलर दर्शकों को सिनेमाघर तक लाने के लिए काफी नहीं रह गए हैं.
शाहरुख़ खान भी अपनी फ़िल्मों की मार्केटिंग बहुत ही अनोखे तरीके से करते आए हैं.
फ़िल्म 'रा.वन' के प्रमोशन के दौरान शाहरुख़ पहले भारतीय स्टार बने जो गूगल प्लस से जुड़े और दर्शकों से रूबरू हुए.
'हैप्पी न्यू ईयर' की थीम के मुताबिक शाहरुख़ और पूरी टीम ने 'स्लैम वर्ल्ड टूर' किया.
शाहरुख़ के मुंबई निवास 'मन्नत' की दिवार पर एक फ़ैन द्वारा ग्राफ़िटी बनाई गई जो उनकी फ़िल्म 'फ़ैन' के प्रोमोशन का हिस्सा था.
शाहरुख़ खान अपनी आने वाली फ़िल्म 'ज़ीरो' में एक बौने का किरदार निभा रहे हैं.
उनके बौने किरदार का नाम 'बऊआ सिंह' है. फ़िल्म का प्रमोशन कुछ अनोखे ही तरीके से किया जा रहा है.
उनके किरदार 'बऊआ सिंह' को दर्शकों से रूबरू करवाने के लिए 'अमेज़न अलेक्सा' पर उपलब्ध करवाया गया है.
व्हॉट्सऐप पर किरदार के इमोटिकॉन और GIF भी बनाये गए हैं. ट्विटर पर 'बऊआ सिंह' किरदार का अकाउंट भी है जिससे वो दर्शकों से अपने अंदाज़ में बात कर रहा है.
फ़िल्म की मार्केटिंग पर शाहरुख़ खान कहते हैं, "बऊआ का किरदार मेरे लिए बहुत ही अजीब प्राणी है. मैं उसे किसी को समझा नहीं सकता. वो मेरे जैसा नहीं है. फ़िल्म की मार्केटिंग इस तरह से करने की कोशिश की है कि लोग जब थिएटर में फ़िल्म देखने जाएं तो शुरुआत के 10 मिनट में भूल जाएं कि शाहरुख़ खान बौने का क़िरदार निभा रहा है. आप उसे पसंद करें या रिजेक्ट करें तो सिर्फ़ बऊआ समझकर. इसलिए हमारी मार्केटिंग भी किरदार की तरफ है."
शाहरुख़ मानते हैं कि फ़िल्म की मार्केटिंग बहुत ज़रूरी है क्योंकि फ़िल्म 'ज़ीरो' अलग और महंगी फ़िल्म है.
क्रिसमस पर फ़िल्म रिलीज़ हो रही है और इसलिए वो फ़िल्म के अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं.
क्यों अनोखी मार्केटिंग की ज़रूरत
साल 2008 में रिलीज़ हुई आमिर खान की फ़िल्म 'ग़जनी' में आमिर खान दर्शकों को अपनी फ़िल्म की तरफ़ रुझान बढ़ाने के लिए नाई बने और एक फ़ैन को नया हेअरकट 'ग़जनी हेअरकट' दिया. 'ग़जनी हेअरकट' ट्रेंड बन गया और पूरे देश में कई फैंस ने ये हेअरकट स्टाइल अपनाया.
फ़िल्म की ये अनोख़ी मार्केटिंग कामियाब रही और फ़िल्म को फ़ायदा हुआ.
साल 2009 में राजकुमार हिरानी की फ़िल्म '3 इडियट्स' का एक अनोखा प्रोमोशन हुआ.
फ़िल्म के थीम को मद्देनज़र रखते हुए मुख्य किरदार निभा रहे आमिर ख़ान दो हफ़्ते के लिए ग़ुमशुदा हो गए और उनके दोस्त का क़िरदार निभाने वाले आर माधवन और शरमन जोशी पूरे देश में उनकी खोज करने लगे.
इस अनोखे प्रोमोशन ने दर्शकों के बीच फ़िल्म के लिए जिज्ञासा जगाई. फ़िल्म उस समय की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म बनी.
विद्या बालन की 2012 में आई फ़िल्म 'कहानी' का अनोखा प्रमोशन हुआ जहाँ विद्या गर्भवती महिला बनकर घूम रही थीं.
'कहानी' पहली महिला प्रधान फ़िल्म बनी, जिसने 100 करोड़ कमाए.
वहीं, साल 2014 में आई विद्या की फ़िल्म 'बॉबी जासूस' के प्रमोशन के लिए विद्या ने अलग-अलग ड्रेस पहने.
एक वेशभूषा में वो भिखारी भी बनीं जिसका वीडियो बहुत पॉपुलर भी हुआ.
पेन प्रोडक्शन द्वारा निर्मित 'कहानी' के निर्माता जयंतीलाल गड़ा का मानना है कि फ़िल्मों की मार्केटिंग बहुत ज़रूरी है क्यूंकि फ़िल्मी व्यापार बहुत ही जोख़िम भरा व्यापार है.
"दर्शकों को सिनेमाहॉल तक लाने के लिए किसी भी फ़िल्म को लगभग दो महीने समय मिलता है. इसलिए ये काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है."
'कहानी' की मार्केटिंग पर जयंतीलाल गड़ा कहते हैं, "कहानी से पहले सुजॉय घोष की फ़िल्म फ्लॉप हुई थी. उस पर अच्छी फ़िल्म बनाने का दबाव था. अगर फ़िल्म अच्छी ना होती तो मार्केटिंग नाकाम हो जाती. अच्छी कहानी और अच्छी मार्केटिंग दोनों ही ज़रूरी है फ़िल्म की सफलता के लिए."
डिजिटल माध्यम और फ़िल्म मार्केटिंग
तकरीबन 300 फ़िल्मों को डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फ़िल्मों का प्रमोशन कर चुके एवेरीमिडिया टेक्नॉलॉजीज़ के सीईओ गौतम बी ठक्कर का कहना है कि आज के दौर में डिजिटल मार्केटिंग भारत में ना सिर्फ किफ़ायती है बल्कि सबसे ज़्यादा प्रभावशाली भी है.
वो आगे कहते हैं, "मुंबई में रहने वालों को फ़िल्म स्टार दिखाना आम बात है पर भारत के छोटे शहर में फ़िल्मी कलाकारों को देखने का ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम ही ज़रिया है. इन शहरों में फ़िल्मी कॉन्टेंट की भूख है. इन दर्शकों तक पहुंचने के लिए डिजिटल मार्केटिंग बहुत ही ज़रूरी होती है और फ़िल्म का परसेप्शन भी बनता है."
जयंती लाल गड़ा का मानना है, "डिजिटल से फ़िल्मकारों का काम आसान हो गया है क्योंकि इस सवाल का जवाब मिल जाता है कि उनकी फ़िल्म की मार्केटिंग कितने दर्शकों तक पहुँच रही है, फ़िल्म का ट्रेलर कितने दर्शकों ने देखा. उदहारण के तौर पर अगर एक लाख दर्शक तक ट्रेलर पहुंचा है तो तकरीबन पांच हज़ार दर्शक फ़िल्म देखने थिएटर में आ सकते है."
टी-सिरीज़ के विनोद भानुशाली भी जयंतीलाल गड़ा से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.
वे कहते हैं, "डिजिटल प्लेटफार्म टूल से दर्शकों के मिज़ाज़ का पता चल जाता है कि किस तरह की फ़िल्में वो पसंद कर रहे हैं. कौन सा दर्शक सालाना कितनी फ़िल्में देखता है जिसका इस्तेमाल मार्केटिंग में होता है. डिजिटल माध्यम से हम एक जागरूक दर्शक तक पहुंचने की कोशिश करते है इसलिए इसका इस्तेमाल बहुत ही सूझबूझ के साथ करना पड़ता है."
गौतम बी ठक्कर मानते हैं कि डिजिटल प्लेटफार्म टूल से दर्शकों को समझा जा सकता है और उनकी बात सुनी जा सकती है कि उन्हें क्या अच्छा लग रहा है और क्या बुरा लग रहा है. और उन्हें किसी फ़िल्म के बारे में जो चीज़ अच्छी लग रही है, उसे प्रोत्साहित किया जाता है और जो चीज़ नहीं अच्छी लग रही उसे निकला जाता है. आने वाले समय में ये जानकारियाँ फ़िल्मों में बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं.
फ़िल्म स्टार और मार्केटिंग
आज हर बड़ी छोटी फ़िल्म का बढ़कर फिल्म प्रोमोशन होता है. प्रोमोशन का बजट अक्सर फ़िल्म के बजट का 20 फ़ीसदी तक होता है.
गौतम बी ठक्कर के मुताबिक़ अगर फ़िल्म में बड़े फ़िल्म स्टार हों तो उतनी ही कम फ़िल्म मार्केटिंग होनी चाहिए क्यूंकि दर्शको को शाहरुख़ खान, सलमान खान, हृतिक रोशन जैसे स्टार की फ़िल्मों का इंतज़ार रहता है. वहीं, दूसरी तरफ़ छोटी फ़िल्म जिसमे बड़े स्टार नहीं होते, उन्हें दर्शकों तक पहुंचने के लिए नई और दिलचस्प मार्केटिंग की ज़रूरत होती है. भारत में स्टार का पलड़ा भारी होता है जिससे छोटी फ़िल्मों को थोड़ा नुक़सान उठाना पड़ता है पर आज के दौर में ये बदल रहा है. छोटी फ़िल्मों को मार्केटिंग मिल रही है उस वजह से उन्हें रिलीज़ भी मिल रही है.
जयंतीलाल गड़ा का मानना है कि जब कोई बड़ा स्टार फ़िल्म की मार्केटिंग से जुड़ा होता है तो दबाव अधिक होता है. स्टार के पिछले काम और इमेज को देखते हुए मार्केटिंग की रणनीति बनानी होती है. वही छोटी फ़िल्म की मार्केटिंग आसान होती है क्योंकि उसमें किसी की दखलंदाज़ी नहीं होती उन्हें सिर्फ फ़िल्म का कॉन्टेंट ही बेचना होता है.
एक अच्छी फ़िल्म की मार्केटिंग फ़िल्म को 30 फीसदी का फ़ायदा दिला सकती है वही अगर फ़िल्म की ग़लत मार्केटिंग हुई तो उतने का ही नुक़सान उठाना पड़ सकता है.
हाल फिलहाल में कई ऐसी छोटी फ़िल्में आईं जिनकी मार्केटिंग दिलचस्प रही और उनका कॉन्टेंट भी काफी अच्छा समझा गया, जैसे 'हिंदी मीडियम', 'बधाई हो', 'पीकू', 'अंधाधुन' और 'राज़ी'.
इन फ़िल्मों ने बॉक्स ऑफ़िस पर 100 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की क्योंकि ये सभी फ़िल्में मार्केटिंग द्वारा बड़े पैमाने पर दर्शकों तक पहुँचने में कामयाब रहीं.