तीन राज्यों में जीत के बाद भी राहुल गांधी के पीएम बनने की राह में हैं तीन बड़े रोड़े
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नई दिल्ली। तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नाम को बतौर प्रधानमंत्री प्रस्तावित किया था। उन्होंने राहुल गांधी को विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने का प्रस्ताव रखा था। लेकिन स्टालिन के इस प्रस्ताव से अन्य दलों ने अभी तक अपनी दूरी बनाई हुई है। गौर करने वाली बात है कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण कार्यक्रम से तमाम विपक्षी दलों ने अपनी दूरी बनाए रखी है।
टीएमसी ने बनाई दूरी
टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने ने कहा कि विपक्षी दलों के बीच इस बात को लेकर आम सहमति है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन चुनाव के बाद होना चाहिए। जिस तरह से सरकार गठन के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश के किसानों का 2 लाख करोड़ रुपए कर्ज माफ करने का ऐलान किया उसपर ब्रायन ने कहा कि भाजपा ने 2014 में अपने मैनिफेस्टो में किसानों की आय को दोगुना करने का वायदा किया था, लेकिन अब ये लोग 2022 तक का समय मांग रहे हैं। ममता सरकार ने किसानों की आय को बंगाल में पांच साल के भीतर दो गुना करने का वायदा किया था, लेकिन 7 साल में अब यह तीन गुना हो चुकी है।
सपा-बसपा अब भी दूर
कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में 17 दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। लेकिन इस कार्यक्रम से बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा मुखिया अखिलेश यादव, टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने दूरी बनाए रखी। हालांकि मायावती ने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए इस कार्यक्रम से दूरी बनाई तो वहीं इस कार्यक्रम में शामिल होने की पुष्टि करने के बाद अखिलेश यादव इससे दूर रहे। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि दरअसल अखिलेश यादव सीटों का बंटवारा हो जाने तक बसपा की राह पर चलते हुए अखिलेश कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहते हैं।
चंद्रबाबू नायडू का भी बदला मिजाज
गौर करने वाली बात यह है कि हाल ही में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू जिन्होंने तमाम विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू की थी, उन्होंने भी इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी है। गौर करने वाली बात है कि कमलनाथ ने साफ किया है कि राहुल गांधी ने कभी भी खुद को प्रधानमंत्री बनाए जाने की बात नहीं कही है, इस मसले का समाधान चुनाव के बाद किया जा सकता है। बहरहाल देखने वाली बात यह है कि क्या आने वाले समय में विपक्षी दलों के बीच एकजुटता देखने को मिलती है, या फिर सीट बंटवारे के समय यह एकता धरी रह जाती है।