राजस्थान चुनावों में भाजपा की आखिरी उम्मीद पर पानी फेर सकते हैं बागी
नई दिल्ली। राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। एंटी इनकंबेंसी के अलावा बागी नेता भी पार्टी की सत्ता में वापसी की संभावनाओं में अडंगा बन रहे हैं। पार्टी के दो बड़े नेता घनश्याम तिवाड़ी और मानवेंद्र सिंह पहले ही पार्टी को अविदा कह चुके हैं और अब टिकटों के बंटवारे के बाद कुछ और लोग बागी तेवर अपना सकते हैं। मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के साथ हाथ मिला चुके हैं और राजपूतों के वर्चस्व वाले इलाकों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसी तरह छह बार के विधायक और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी ने अपनी अलग पार्टी, भारत वाहिनी पार्टी बनाई है। ये दोनों ही नेता राज्य में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर रहे हैं।
बगावत का पुराना इतिहास
राजस्थान में बीजेपी के अंदर विद्रोह का पुराना इतिहास रहा है। 2003, 2008 और 2013 के चुनावों में कई वरिष्ठ नेता बागी हो गए थे और 2008 में तो पार्टी को विद्रोह के कारण ही हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी 2013 विधानसभा चुनाव बहुमत के साथ जीतने के बावजूद अपने नेताओं की बगावत की वजह से लूणकरणसर, वल्लभनगर और मांडवा सीटें हार गई थी।
Recommended Video
2003 में देवी ने पकड़ी अलग राह
जब 2003 में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया गया तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने पार्टी से किनारा कर लिया और ओबीसी श्रेणी के तहत जाटों के लिए आरक्षण की मांग कर डाली। भाटी ने समाजिक न्याय मंच नाम से अलग पार्टी बनाई। देवी सिंह भाटी ने ना सिर्फ खुद चुनाव लड़ा और जीते बल्कि सीकर, नागौर, बीकानेर, झुनझुनू, चुरु और कुछ अन्य जिलों में भी अपने उम्मीदवार खड़े किए और 2.2 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। 2003 में बीजेपी को 120 सीटें ही मिली थीं। कहा जाता है कि अगर उस वक्त समाजिक न्याय मंच चुनाव ना लड़ता तो बीजेपी को 140 से उपर सीटें मिलती।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की बड़ी रणनीति, इस तरह से उम्मीदवारों का होगा चयन
2008 में वसुंधरा और मीणा की तकरार
2008 में जब प्रदेश में बीजेपी सरकार का कार्यकाल खत्म ही होने वाला था तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और किरोड़ी लाल मीणा के बीच मतभेद पैदा हो गए। घनश्याम तिवाड़ी, ललित किशोर चतुर्वेदी, जसवंत सिंह, महावीर प्रसाद जैन, कैलाश मेघवाल और किरोड़ी लाल मीणा ने वसुंधरा का विरोध किया था हालांकि सिर्फ मीणा ने ही पार्टी छोड़ी थी। बीजेपी को इसका खामियजा भुगताना पड़ा था और मीणा बहुल पूर्वी राजस्थान में पार्टी को उम्मीद के हिसाब से सीटें नहीं मिली थी। पार्टी 2008 में सिर्फ 78 सीटें जीत पाई थी और अगर पार्टी में विद्रोह ना होता तो पार्टी फिर से सरकार बना सकती थी। बाद में किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का बीजेपी में विलय करा दिया और वापस आ गये।
2013 में हनुमान की बगावत
2013 में हनुमान बेनीवाल जिन्होंने 2008 का चुनाव भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लड़ा था और जीते थे, उन्होंने पार्टी से बगावत कर दी। इसके बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया लेकिन बेनीवाल ने नागौर की खींवसर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते। हनुमान बेनीवाल को राज्य के प्रभावशाली जाट नेताओं में माना जाता है और आज भी उनकी रैलियों में काफी लोग मौजूद रहते हैं। इसके अवाला भी कई और बीजेपी नेताओं ने बगावत की और पार्टी के उम्मीदवारों की हार का कारण बने। इस बार भी बीजेपी के लिए राजस्थान में ऐसे ही हालात पैदा हो रहे हैं अब देखना होगा की क्या अमित शाह की चुनावी रणनीति कोई करिश्मा कर पाती है या फिर पार्टी को सत्ता गंवानी होगी।
इसे भी पढ़ें:- सीबीआई अधिकारियों के बीच छिड़ी जंग के बीच राहुल का पीएम मोदी पर बड़ा हमला