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रेल मंत्री पीयूष गोयल रेलवे की बदहाली के लिए कितने ज़िम्मेदार?

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारतीय रेल की माली हालत साल 2018 में बीते 10 सालों की तुलना में सबसे ख़राब थी. सोमवार को संसद में पेश की गई ये रिपोर्ट भारतीय रेल में सुधार किए जाने पर ज़ोर देती है. ये रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने रेल मंत्री पीयूष गोयल समेत केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है.

By अनंत प्रकाश
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भारतीय रेल
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भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारतीय रेल की माली हालत साल 2018 में बीते 10 सालों की तुलना में सबसे ख़राब थी.

सोमवार को संसद में पेश की गई ये रिपोर्ट भारतीय रेल में सुधार किए जाने पर ज़ोर देती है.

ये रिपोर्ट सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने रेल मंत्री पीयूष गोयल समेत केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है.

कांग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से लिखा है, "साल 2017-18 में भारतीय रेल का प्रदर्शन पिछले 10 सालों की तुलना में सबसे ख़राब रहा है. भारत के सबसे ज़्यादा रोज़गार पैदा करने वाला संस्थान हर सौ रुपये कमाने के लिए 98.44 रुपए ख़र्च कर रहा है. ये इस बात का सबसे सटीक उदाहरण है कि बीजेपी ने इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है."

A true testament to how BJP has taken our economy off the rails. https://t.co/qa8Av71DKd

— Congress (@INCIndia) December 3, 2019 '>

भारतीय रेल मंत्री पीयूष गोयल की ओर से अब तक इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है.

कैग की रिपोर्ट के मायने क्या हैं?

कैग ने अपनी इस रिपोर्ट में ये बताने की कोशिश की है कि एक संस्था के रूप में भारतीय रेल की आर्थिक हालत कैसी है.

रिपोर्ट बताती है कि साल 2017-18 में भारतीय रेल को अपनी सेवाओं के बदले में 98.44 रुपए ख़र्च करके 100 रुपए मिले हैं.

जबकि साल 2015-16 में रेलवे को 90.49 रुपए ख़र्च करके 100 रुपए की कमाई होती थी.

भारतीय रेल
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भारतीय रेल

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि रेलवे ने फिलहाल एनटीपीसी और इरकॉन से कुछ परियोजनाओं के लिए एडवांस लिया हुआ है.

इस वजह से रेलवे का ऑपरेटिंग रेशियो 98.44 पर टिक गया है. अगर ऐसा नहीं होता तो ये स्थिति 102.66 तक पहुंच सकती थी.

साल 2016-17 में इस कमाई के चलते रेलवे को 4,913 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हुई थी.

लेकिन साल 2017-18 में यही अतिरिक्त आय 66 फ़ीसदी की कमी के साथ 1,665 करोड़ रुपए रह गई.

रेल मंत्री
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रेल मंत्री

रेलवे की बदहाली की वजह क्या है?

भारतीय रेल को माल ढुलाई और यात्री किराए समेत तमाम दूसरे मदों से आमदनी होती है. इनमें से सबसे ज़्यादा आय माल ढुलाई से होती है.

वहीं, रेलवे अपने यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए किराया लेती है.

TWITTER/PIYUSHGOYAL

वरिष्ठ पत्रकार श्रीनद झा मानते हैं कि रेलवे की बदहाली की वजह यात्री किराए में ही समाई हुई है.

झा कहते हैं, "बीते 10 सालों से रेलवे ने यात्री किराए में उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं की है. क्योंकि ये ऐसा मुद्दा है जो सरकारों को राजनीतिक रूप से प्रभावित करता है. सरकार ने एक बार उपनगरीय रेल में किराया बढ़ाने का फ़ैसला किया था. लेकिन इसके बाद इस फ़ैसले के प्रति विरोध प्रदर्शन होने की वजह से सरकार को बढ़ा हुआ किराया वापस लेना पड़ा."

"ऐेसे में राजनीतिक पार्टियों के लिए यात्री रेलगाड़ियों का किराया बढ़ाना जोख़िम से भरा फ़ैसला बन जाता है. ये एक ऐसा राजनीतिक मुद्दा है जिसका असर रेलवे की बदहाली के रूप में सामने आता है. क्योंकि अब तक बीती सरकारें यात्री सेवाओं के किराए बढ़ाने के मुद्दे पर कन्नी काटती दिखी हैं"

"साल 2016 में जब एनडीए सरकार ने रेल बजट को समाप्त किया था तो ये कहा गया था कि पुरानी सरकारों की तुष्टिकरण की नीतियों को हम ख़त्म करना चाहते हैं. लेकिन इस सरकार ने भी अपने कहे के मुताबिक़ किरायों में बढ़ोतरी नहीं की."

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रेलवे की बदहाली का नुक़सान क्या है?

भारतीय रेलवे इस समय जिन इंजनों, रेल के डिब्बों, सिग्नल व्यवस्था आदि का इस्तेमाल कर रही है, वे मौजूदा ज़रूरतों के लिहाज़ से काफ़ी पुराने हो चुके हैं.

ऐसे में रेलवे को अपने आधारभूत ढांचे का आधुनिकीकरण करने की ज़रूरत है.

लेकिन रेलवे अपनी कमाई का 95 फ़ीसदी पैसा यात्री किरायों की सब्सिडी में ख़र्च करती है.

श्रीनद झा बताते हैं, "रेलवे को हर साल यात्री रेलगाड़ियों में 35000 करोड़ रुपए का घाटा होता है. रेलवे को फ्रेट कैरियर से जो भी हासिल होता है, उसे यात्री सेवाओं को सब्सिडी देने में इस्तेमाल किया जाता है. अगर पिछले 10-15 सालों में हर साल थोड़ा-थोड़ा किराया भी बढ़ा होता तो ऐसी स्थिति नहीं होती."

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भारतीय रेलवे हर रोज़ करोड़ों लोगों के लिए भारत के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक उनके गंतव्यों तक पहुंचने का माध्यम बनती है.

इनमें से ज़्यादातर लोग ऐसे होते हैं जो आर्थिक रूप से काफ़ी कमजोर होते हैं.

क्या रेलवे आर्थिक संकट से उबर सकती है?

रेलवे के अर्थशास्त्र को क़रीब से समझने वाले कई विशेषज्ञ मानते हैं कि रेलवे को आर्थिक संकट से उबारे जाने के लिए राजनीतिक रस्साकशी से बाहर निकालने की ज़रूरत है.

श्रीनद झा इस तर्क से सहमत नज़र आते हैं.

झा कहते हैं, "रेलवे अक्सर ये कहती है कि ये रेलवे की सामाजिक ज़िम्मेदारी है कि वह देश के लोगों को परिवहन का एक ऐसा माध्यम दे सके जिसका ख़र्च उठाना उनके लिए संभव हो. और फिर ये भी कहा जाता है कि ये संस्थान लाभ कमाने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में ये दोनों ही बातें काफ़ी विरोधाभासी हैं."

"इससे पहले बनाई गई कई समितियों की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि लोग ज़्यादा किराया देने के मुद्दे पर सहज होते दिख रहे हैं. बशर्ते रेलवे अपनी सेवाओं में सुधार करे. अगर ट्रेनें समय से चलकर समय से गंतव्य तक पहुंचने लगें तो लोग थोड़ा बहुत किराया बढ़ने पर सत्तर के दशक की तरह आगजनी करके विरोध प्रदर्शन नहीं करेंगे."

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पीयूष गोयल कितने ज़िम्मेदार हैं?

रेलवे के इतिहास में ममता बनर्जी से लेकर सदानंद गौड़ा समेत दूसरे कई रेल मंत्रियों ने रेलवे दुर्घटनाओं से लेकर रेल सेवाओं में बदहाली के लिए राजनीतिक नुक़सान उठाया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि रेलवे की आर्थिक बदहाली के वर्तमान संकट के लिए वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल कितने ज़िम्मेदार है.

श्रीनद झा मानते हैं कि अगर रेलवे की सफलता का सेहरा वर्तमान रेल मंत्री के सिर पर बंधेगा तो उसकी असफलता का ठीकरा भी उनके ही सिर फोड़ा जाएगा.

वे कहते हैं, "जहां तक रेल मंत्री की ग़लतियों की बात करें, तो रेल मंत्री होने के नाते उन्हें सुपरफास्ट ट्रेन चलाने, स्टेशनों पर वाई-फाई देने की बात करने और उस पर ख़र्च करने से बेहतर रेलवे को अंदर से मज़बूत करने के उपायों को अपनाना चाहिए था. हालांकि, भविष्योन्मुख होने में कोई ग़लत बात भी नहीं है."

साल 2014 के बाद एनडीए सरकार ऊंचे दर्जे की एसी गाड़ियों में डायनेमिक प्राइसिंग जैसी सुविधाएं सामने लेकर आई थी.

भारतीय रेल
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भारतीय रेल

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार इस क़दम से यात्री सेवाओं के घाटे को कम करना चाहती थी.

हालांकि, श्रीनद झा इससे सहमत नज़र नहीं आते हैं.

वे कहते हैं, "ये ज़रूर है कि इससे रेलवे को कुछ मदद मिली होगी. लेकिन ये ऊंट के मुंह में ज़ीरे जैसी स्थिति है. क्योंकि रेलवे का ज़्यादातर घाटा अनारक्षित श्रेणी में चलने वाले यात्री किराए से आता है. ऐसे में सरकार जबतक उन्हें लेकर कोई कड़ा क़दम नहीं उठाती है तब तक रेलवे की आर्थिक हालत में सुधार होने की गुंजाइश बहुत कम है."

केंद्र सरकार ने नोटबंदी से लेकर बालाकोट हमले जैसे विषयों पर फ़ैसले लेकर अपनी छवि एक निर्णय लेने वाली सरकार के रूप में बनाने की कोशिश की है.

ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार रेलवे को घाटे से उबारने के लिए कड़ा क़दम कब उठाएगी.

श्रीनद झा इस सवाल के जवाब में रेलवे के निजीकरण किए जाने की ओर संकेत करते हैं.

झा बताते हैं, "सरकार अपने ट्रैक पर निजी क्षेत्रों की ट्रेनों को चलाने की योजनाओं पर काम कर रही है. ऐसे में ये एक तरह से ये किराए बढ़ाने का ही एक तरीक़ा है, जिसका असर सरकार पर सीधे-सीधे नहीं पड़ेगा और उद्देश्य की प्राप्ति की संभावनाएं भी बनेंगी."

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English summary
Railway Minister Piyush Goyal How responsible for the plight of the railway?
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