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मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला: मानवाधिकार कार्यकर्ता से नेता बनने का सफर

बीते साल 16 साल लंबी भूख हड़ताल खत्म करने वाली इरोम मणिपुर विधानसभा चुनाव में हिस्सा ले रही हैं। पहली बार चुनाव लड़ रही 44 साल की इरोम पर इस इलेक्शन में सबसे ज्यादा निगाहें हैं।

By Rizwan
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नई दिल्ली। देश में जिन पांच राज्यों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें मणिपुर भी शामिल है। मणिपुर में पिछली तीन बार से कांग्रेस सरकार बना रही है लेकिन इस बार प्रदेश के चुनाव में बहुत कुछ अलग है। इस बार के चुनावों में बड़ा फर्क अगर कोई पैदा कर रहा है, तो वो हैं इरोम चानू शर्मिला। इरोम शर्मिला दुनिया की सबसे लंबी भूख हड़ताल करने का रिकॉर्ड रखती हैं। मणिपुर ही नहीं देश और दुनिया में इरोम को आयरन लेडी के नाम से जाना जाता है। बीते साल अगस्त में उन्होंने 16 साल लंबी भूख हड़ताल खत्म की है। इस बार वो मणिपुर के चुनाव में हिस्सा ले रही हैं और पहला चुनाव होने के बावजूद 44 साल की इरोम पर इन चुनावों में सबसे ज्यादा निगाहें हैं।

इरोम शर्मिला: मानवाधिकार कार्यकर्ता से नेता बनने का सफर

इरोम की 44 साल की जिदंगी पर नजर डाली जाए तो ये किसी दूसरी दुनिया की कहानी सी लगती है। 14 मार्च 1972 को जन्मी इरोम चानू शर्मिला ने मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाने की मांग को लेकर 16 सालों तक भूख हड़ताल की। 2 नवंबर 2000 में मणिपुर की राजधानी इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों ने दस लोगों को गोली मार दी थी। ये लोग स्टॉप पर बस के इंतजार में खड़े थे, जिन्हें आकर जवानों ने गोला मार दी। मरने वालों में दो नेशनल ब्रेवरी अवार्ड विजेता भी थे। इस घटना से इरोम इतनी दुखी हुई कि उन्होंने सेना को विशेष अधिकार देने वाले कानून अफस्पा हटाने को लेकर बेमियादी भूख हड़ताल शुरू कर दी। 2 नवंबर 2000 को महज 27 साल की उम्र में शर्मिला ने अनशन शुरू किया जो 9 अगस्त 2016 को खत्म हुआ। जब उनकी उम्र 44 साल की हो चुकी है।

भूख हड़ताल के दौरान उन्होंने अपने बाल एक बार भी नहीं झाड़े। वह अपने दांत भी कपड़े से साफ करती रहीं जिससे खानपान न ग्रहण करने का उनका प्रण कायम रहे। अनशन पर बैठी इरोम को 16 सालों तक नाक में लगी एक नली के जरिए खाना दिया जाता रहा। इसके लिए पोरोपट के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था।

केंद्र और राज्य में कई दलों की सरकारें आती और जाती रहीं लेकिन इरोम की मांग पर किसी ने गौर देना जरूरी नहीं समझा। इरोम के ही मुताबिक इतने सालों से सत्ता के असंवेदनशील रवैये ने उनको सक्रिय राजनीति में आने को मजबूर कर दिया। हालांकि 2014 में जस्ट पीस फाउंडेशन ट्रस्ट के जरिए शर्मिला को आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात कही थी लेकिन तब उन्होंने इंकार कर दिया। आखिर 2016 में उन्होंने राजनीति में आने का फैसला कर लिया। इरोम ने पीपल्स रिसर्जन्स एंड जस्टिस अलायंस के नाम से अपनी पार्टी बनाई है। इरोम चाहती हैं कि जो काम वो भूख हड़ताल के जरिए ना सरकारों से ना करवा सकीं अब सत्ता में आकर करें।

इरोम शर्मिला के नाम पर कई रिकॉर्ड और पुरस्कार हैं। 2007 में मानवाधिकारों के लिए उनकी लड़ाई के लिए ग्वांगजू पुरस्कार, एशियाई मानवाधिकार आयोग ने 2010 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग एंड मैनेजमेंट ने उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर अवार्ड से नवाजा है।

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English summary
profile of manipur iron lady irom chanu sharmila
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