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मोदी के बनारस में बेटे का शव लेकर जाती एक माँ की दर्द भरी दास्तां

विनीत मुंबई में एक दवा की दुकान में मामूली नौकरी करते थे, कोरोना महामारी के बाद उनकी नौकरी चली गई थी जिसकी वजह से वह अपने गाँव लौट आए थे.

By BBC News हिन्दी
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सोशल मीडिया में पिछले दो दिनों से वाराणसी की एक तस्वीर वायरल है. इस तस्वीर में ई-रिक्शे पर बैठी एक बदहवास माँ है और उनके क़दमों में उनके बेटा, जिसकी साँसें थम चुकी हैं.

एक तो तस्वीर वाक़ई दिल दहला देने वाली है, दूसरे यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र का मामला है, इसलिए सोशल मीडिया पर इसके वायरल होने में देर नहीं लगी.

उन्हीं की एक दूसरी तस्वीर भी सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है जिसमें वह मदद पाने की कोशिश में अपने मृत बेटे के स्मार्टफ़ोन को खोलने की कोशिश करती दिख रही हैं.

दरअसल, यह महिला वाराणसी से सटे जौनपुर के अहिरौली (शीतलगंज) की निवासी हैं चंद्रकला सिंह. सोमवार को वह अपने 29 साल के बेटे विनीत सिंह का इलाज कराने के लिए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के अस्पताल पहुंची थीं.

विनीत मुंबई में एक दवा की दुकान में मामूली नौकरी करते थे, कोरोना महामारी के बाद उनकी नौकरी चली गई थी जिसकी वजह से वह अपने गाँव लौट आए थे.

बीएचयू के अस्पताल में उन्हें प्रवेश नहीं मिल पाया और उसके बाद ई-रिक्शे से उन्होंने पास के कुछ निजी अस्पतालों में भी बेटे को भर्ती कराने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. कुछ ही घंटों के अंदर ई-रिक्शे पर ही माँ की आँखों के सामने विनीत ने तड़पकर दम तोड़ दिया.

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जवान बेटे की असमय मौत के सदमे से ज़्यादा दुख चंद्रकला सिंह को अपने बेटे की मदद नहीं कर पाने का है. चंद्रकला सिंह ने इस पूरे हादसे के बारे में बताया, "हम बीएचयू अस्पताल गए थे, वहां हमें कहा गया कि डॉक्टर नहीं आए हैं, आप वहां (ट्रॉमा सेंटर) जाइए, ट्रॉमा सेंटर पर ही बेटे की स्थिति बिगड़ने लगी थी और वह वहां सीढ़ी के पास ही ज़मीन पर लेट गया था. लेकिन उन लोगों ने कहा कि यहां से ले जाओ, ले जाओ. कोरोना है, कोरोना है, कहने लगे थे."

चंद्रकला सिंह कहती हैं, "मेरे बच्चे को सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी थी, हमने वहां ऑक्सीजन माँगा, एंबुलेंस भी माँगा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. फिर मैंने किसी तरह से ई-रिक्शे पर उसे लिटाकर एक दूसरे अस्पताल में गई. वहां भी भर्ती करने से मना कर दिया. फिर किसी दूसरे अस्पताल के लिए जा ही रहे थे कि इतने में ही मेरा बच्चा नहीं रहा, वह तड़प-तड़पकर मर चुका था."

चंद्रकला सिंह के जीवन में दुखों का पहाड़ पहले ही कम नहीं था, दस साल पहले उनके पति की मौत हो गई थी और पिछले साल ही विनीत से बड़े बेटे की मौत हुई थी. लगातार दो सालों में दो जवान बेटे की मौत का दुख आसानी से नहीं जाएगा. हालांकि उनके दो बेटे और हैं लेकिन चंद्रकला सिंह कहती हैं, "मेरा तो सहारा ही चला गया. देखरेख करने वाला नहीं रहा."

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मौत की वजह

विनीत सिंह के कोरोना संक्रमित होने की कोई पुष्टि नहीं है. परिवार वालों के मुताबिक न ही पिछले दिनों से उन्हें कोई बुख़ार, जुकाम जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा था.

विनीत सिंह के चाचा जय सिंह कहते हैं, "कोरोना का कोई लक्षण उसमें नहीं था. न ही उसे कोई बुख़ार था. ये ज़रूर है कि उसको किडनी संबंधी समस्या थी जिसका इलाज चल रहा था. वह मुंबई में काम करता था तो वहां उसका इलाज करा रहा था. इसी इलाज के सिलसिले में वह इन दिनों बीएचयू के चक्कर लगा रहा था."

जय सिंह दावा करते हैं, "उसे 19 अप्रैल को डॉ. समीर त्रिवेदी का ऑनलाइन एप्वाइंटमेंट मिला था, लेकिन वहां उसे इलाज नहीं मिला. ट्रॉमा सेंटर पर कोई मदद नहीं मिली. निजी अस्पताल में भी बाहर से कहा जा रहा है कि जगह नहीं है. यह भी कहा कि कोरोना का केस है. उसे किडनी की समस्या ज़रूर थी लेकिन इलाज मिल गया होता, ऑक्सीजन मिल गया होता तो उसकी मौत नहीं होती. अस्पताल में लापरवाही के चलते उसकी मौत हुई है."

जय सिंह बताते हैं, "इससे बड़ी लापरवाही क्या होगी कि किसी की जान चली जाए. सिस्टम ऐसा हो गया है कि कहीं किसी ग़रीब की सुनवाई नहीं है. जिस तरह की व्यवस्था है उसमें लापरवाही से कई लोगों की जान जा सकती है."

चंद्रकला सिंह और उनके बेटे की बेबसी की इस कहानी के बारे में दुनिया को सबसे पहले पता चला 'दैनिक जागरण' में छपी ख़बर से. इस ख़बर को संवाददाता श्रवण भारद्वाज ने लिखा है. उन्होंने बताया, "सुबह दस बजे के आसपास मुझे ख़बर मिली कि ककरमत्ता महमूरगंज मार्ग पर किसी की मौत हो गई है, हंगामा हो रहा है. मैं तुरंत वहां गया तो ये हृदय विदारक दृश्य देखने को मिला. मैंने माता जी से पूरी जानकारी ली और ख़बर बनाई."

श्रवण भारद्वाज कहते हैं कि कोरोना के चलते अस्पतालों की स्थिति का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि जिस सड़क पर विनीत सिंह की मौत हुई, उस रास्ते पर बीएचयू के अलावा दर्जनों निजी अस्पताल खुले हुए हैं.

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वायरल तस्वीर किसने खींची

चंद्रकला सिंह और उनके बेटे की जो तस्वीर वायरल हो रही है, वो तस्वीर किसने ली है, उसका फोटोग्राफ़र कौन है. इस बारे में श्रवण भारद्वाज कहते हैं, "मैं वहां अपने एक मित्र के साथ पहुंचा था. तो मैंने उनसे कहा कि आप तस्वीर ले लीजिए. वे सरकारी कर्मचारी हैं लिहाजा उनका नाम हम लोगों ने सार्वजनिक नहीं किया."

फोटो लेने वाले सरकारी कर्मचारी का कहना है कि 'हमने श्रवणजी के कहने पर फोटो ली थी और फोटो श्रवण जी को उसी वक्त दे दी.'

विनीत सिंह की मां के मुताबिक उनके बेटे की मौत नौ बजे के क़रीब हो गई थी और श्रवण भारद्वाज के मुताबिक जब वे साढ़े दस बजे के करीब पहुंचे थे तो वहां पर ढेरों लोग खड़े थे और हो सकता है कि ऐसी तस्वीर किन्हीं और लोगों ने भी मोबाइल से ली हो, लेकिन जो ख़बर मीडिया में वायरल हो रही है, वह तस्वीर उनकी ही ली हुई है.

जिस वक्त चंद्रकला सिंह अपने बेटे के शव के साथ मदद की आस में थी, उस वक्त वहां पूर्व स्थानीय पार्षद विकास चंद्र भी पहुंचे. उन्होंने 112 नंबर पर डायल कर स्थानीय पुलिस को मदद को बुलाया.

स्थानीय पुलिस चौकी के प्रभारी अनुज कुमार तिवारी के मुताबिक, लड़के की मौत हो चुकी थी, लेकिन उनकी मां की स्थिति को देखते हुए हमने दो सिपाहियों को वहीं मौके पर तैनात कर दिया.

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मौत के बाद एंबुलेंस मिलने में मुश्किल

विनीत सिंह की मौत के बाद भी उनकी मां को एंबुलेंस मिलने में काफ़ी दिक़्क़त हुई है. सुबह वाराणसी के महुआडीह स्टेशन पर उनको छोड़ने वाले देवर जय सिंह ने बताया, "मुझे अपनी बेटी को स्टेशन से लाना था, तो ये लोग हमारे साथ ही गए थे. हमने इनको महुआडीह के पास ई- रिक्शे पर बिठा दिया था, कहा था कि डॉक्टर को दिखा लो तब तक हम दिल्ली से आ रही बिटिया को ले लेते हैं. फिर साढ़े नौ बजे के क़रीब इनका फ़ोन आया तो मैं वहां पहुंचा."

जय सिंह बताते हैं, "जब वहां पहुंचे तो देखा कि भीड़ लगी हुई है और बच्चे का शव धूप में पड़ा हुआ है. हमने रिक्शे वाले से कहा कि छाया में ले चलो. मां रो-बिलख रही थी. फिर एंबुलेंस के लिए कोशिश शुरू हुई. कई लोगों को फ़ोन करना पड़ा. एक ने तो 22 हज़ार रुपये मांगे. आख़िर में 60 किलोमीटर की दूरी के लिए पांच हज़ार रूपये में एंबुलेंस मिला. तो विनीत का शव लेकर घर पहुंचे."

क्या कहना है बीएचयू प्रशासन का

वाराणसी के बीएचयू अस्पताल पर कोरोना संकट के दौर में दबाव काफी बढ़ गया है. पूर्वांचल के क़रीब चालीस ज़िलों के मरीजों के लिए बीएचयू उम्मीद और भरोसे का नाम है लेकिन मौजूदा दबाव के सामने अस्पताल की व्यवस्थाएं भी कम पड़ रही हैं.

बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के मेडिकल सुपरिटेंडेंट शरद माथुर ने बताया, "बहुत दवाब है. आपात चिकित्सा में रोगियों को देखा जा रहा है. बहुत गंभीर स्थिति में भी मरीज़ आ रहे हैं, लेकिन हम सभी मरीज़ों को बचा भी नहीं सकते."

विनीत सिंह को चिकित्सालय में क्यों नहीं देखा गया, इसके जवाब में शरद माथुर ने कहा, "कोरोना के चलते फिजिकल कंसलेंटसी बंद है लेकिन हम लोगों ने ऑनलाइन कंसलेंटसी जारी रखी है. हो सकता है कि उनके पास इसकी जानकारी नहीं हो. यह भी हो सकता है कि वह पहले से बीमार रहे होंगे और गंभीर होने पर यहां आए होंगे. लेकिन फिजिकल कंसलटेंसी बंद होने के चलते उन्हें यहां डॉक्टर नहीं मिले हों. लेकिन आपात चिकित्सा में रोगियों को देखा जा रहा है."

समस्याओं के बारे में वे कहते हैं, "मैनपावर की बहुत कमी है और जितने लोग हैं सिस्टम में, उन सबको हम लोगों ने ड्यूटी पर तैनात किया हुआ है. हर दिन हम लोग सैकड़ों लोगों की जान बचा रहे हैं. लेकिन लोग भी एकदम गंभीर स्थिति होने पर अस्पताल आ रहे हैं और कोरोना का संकट तो अलग है ही.

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सोशल मीडिया पर सवाल

हालांकि चंद्रकला सिंह और उनके बेटे के शव की तस्वीरों लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोशल मीडिया पर सवाल कर रहे हैं क्योंकि यह उनका चुनाव क्षेत्र है, यही वजह है कि जिलाधिकारी ने इस मामले को तुरंत संज्ञान में लिया है और बीएचयू अस्पताल प्रबंधन से इस बारे में जानकारी मांगी है कि इमरर्जेंसी में विनीत सिंह को दाख़िला क्यों नहीं मिला. जिसको लेकर बीएचयू प्रबंधन समिति की बुधवार को एक बैठक भी हुई है.

लेकिन इस मामले ने सामाजिक क्रूरता की ओर भी ध्यान खींचा है, जब बेबस मां अपने जवान बेटे के शव को घर ले जाने के लिए मदद की गुहार लगा रही थी तब भीड़-भाड़ में किसी ने उनका थैला चुरा लिया, जिसमें विनीत सिंह के इलाज के कागज और मोबाइल फोन थे.

(जौनपुर से आदित्य भारद्वाज और वाराणसी से नीलांबुज की रिपोर्टिंग के साथ)

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English summary
painful tales of a crying mother who carrying the body of a son died in banaras
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