मंगला कांति रॉय कौन हैं ? 102 साल की उम्र में 'सारिंदा वादन' के लिए मिला पद्म पुरस्कार,इस वाद्य यंत्र को जानें
बंगाल के सारिंदा वादक मंगला कांति रॉय को 102 साल की अवस्था में पद्म पुरस्कार देने का ऐलान हुआ है। उनका आर्थिक जीवन बहुत ही तंगहाल रहा है। इस वाद्य यंत्र ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई, लेकिन जीवन मुश्किल रहा है।
74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने कुल 106 पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। इसमें 91 लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री देने का ऐलान भी किया गया है। इन 91 नामों में पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव के 102 वर्षीय लोक कलाकार का नाम भी शामिल है। मंगला कांति रॉय। यह बचपन से ही सारिंदा बजाते रहे हैं। इनकी कला ऐसी है कि यह अपनी उंगलियों के दम पर पक्षियों और जानवरों की आवाजें निकाल लेते हैं। जब उनतक यह समाचार पहुंचा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि, लोकप्रियता तो बहुत मिली थी, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा सम्मान मिलेगा, शायद कभी सोचा भी नहीं था। आइए उनके बारे में जानते हैं और 'सारिंदा' वाद्य यंत्र क्या होता है, यह भी जानते हैं।
सारिंदा के सरताज कहलाते हैं मंगला कांति रॉय
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के एक छोटे से गांव में रहने वाले 102 साल के मंगला कांति रॉय को अपने कानों पर यकीन करना मुश्किल था कि पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में उनका भी नाम शामिल है। वह प्रदेश के सबसे पुराने लोक संगीतकार के रूप में पहले से लोकप्रिय रहे है। वह सारिंदा बजाते हैं और सारिंदा के सरताज के तौर पर चर्चित रहे हैं। उन्हें कला (लोक संगीत) के लिए यह पुरस्कार दिया गया है। वे बंगाल के ऐसे सबसे पुराने लोक संगीतकार हैं, जिन्होंने अभी भी अपने वाद्ययंत्र के माध्यम से इस लोक कला को जीवित रखा है।
लोक संगीत के लिए पद्मश्री पुरस्कार का ऐलान
एएनआई से उन्होंने कहा है, 'जब से मुझे पद्म पुरस्कार के बारे में पता चला है, मुझे बहुत ही ज्यादा खुशी हो रही है। मैं जब 4-5 साल का था तभी से सारिंदा बजा रहा हूं। मैंने दिल्ली, कामख्या से लेकर दार्जिलिंग तक सारिंदा बजाया है।' वे सारिंदा के माध्यम से पक्षियों की आवाज निकालने के लिए मशहूर हैं। उन्हें 8 दशकों से सारिंदा वाद्य यंत्र को प्रमोट करने और उसके संरक्षण के लिए पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा हुई है।
सारिंदा ने लोकप्रियता दिलाई, लेकिन तंगी में गुजर रहा है जीवन
मंगला कांति रॉय जीवन के इस पड़ाव पर राष्ट्रीय पहचान मिलने से खुश तो बहुत हैं, लेकिन अपना एक दर्द छिपाए नहीं छिपा पा रहे हैं। उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा है कि जिस कला को उन्होंने जीवन भर संजोए रखा, उसका संवर्धन किया, लेकिन उसने कभी उन्हें वित्तीय सुरक्षा नहीं दी। वे जलपाईगुड़ी के बहुत दूर-दराज वाले गांव धवलागुड़ी में रहते हैं। सारिंदा से पक्षियों और जानवरों की आवाजें निकालने की उनकी कला ऐसी है, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता रहा है।
2017 में मिल चुका है 'बंग रत्न'
उन्होंने कहा है, 'मैं यह सम्मान पाकर खुश हूं, लेकिन इस कला के प्रति मेरी प्रतिबद्धता के बावजूद मैं वित्तीय रूप से हमेशा संकटग्रस्त रहा।' बुजुर्ग मंगला कांति अपने गांव में बहुत ही साधारण जीवन जीते हैं। कोविड महामारी के दौरान उनकी वित्तीय स्थिति और भी बिगड़ गई, क्योंकि दो वर्षों से भी ज्यादा समय से किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए बुलाया जाना बंद हो गया। इस कलाकार के तीन बेटे और एक बेटी हैं। लेकिन, वे अकेले रहते हैं। वह कहते हैं कि 'मैं बिना ज्यादा कष्ट काटे यह दुनिया छोड़ कर जाना चाहता हूं।' 2017 में बंगाल सरकार ने उन्हें 'बंग रत्न' सम्मान से नवाजा था।
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सारिंदा क्या है ?
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक सारिंदा एक तत् वाद्य है। यह इस्पात, लकड़ी, चमड़े और घोड़े के बाल से बना होता है। यह आदिवासियों का एक वाद्य यंत्र है, जो असम और त्रिपुरा में बजाया जाता है। असमिया गीतों में संगत के लिए इसका भरपूर उपयोग होता है और त्रिपुरा में आदिवासी समाज के लोग भी इसे बजाते हैं। (कई तस्वीरे यूट्यूब वीडियो से)