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Climate change: प्रगति के लिए ओडिशा की पसंद बाजरा

By Manoj Mishra
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भुवनेश्वर, 10 अगस्त: ओडिशा में आदिवासियों के खेतों में एक हरित क्रांति आकार ले रही है। इसका श्रेय 'ओडिशा बाजरा मिशन' को जाता है। यह मिशन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की निगरानी में 2017 में लॉन्च किया गया था। इस धर्मयुद्ध में योद्धा वो किसान हैं, जो अपने हंसिये और फावड़े से अपने खेतों को जोत रहे हैं, ताकि अपनी पारंपरिक खाद्य फसल को पुनर्जीवित करने के साथ ही पर्यावरण की भी रक्षा कर सकें।

Naveen Patnaik

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की देखरेख में ओडिशा का लक्ष्य निर्धारित कर जलवायु परिवर्तन, सतत खेती के माध्यम से पर्यावरण को सहेज कर रखने, किसानों की आजीविका में सुधार और आर्थिक विकास एवं लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए जिस इकलौती नीति तैयार करने की शुरुआत की गई थी, वह अब पूरे भारत या यूं कहें कि इस मामले में पूरी दुनिया के लिए अनुकरण करने लायक सफलतता की कहानी बन चुकी है। वास्तव में जब बात कृषि और खाद्य प्रणाली को क्लाइमेट रिजिल्यन्ट बनाने की आती है, तब ओडिशा पहला राज्य है. जिसने यह महसूस किया है कि निष्क्रियता की लागत, कार्रवाई करने की तुलना में बहुत ही ज्यादा है।

ओडिशा के कृषि और किसान अधिकारिता विभाग की ओर से आदिवासी इलाकों के खेतों और लोगों के आहार में बाजरा को फिर से लाने के लिए पंच-वर्षीय प्रारंभिक कार्यक्रम के रूप में शुरू किए जाने के बाद ओडिशा बाजरा मिशन अब बहु-आयामी बूस्टर शॉट बन गया है।

इस कार्यक्रम ने बहुत कम समय में जितना बोया है, उससे कहीं अधिक फल प्राप्त हुआ है। खासकर पर्यावरण की रक्षा और सतत विकास को बढ़ावा देने के मामले में। यह दोनों जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र की ओर से निर्धारित मुख्य लक्ष्य हैं। ओडिशा बाजरा मिशन की अभूतपूर्व कामयाबी ने राज्य सरकार को 2022 में 142 ब्लॉकों में इस प्रोजेक्ट का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया है। करीब 1.5 लाख किसानों ने तो बाजरे की खेती के लिए 75,000 हेक्टेयर को अलग रख दिया है।

पोषण से भरपूर बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए अपनी तरह की यह पहली कृषि पहल ओडिशा की जनजातियों के पारंपरिक भोजन को उनकी थालियों में वापस लाने से कहीं आगे है। यह एक स्थायी सवाल का उत्तर देता है: पर्यावरण को बचाने और पुनर्जीवित करने के साथ-साथ किसानों, विशेष रूप से छोटे खेतों वाले किसानों को बेहतर आय दिलाने के लिए क्या किया जा सकता है?

यह जानते हुए कि सरकार उनके पीछे पूरी तरह से प्रतिबद्धता के साथ खड़ी है, किसानों ने जो लंबे समय से अपने पारंपरिक ज्ञान जैसे कि फिंगर मिलेट या रागी या उड़िया में मांडिया जैसी फसलों को एकल-कृषि जैसे कि ज्यादा पानी वाली फसल धान के लिए छोड़ा था, उन्हीं अनाजों की ओर वापस लौट रहे हैं, जिन्हें उनके पूर्वजों ने उगाया था। वे पर्यावरण के अनुकूल कृषि की ओर वापस लौट रहे हैं, जो वर्षों से उनका मजबूत आधार रहा है।

ओडिशा सरकार ने विभिन्न वजहों से बाजरा की खेती को बढ़ावा देना तय किया। इसका एक कारण यह है कि बाजरा प्राकृतिक रूप से पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत हो जाता है। बाजरा ग्रास फैमिली के छोटे अनाज हैं, जो कठोर, स्वयं-परागण वाली फसल है। यह मौसम की विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी तरह से बढ़ते हैं और गेहूं और धान जैसी प्रमुख फसलों की तुलना में अलग-अलग तरह की, छोटे पैमाने पर, कम इनपुट वाली खेती प्रणाली के लिए फिट है। और क्योंकि यह मजबूत जड़ वाली एक प्रकार की घास है, जिससे यह फसल ऐसे राज्य में मिट्टी के कटाव को कम करने में मददगार साबित होती है, जहां बारिश के मौसम में बंगाल की खाड़ी से भयानक तूफान आते हैं।

बाजरा कम उपजाऊ मिट्टी, पहाड़ी इलाकों, कम बारिश और उच्च तापमान में भी बच जाता है और क्लाइमेट शॉक्स को एडजस्ट कर लेता है। उदाहरण के लिए मांडिया, यह लाल और उथली काली मिट्टी में भी पैदा होती, जो कि ओडिशा के पूर्वी घाट में पाई जाती है।

जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से प्रेरित बाढ़ और सूखे जैसी मौसम की चरम तबाही का सामना कर रही है, तो ऐसे मोड़ पर यह पूछना अनिवार्य है कि स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण में रहे बिना जीवन का अधिकार क्या है? हम इस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं, जिसमें कोई भी असंतुलन-मानव निर्मित या प्राकृतिक, हमारे जीवन के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के जीवन को भी जोखिम में डालता है। यही कारण है कि ओडिशा सरकार ने उस संतुलन को बनाए रखने और किसी भी असंतुलन को ठीक करने की कोशिशों को दोगुना कर दिया, जो अप्रत्याशित परिस्थितियों की वजह से प्रकट हो सकता है।

अभी तक का प्रभाव असरदार: ओडिशा ने अपने बाजरा मिशन के जरिए वातावरण को कार्बन मुक्त करने का बीड़ा उठाया है। बाजरा पर्यावरण के अनुकूल हैं, क्योंकि वे वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने में मदद करते हैं और इस तरह से उनका कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। बाजरे के खेत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ धरती की रक्षा में प्रत्येक वर्ष अग्रिम कतार में होते हैं। यह मानव-निर्मित कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करते हैं।

एकल-कृषि और सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के व्यापक उपयोग के लिए पिछले कुछ वर्षों में बाजरे की खेती को कम कर दिया गया था, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हुई है और भूमि जैव विविधता प्रभावित हुई है। लेकिन, बाजरा मिशन के तहत बहु-फसल के माध्यम से टिकाऊ खेती होने लगी है, जिससे अच्छा रिटर्न मिलता है, जैसे कि ज्वार और बाजरा को साथ में उगाया जाता है, ताकि और ज्यादा स्थायित्व आए और यह अब आम हो चुका है।

किसान अब ज्यादा पानी वाली खेती जैसे कि धान उगाने के भरोसे ही नहीं रह गए हैं। उन्नत कृषि पद्धतियों के साथ पारंपरिक कृषि-पारिस्थितिकी ज्ञान में तालमेल बिठाकर किसानों को बाजरे की खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया है। बाजरा कठोर और सूखे, कीटों एवं रोगों के प्रतिरोधी होते हैं। इनके तैयार होने का समय छोटा होता है (2 से 3 महीने, जबकि धान और गेहूं के लिए 4-5 महीने का समय लगता है) और कम से कम पानी में पूरे साल उगाया जा सकता है। बाजरा की खेती के लिए कम निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे किसान को धान, गेहूं और मक्के जैसी फसलों की तुलना में वजन के हिसाब से ज्यादा पैसा मिलता है। पोषण से भरपूर होने के अलावा, बाजरे के दानों का भंडारण उम्र काफी लंबा है, कुछ तो कटाई के 12 साल बाद तक भी खाने योग्य रहते हैं।

यह मिशन स्थानीय संगठनों के सहयोग से काम कर रहा है, जैसे कि महिला स्वयं सहायता समूह, क्षेत्रीय शिक्षा केंद्र, वन एवं पर्यटन विकास एजेंसी (CREFTDA) और ग्राम स्वराज। गुणवत्ता वाले अनाज को स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर चुना और उपलब्ध कराया जाता है। साथ ही किसानों को जैविक खाद, जैसे कि कंपोस्ट और पशुओं के गोबर के साथ जैविक रूप से फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। सभी सामग्री जैविक हैं- बीज, खाद, पीडकनाशी, कीटनाशक। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधन, जैसे कि गाय का गोबर और मूत्र, करंज के पत्ते (Pongamiapinnata),अरखा के पत्ते (Calotropisgigantea),नीम के पत्ते (Azadirachtaindica) और गुड़ का उपयोग जैविक, पर्यावरण के अनुकूल उर्वरकों और पेस्ट-कंट्रोल सॉल्यूशन बनाने के लिए किया जाता है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है।

बहु-फसल से किसानों को मौसम की विपरीत परिस्थितियों (extreme weather) का सामना करने में मदद मिली है। यदि कीड़ों के हमले या अनियमित बारिश के कारण एक फसल खराब हो जाती है, तो दूसरी बच जाती है। बड़े पौधे छोटे पौधों को तेज हवाओं से बचाते हैं। यह फसलों, पेड़ों और पशुओं को आपस में जोड़ता है। बाजरा के पौधों का उपयोग पशुओं के चारे के लिए किया जाता है, जिससे पशुओं को चराने की आवश्यकता कम हो जाती है। इसके कारण अतिचारण की समस्या कम होती है, जो पारिस्थितिकी को होने वाली नुकसान की बहुत बड़ी वजह है।

वाटरशेड मैनेजमेंट इस मिशन का हिस्सा है, खासकर पहाड़ी ढलानों में जो बारिश के बावजूद पानी के बहाव की वजह से सूखा झेलते हैं। क्योंकि, बाजरा लगभग शुष्क इलाकों में भी उग सकता है, इसलिए इस फसल ने जंगल की पुरानी कहावत को साकार किया है: 'किसानों के पैर जमीन पर होते हैं, लेकिन उनकी नजरें आसमान पर होती हैं।'

उन्हें बारिश के इंतजार में बैठने की आवश्यकता नहीं है। बाजरे की खेती ने विशाल, उच्च लागत वाली सिंचाई के बुनियादी ढांचे के निर्माण की आवश्यकता को काफी हद तक कम कर दिया है। सिंचाई वाली गहन कृषि के लिए कृषि योग्य भूमि में हाल के दशकों में वृद्धि हुई है। लेकिन, बाजरे की खेती ने हाल तक बारिश पर आधारित फसलों के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षेत्रों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है।

(लेखक- सचिव, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी और साइंस एंड टेक्नोलॉजी हैं और ओडिशा के मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं। उनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है )

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English summary
Millets Mission in Odisha changed the fate of farmers and the picture of agriculture. At the same time, it is also beneficial for climate change
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