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Gujarat election 2017: 'ओखी' ने बदल दिया है गुजरात चुनाव का क्लाइमेक्स

By अमिताभ श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार
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नई दिल्ली। कहते हैं जो सोचते हैं जरूरी नहीं वो काम पूरा हो और वैसा ही हो, जैसा प्लान किया है। हम बात कर रहे हैं गुजरात चुनाव की, जिसमें पहले चरण के क्लाइमेक्स के वक्त खलल आ गया है और ये खलल डाला है ओखी ने। जब चुनाव प्रचार चरम पर पहुंचने की ओर बढ़ रहा था तभी ओखी ने चुनाव में ठंडक ला दी है। इससे बीजेपी और कांग्रेस दोनों की धुआंधार चुनाव प्रचार की हसरतें रोक दी हैं और चुनाव से ज्यादा चिंता ओखी से होने वाली दिक्कतों की ओर बढ़ गई हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तीन रैलियां रद्द हो गईं और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की भी इतनी ही रैलियां नहीं हो पाईं।

बीजेपी को भी काफी नुकसान

बीजेपी को भी काफी नुकसान

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे के दौरे स्थगित हो गए। पहले चरण की 89 सीटों पर 9 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं और चुनाव आयोग के आदेश के मुताबिक प्रचार अभियान पर सात दिसंबर की शाम से थम जाएगा और इसी दौरान दोनों दलों ने धुआंधार चुनावी सभाएं रखीं थी ताकि आखिरी वक्त तक मतदाताओं को लुभाया जा सके लेकिन सारी तैयारियों पर ओखी का असर होता नजर आ रहा है। मौसम विभाग के मुताबिक दक्षिण गुजरात के समुद्र तट पर छह दिसंबर तक खतरा बना हुआ है। सबसे ज्यादा मुश्किल ये है कि जो नेता इन दो दिनों में दिल्ली और दूसरे राज्यों से बुलाए गए थे, उनकी हवाई यात्रा पर खतरा मंडरा रहा है और ऐसे में वो गुजरात पहुंच पाएंगे या नहीं, कहा नहीं जा सकता। इन दो दिनों के लिए बीजेपी ने आक्रामक प्रचार अभियान तैयार किया था इसलिए बीजेपी को भी काफी नुकसान होना है।

राजनीतिक तूफान पर ओखी तूफान भारी

राजनीतिक तूफान पर ओखी तूफान भारी

पार्टी ने आखिरी वक्त में माहौल बनाने के लिए तमाम मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और स्टार प्रचारकों की रैलियां तय कर रखी थीं। रोड शो भी आयोजित होने थे। कांग्रेस ने भी राहुल गांधी की ताजपोशी का कार्यक्रम गुजरात को ध्यान में रखकर बनाया था और इसीलिए चार दिसंबर को नामांकन के बाद आखिरी जोर लगाने के लिए पांच से सात दिसंबर तक कई रैलियां होनी थीं। इधर चुनाव आयोग को अलग चिंता सता रही है कि वोटिंग के लिए जो दल भेजे जाते हैं वो दो दिन पहले से ही रवाना होते हैं और सुरक्षा बलों को भी दूरदराज इलाकों तक पहुंचना होता है। ऐसे में न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकार की जिम्मेदारियां ओखी से निपटने के लिए बढ़ गई हैं। चुनाव की तैयारियां अलग हैं और इसमें कोई बाधा आती है तो सरकार पर सवाल उठ सकते हैं। एक तरफ चुनाव की चिंता और दूसरी तरफ ओखी का खतरा, कहा जा सकता है कि राजनीतिक तूफान से ज्यादा ओखी तूफान भारी पड़ता दिख रहा है।

चुनावी गतिविधियों पर बुरा असर

चुनावी गतिविधियों पर बुरा असर

ओखी तूफान का असर पूरे गुजरात ही नहीं पूरे देश में हो रहा है। मौसम बदल चुका है, राज्य के नौ जिलों में बारिश या हल्की बूंदाबांदी हुई है। ऐसे में चुनावी गतिविधियों पर बुरा असर शुरू हो चुका है। चाहे वो राजनीतिक दलों के लिए हो या फिर चुनाव आयोग के लिए। प्रधानमंत्री का ट्वीट आ चुका है और उन्होंने कहा है कि वो लगातार इस पर नजर रखे हैं और यदि कोई भी दिक्कत होती है तो बीजेपी कार्यकर्ताओं को मदद के लिए तैयार रहने को कहा है। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी भी अधिकारियों के साथ मंत्रणा में जुटे हुए हैं।

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