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दूरदर्शन को तो मरने के लिये छोड़ दिया मनीष तिवारी ने

By Mayank
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नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के डीडी पर इंटरव्यू में गैर जरूरी व राजनैत‍िक दबाव में किया गया संपादन अब सवालों के घेरे में है। साथ ही कटघरे में हैं सूचना प्रसारण मंत्रालय। मोदी के साक्षात्कार में प्रमुख अंशों की कांट-छांट का मामला इतना बढ़ा कि केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी को सफाई पेश करनी पड़ी। दूर दर्शन में दखलंदाजी को नकारते हुए मनीष त‍िवारी ने इसे ना सिर्फ सवायत्त बताया, बल्क‍ि सैम प‍ित्रोदा कमेटी की सिफार‍ि‍शों का राग गनगुनाते हुए अपनी पीठ भी थपथपाई।

मगर क्या आप जानते हैं कि प‍ित्रोदा कमेटी की सिफार‍िशें मानीं तो गईं पर ज़मीनी ढंग से लागू नहीं हुईं। मनीष त‍िवारी ने दूरदर्शन को कैसे मरने के लिए छोड़ दिया... घुमाएं स्लाइडर का पह‍िया और जाने एक-एक सच...

दूरदर्शन का नया नाम - सफेद हाथी

दूरदर्शन का नया नाम - सफेद हाथी

देश में एक चैनल से 700 आध‍िकार‍िक चैनल आ गए। पूरे देश में 15 करोड़ घरों में टी.वी. की आवाज़ें गूंजने लगी। अमरीका और चीन के बाद हम संचार के तीसरे सबसे बड़े बाजार के रूप में उभरे। कहा जाता है कि दूरदर्शन की पहुंच लगभग 90 प्रत‍िशत है, बावजूद इसके इसे फॉलो करने वालों का आंकड़ा निराश करता है।

दर्शक हुए दूरदर्शन से दूर

दर्शक हुए दूरदर्शन से दूर

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सैम पित्रोदा रिपोर्ट के क्रियान्वयन को दूर दर्शन के भव‍िष्य सुधारने की संजीवनी माना। बाकी रिपोर्टों की तरह प‍ित्रोदा की रिपोर्ट भी दूरदर्शन का 'कल्याण' नहीं कर सकी। वहीं अगर सरकारी, निष्पक्ष, विश्वसनीय मीड‍िया का जिक्र होता है तो हमारे मन में 'बीबीसी' का ही नाम आता है।

एक बीबीसी, एक दूरदर्शन

एक बीबीसी, एक दूरदर्शन

दुन‍िया भर में कुल 30 लोक सेवा प्रसारण हैं। ब्र‍िट‍िश ब्रोडकास्ट‍िंग कॉर्पोरेशन का मॉडल इतना मजबूत व विकस‍ित है कि आज इसे दुनिया भर में सम्मान और विश्वास की नजर से देखा जाता है। सबसे ज्यादा विश्वसनीय व लोकप्र‍िय मीड‍िया का ख‍िताब बेशक बीबीसी को ही जाता है।

कंटेंट में प‍िछड़ गया डीडी

कंटेंट में प‍िछड़ गया डीडी

बीबीसी की खास‍ियत है कि वह अपने कंटेंट से दर्शक-पाठकों को प्रभाव‍ित करता है। स‍िर्फ यूके ही नहीं दुन‍िया के कई ह‍िस्सों में बीबीसी का झंडा बुलंद है। बीबीसी का फाइनेंश‍ियल सोर्स यूके का आम नागर‍िक है। वहां टैक्स के तौर पर जो सब्सक्राइबर फीस भरते हैं, उससे बीबीसी का खर्च निकलता है।

खर्च कम, उम्मीदें ज्यादा

खर्च कम, उम्मीदें ज्यादा

बीबीसी को प्राप्त हुई रकम का 70 फीसदी ह‍िस्सा उसके प्रोग्राम, कंटेंट पर खर्च किया जाता है। बीबीसी जैसे विश्वस्तरीय मीड‍िया ब्राण्ड से दूरदर्शन ने कभी सीखने की कोश‍िश नहीं की। अच्छे व काब‍िल लोगों का चयन, कंटेंट, निष्पक्षता, बेबाकी, रफ्तार जैसे तत्वों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया।

नीयत ही है कमज़ोर

नीयत ही है कमज़ोर

दूरदर्शन के आंकड़ों में दर्ज है कि हर साल 1800 करोड़ का बजट इस 'सफेद हाथी' के लिए जारी किया जाता है, जिसमें से सिर्फ 1000 करोड़ खर्च किए जाते हैं। आज यद‍ि मनीष त‍िवारी सैम प‍ित्रोदा रिपोर्ट की बड़ी बड़ी बातें कर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं तो उसके पीछे दूर दर्शन का कड़वा सच भी छिपा है।

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