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जानिए जेडीयू बीजेपी को कैसे दलितों और ओबीसी में पकड़ बनाने से रोक रही है

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नई दिल्ली: बिहार में भाजपा और जेडीयू साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सहयोगी के तौर पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी का काम किया है। उसने बीजेपी के दलितों और अति पिछड़ों में उभरने की ताकत को रोकने की कोशिश की है। रविवार को बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए ने बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर समझौते के तहत सीटों के बंटवारे का ऐलान कर दिया। बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं एलजीपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

बिहार में 6 सुरक्षित सीटें

बिहार में 6 सुरक्षित सीटें

बिहार में 6 सीटें शेड्यूल कास्ट के लिए सुरक्षित हैं। इसमें तीन सीटों पर रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी, दो पर जनता दल यूनाइटेड लड़ेगी। भाजपा के लिए एकमात्र सुरक्षित सीट छोड़ी गई है। इसे काफी हद तक उच्च जाति, शहरी मतदाता की पार्टी के रूप में देखा जाता है। बिहार विधान परिषद के एक भाजपा सदस्य ने द प्रिंट से कहा कि सीट समझौते के माध्यम से नीतीश कुमार ने यह सुनिश्चित किया है कि हम वापस एक वर्ग (बनिया और ऊंची जातियों) की में आएं।

भाजपा की नजर कुशवाहा वोटर पर

भाजपा की नजर कुशवाहा वोटर पर

पिछले कुछ सालों से बिहार मे भाजपा ने कुशवाहा जाति के सदस्यों को साधने की कोशिश की है, जो राज्य की आबादी का 6 से 8 प्रतिशत हिस्सा हैं। साल 2015 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के वर्ष में, इस मान्यता का प्रचार किया गया है कि मौर्य राजा अशोक कुशवाहा जाति थे। पार्टी ने उनकी जयंती भी मनाई जबकि प्रसिद्ध इतिहासकारों का दावा है कि किसी भी प्राचीन ग्रंथ में उनकी जाति या उनकी जन्मतिथि का उल्लेख नहीं है । एनडीए के पूर्व सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा को 2014 लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत बिहार में तीनों सीटों पर चुनाव लड़ा गया था। नए सीट समझौते केतहत बीजेपी ने किसी भी कुशवाहा को मैदान में नहीं उतारा जबकि वो चाहते थे कि कुशवाहा के चेहरे के रूप में खगड़िया सीट से सम्राट
चौधरी को लड़ाया जाए। लेकिन ये सीट एलजीपी के पास चली गई। इन कोशिशों पर नीतीश ने अड़ंगा लगा दिया।

2014 मे भाजपा को मिली बंपर जीत

2014 मे भाजपा को मिली बंपर जीत

2005 से नीतीश सरकार के साथ सत्ता में रहने का फायदा बीजेपी को मिला। हालांकि 2013 में ये गठबंधन टूट गया था। हालांकि 2014 तक बिहार में भाजपा व्यापक तौर पर स्थापित हो चुका था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 22 सीटों पर जीत के साथ यह संकेत दिया था कि इसमें ईबीसी(अति पिछड़ी जातियों) और दलितों के एक बड़े हिस्से का समर्थन था, जो पहले नीतीश के पाले में थे। एक भाजपा नेता का कहना है कि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में हमने 243 सीटों में से केवल दो-तिहाई सीटों पर चुनाव लड़े थे, लेकिन अपने दम पर हमने 24 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त किए और प्रति विधानसभा सीट पर मतों की औसत संख्या 60,000 थी। यह एक ऐसी उपलब्धि थी जिस पर हम दोबारा इसका निर्माण कर सकते थे,। नीतीश ने इसमें हमें दोबारा शामिल नहीं किया।

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English summary
JDU block the efforts of BJP in bihar to outreach Dalit and EBC
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