वाह नीतीश बाबू वाह......अब बिहारी DNA सही हो गया?
पटना। बिहार की सत्ता कल तक जेडीयू और राजद के हाथ में थी और आज ये सत्ता जेडीयू और बीजेपी की हो गई है।24 घंटे से भी कम वक्त में बिहार में सियासी नुमाइंदे बदल गए लेकिन एक चीज नहीं बदली और वो है नीतीश कुमार की कुर्सी। वो कल भी सीएम की कुर्सी पर बैठे थे और आज भी वो मुख्यमंत्री की गद्दी की शोभा बढ़ा रहे हैं।
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कहते हैं राजनीति की धरती पर कोई किसी का सगा नहीं होता है और ये बात पूरी तरह से आज बिहार में साबित हो गई है। साल 2013 में पीएम मोदी की वजह से भाजपा से करीब 17 साल पुराना नाता तोड़ने वाले नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन में अपने धुर विरोधी लालू संग हाथ मिलाया था तो भी लोगों को लगा था कि नीतीश ने ये क्या किया?
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'बिहार का DNA'
उन दिनों चुनावी रैली में जमकर बीजेपी पर लालू और नीतीश की ओर से जहर की हांडी उड़ेली गई थी, केवल ये दोनों नेता ही नहीं बल्कि खुद पीएम मोदी ने भी चुनावी रैलियों में महागठबंधन के खिलाफ कोई भी खरी बात कहने में चूक नहीं की। दोनों के बयान चुनावी मु्ददे बने थे और इसी में से एक मुद्दा था 'बिहार का DNA'।
बिहार की राजनीति के डीएनए में कुछ कमी है
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जब पीएम ने बिहारियों के डीएनए को खराब बताया था और यहां तक कहा था कि बिहार की राजनीति के डीएनए में कुछ कमी है जिसके चलते नीतीश को अपने साथी को छोड़ना पड़ा है। पीएम के इस बयान के बाद तो सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार ने बिहारियों को ललकारा था और अपमान का बदला लेने के लिए 50,000 लोगों ने पीएम मोदी को अपना डीएनए सैंपल के रूप में बाल और नाखून भेजकर डीएनए टेस्ट करने की बात कही थी।
बिहार में विकास का गला घोंट दिया
पीएम मोदी ने मुजफ्फरपुर की रैली में नीतीश कुमार पर आरोप लगाया था कि उन्होंने व्यक्तिगत राजनीतिक रंजिश की वजह से बिहार में विकास का गला घोंट दिया, पीएम मोदी ने कहा कि नीतीश कुमार को मुझसे परेशानी थी तो वो मुझे बुरा भला कह लेते लेकिन उन्होंने तो जंगलराज के प्रतीक माने जाने वाले लालू यादव से ही हाथ मिला लिया।
मौकापरस्त की राजनीति
और आज जब नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो गए हैं तो पीएम मोदी ही उन्हें सबसे पहले बधाई दी है, बीजेपी आज नीतीश को अपना पुराना साथी बता रही है और विकास पुरूष कह रही है। मौकापरस्त की ये राजनीति ये बताने के लिए काफी है कि सत्ता का भूखा ऊंट उसी ओर मुंह करता है जिधर की हवा चलती है और इस वक्त नीतीश को समझ में आ चुका है कि देश में बीजेपी की आवो-हवा है और इसी कारण DNA खराब होने के बावजूद वो आज कमलधारियों के साथ है।
एक नजर नीतीश के कुछ ऐसे कदम पर जिसे बीजेपी को याद करना चाहिए...
- 2002 में भाजपा के अध्यक्ष से नाराज़ होकर रेलवे मंत्री के तौर पर इस्तीफ़ा
- 2013 में मोदी की वजह से भाजपा से गठबंधन तोड़ा
- 2014 में आम चुनावों में करारी हार होने पर इस्तीफ़ा और मांझी को मुख्यमंत्री बनाना
- फिर मांझी से भी दिक्कत हो गयी और खुद मुख्यमंत्री बनना
- फिर 2015 में राजद के साथ गठबंधन करना
- 26 जुलाई 2017 में फिर से यूपीए से इस्तीफ़ा और गठबंधन तोड़ना
- 26 जुलाई 2017 में एनडीए मे शामिल और भाजपा के मित्र