कश्मीर में पत्थरबाजी और तनाव के बीच ही आज होगी पीएम मोदी और सीएम महबूबा की मीटिंग
जम्मू कश्मीर में बिगड़े हालातों और पीडीपी-बीजेपी गठबंधन में दरारा की खबरों के बीच ही आज होगी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात।
नई दिल्ली। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बीच एक अहम मुलाकात होने वाली है। दोनों के बीच यह मुलाकात इसलिए अहम है क्योंकि जहां एक ओर घाटी में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं तो वहीं बीजेपी-पीडीपी गठबंधन पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
पीएम मोदी देंगे महबूबा को कड़ा संदेश
मुलाकात के दौरान दोनों नेता राज्य में सरकार की स्थिति और घाटी में हिंसा के हालातों पर चर्चा कर सकते हैं। मोदी, महबूबा को यह बात साफ कर देना चाहेंगे कि दोनों पार्टियों के बीच जो भी मुद्दे हैं उन्हें जल्द से जल्द सुलझा लिया जाना चाहिए। वहीं पीएम मोदी, महबूबा को दो टूक यह भी बता देंगे कि कश्मीर में सेना और अधैसैनिक बल किसी भी कीमत पर पत्थरबाजों के साथ नरमी नहीं बरतेंगे। वह सीएम को यह साफ कर देना चाहेंगे कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार से यह उम्मीद न रखे कि वह सेना और सुरक्षाबलों को ऐसा करने के आदेश देगी। आपको बता दें कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोवाल यह कह चुके हैं, ' पत्थरबाजों को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है। यह वक्त बीत जाएगा क्योंकि पत्थरबाज ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाएंगे।' डोवाल और सरकार दोनों का ही मानना है कि इस समय हर किसी को संतुष्ट करने या फिर खुश करने की नीति प्रभावी नहीं रह पाएगी। उन्होंने अपनी इस बात को पीएम मोदी के साथ हुई कई मीटिंग में साफ कर दिया है। वह पीएम को संदेश दे चुके हैं कि इस समय घाटी के राष्ट्रविरोधी तत्वों के लिए नरम रवैया अपनाने का कोई मतलब नहीं है। सरकार की ओर से राज्य सरकार को साफ कर दिया जाएगा कि पत्थरबाजों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बीजेपी गठबंधन सरकार में उभरे कुछ मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार है लेकिन वह इस मुद्दे पर हरगिज राजी नहीं है कि सेना या फिर अर्धसैनिक बलों को पत्थरबाजों के खिलाफ नरम रवैया अपनाना होगा।
डोवाल की नीति पर चल रही है सरकार
केंद्र सरकार का कहना है कि उसने अलगाववादी नेताओं से बात करने की कई कोशिशें की हैं लेकिन वह अपनी जिद पर अड़े हैं। वे पाकिस्तान की लाइन पर ही चलना चाहते हैं और घाटी के हालातों को तनावपूर्व बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि राज्य सरकार अगर चाहे तो अलगाववादी ताकतों से बातचीत कर सकती है। एनएसए अजित डोवाल का मानना है कि वर्ष 1947 से हर किसी को खुश करने की नीति राज्य की बड़ी समस्या बन चुकी है। वर्ष 2010 में जब घाटी में पत्थरबाजी हुई तो उस समय भी डोवाल का मानना था कि इन तत्वों पर ज्यादा प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है क्योंकि से ज्यादा दिन क नहीं टिक पाएंगे। उनका मानना है कि फिलहाल इस समय पाकिस्तान से आए तत्वों को घाटी से बाहर निकालने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से हम देखें। डोवाल ने वर्ष 2010 और फिर 2016 में कहा था कि घाटी में विरोध प्रदर्शनों की वजह सिविल सोसायटी का आगे बढ़ना नहीं है। बल्कि यह पाकिस्तान का एक एजेंडा है ताकि कश्मीर में हिंसा भड़कती रहे। डोवाल ने पत्थरबाजों पर बल प्रयोग की भी तरफदारी की है क्योंकि कई बार पत्थरबाजों का रवैया किसी को खत्म कर देने वाला होता है। हालांकि उन्होंने निर्दोष लोगों पर बल प्रयोग की बात को गलत बताया है।