क्यों कश्मीर के पुलवामा में सेना और सुरक्षाबलों ने घेरा है 20 गांवों को, क्या होता है सेना का खास सर्च ऑपरेशन कासो
पुलवामा। सेना, सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में सबसे बड़ा सर्च ऑपरेशन लॉन्च किया है। पुलवामा के 20 गांवों को घेर लिया गया है। सेना की टीमों समेत सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर पुलिस के कमांडों ने रात से गांवों में डेरा डाला हुआ है। आतंकियों की तलाश जारी है और इसे आतंकियों के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है। खास बात है कि यह सर्च ऑपरेशन पिछले दिनों हुई उस घटना के बाद लॉन्च किया गया है जिसमें आतंकियों ने राज्य पुलिस के 11 रिश्तेदारों को अगवा कर लिया था। पुलवामा में बाहर जाने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं और किसी को भी अंदर आने की इजाजत नहीं है। यह सर्च ऑपरेशन एक ज्वाइॅन्ट ऑपरेशन है जिसे पुख्ता इंटेलीजेंस के बाद लॉन्च किया गया है। हालांकि सेना ने पिछले वर्ष अपने एक ऐसे खास ऑपरेशन की बहाली की थी जिसे घाटी में आतंकियों के लिए मुसीबत माना गया।
पिछले वर्ष हुआ कासो का कमबैक
कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन यानी कासो, जिसने पिछले वर्ष कश्मीर घाटी में कमबैक किया था, आतंकियों के खिलाफ सेना को आक्रामक अभियान माना जाता है। पिछले वर्ष कासो को उस समय लॉन्च किया गया था जब आतंकियों लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या कर दी थी। कासो को सेना ने साल 2002 में बंद कर दिया था। लेकिन पिछले वर्ष आतंकियों के आक्रामक होने पर सेना ने इसे फिर से लॉन्च करने का मन बनाया था। सोमवार को पुलवामा में जो सर्च ऑपरेशन लॉन्च किया गया है उसे भी कासो का ही हिस्सा करार दिया जा रहा है।
क्या है कॉर्डन एंड सर्च ऑपरेशन
कासो वह मिलिट्री रणनीति है जिसके तहत उस इलाके को घेराबंदी की जाती है जहां पर आतंकी या फिर हथियार होने की संभावना होती है। यह स्ट्रैटेजी काउंटर इनसर्जेंसी ऑपरेशंस का बेसिक होती है। 90 के दशक में जब कश्मीर में चरमपंथ ने पैर पसारने शुरू किए थे तो इस रणनीति को सख्ती से अपनाया गया। पिछले वर्ष जब घाटी में कासो की वापसी हुई तो सेना की ओर से कहा गया था कि 15 वर्ष के बाद यह काउंटर टेरर ऑपरेशंस का स्थायी भविष्य है। इसके साथ ही यह बात भी साफ हो गई है कि इस बार यह रणनीति आने वाले वर्षों तक कायम रहेगी और सेना इसे लेकर अपने रुख में परिवर्तन करने को तैयार नहीं होगी।
क्यों किया गया था बंद
कासो को 15 वर्ष पहले यानी 2002 में सेना ने बंद करने का फैसला किया। स्थानीय नागरिकों को इन ऑपरेशंस की वजह से खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। सेना ने इस वजह से ही इसे बंद करने का फैसला किया था। लेकिन अब फिर से कश्मीर के हालातों को देखते हुए इस रणनीति को अपनाने का फैसला किया गया।पिछले कुछ दिनों से जब कभी भी किसी गांव या फिर बिल्डिंग में आतंकी छिपे होते हैं उस समय एनकाउंटर के दौरान सेना पर पत्थरबाजी होती और बड़े पैमाने पर लोग विरोध प्रदर्शन पर उतर आते। इस वजह से ही सेना ने फिर से कासो को फिर से लॉन्च करने का मन बनाया था। इसके अलावा आतंकियों के जनाजे में जिस कदर भीड़ उमड़ती है, वह भी यह बताने के लिए काफी है कि स्थानीय लोग किस स्तर तक आतंकवादियों के लिए अपना समर्थन जताने की कोशिश करते हैं।
आतंकियों का स्वर्ग बन गया है साउथ कश्मीर
पिछले वर्ष कासो को साउथ कश्मीर के कुछ खास हिस्सों कुलगाम, पुलवामा, त्राल और शोपियां में चलाने के अलावा बडगाम में भी चलाया गया था। इस बार भी इस ऑपरेशन के तहत साउथ कश्मीर पर रखी जाएगी। साउथ कश्मीर, घाटी का वह हिस्सा है जिसे आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगार माना जाता है। हिजबुल कमांडर बुरहान वानी समेत हिजबुल और लश्कर ए तैयबा के कई आतंकी, साउथ कश्मीर से ही आते हैं। इसके अलावा यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जो आतंकियों के छिपने और साजिशों को अंजाम देने में मदद करती है। यह हिस्सा पाकिस्तान के भी करीब है और एलओसी पार करने में आतंकियों को ज्यादा परेशानियां नहीं होती हैं।