महाराष्ट्र: फडणवीस और अजित पवार के पास क्या हैं विकल्प
जब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की सरकार बनने की सबसे ज़्यादा संभावना लग रही थी, तभी अचानक बीजेपी और अजित पवार बहुमत का दावा करते हुए सामने आ गए. इसके बाद जब इनके बहुमत को मानते हुए महाराष्ट्र में फिर से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने 50 विधायकों के समर्थन का दावा ठोक दिया.
जब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस की सरकार बनने की सबसे ज़्यादा संभावना लग रही थी, तभी अचानक बीजेपी और अजित पवार बहुमत का दावा करते हुए सामने आ गए.
इसके बाद जब इनके बहुमत को मानते हुए महाराष्ट्र में फिर से देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने 50 विधायकों के समर्थन का दावा ठोक दिया.
उन्होंने ये भी कहा कि अजित पवार के पास दो तिहाई विधायकों का समर्थन नहीं है, ऐसे में बीजेपी बहुमत साबित नहीं कर पाएगी.
रविवार को एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने भी कहा था कि उनके साथ 50 विधायक मौजूद हैं, बाक़ी के चार विधायकों से भी संपर्क हो रहा है, उन्हें बीजेपी के लोगों ने कहीं रखा है लेकिन वे हमारे साथ लौट आएंगे.
इसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस जल्दी बहुमत साबित करने का आदेश देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. जिस पर कोर्ट मंगलवार को फ़ैसला सुनाएगा.
साथ ही सोमवार को तीनों दलों ने मुंबई के ग्रैंड हयात होटल में 162 विधायकों की परेड कराई (यानी इकट्ठा किया) और बहुमत होने का प्रदर्शन भी किया. तीनों दलों का दावा है कि बीजेपी बहुमत हासिल नहीं कर सकती.
लेकिन, बीजेपी और अजित पवार अभी तक अपने दावे पर क़ायम हैं कि वो अपना बहुमत साबित कर देंगे और उन्हें पर्याप्त विधायकों का समर्थन हासिल है. हालांकि, वह तुरंत बहुमत साबित करने के लिए तैयार नहीं है.
दो गठबंधन और दोनों ही दावा कर रहे हैं लेकिन सरकार तो किसी एक ही रहनी है. संभावनाएं दोनों के लिए बाक़ी हैं. ऐसे में किन हालात में बीजेपी और अजित पवार वाली एनसीपी की सरकार बनी रह सकती है और किन में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार बन सकती है.
क्या कर सकती है बीजेपी?
इस संबंध में बीबीसी मराठी के संपादक आशीष दीक्षित ने बताया कि बीजेपी के लिए वर्तमान हालात में दो संभावनाएं निकलकर आती हैं.
पढ़ें उन्होंने क्या कहा:
पहली संभावना की बात करें तो बीजेपी के लिए सबसे ज़रूरी है कि एनसीपी के कम से कम 36 विधायक अजित पवार के साथ आएं. एनसीपी के 54 विधायकों में से 36 के साथ आने पर ही एक गुट बन सकता है. जिससे बहुमत भी आएगा और दल-बदल क़ानून से भी बचा जा सकता है.
अगर बीजेपी और अजित पवार इसमें सफ़ल हो गए तो बीजेपी के लिए आगे की राह बहुत आसान होगी.
दूसरी संभावना है कि अगर बीजेपी इतने विधायक नहीं जुटा पाती है तो उन्हें बहुमत की संख्या को नीचे लाना पड़ेगा. इसके लिए बहुत सारे विधायकों को वोटिंग से रोकना होगा.
फिलहाल देखें तो बीजेपी के पास 105 विधायक हैं. साथ ही अपने छोटे-छोटे सहयोगी दलों, बागी नेताओं और निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलाकर 14 और विधायकों का उन्हें समर्थन हासिल है. बताया जा रहा है कि अजित पवार के साथ ज़्यादा से ज़्यादा तीन विधायक हैं जिनमें वो ख़ुद भी शामिल हैं.
इस तरह बीजेपी के पास कुल मिलाकर 122 विधायक बनते हैं. अब उसे बहुमत के 145 के लिए 23 विधायक और चाहिए होंगे.
लेकिन, अगर बीजेपी को 122 तक बहुमत की संख्या लानी है तो उसे 23 से दुगने यानी 46 विधायकों को वोटिंग से रोकना होगा. अगर वो शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के कुल 46 विधायकों को रोक पाते हैं या वॉकआउट के लिए मना लेते हैं तो उनकी सरकार बच सकती है.
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अन्य दलों के लिए संभावना
शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की बात करें तो सोमवार को उन्होंने मुंबई में दिखाया कि उनके पास बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्त विधायक हैं. उन्होंने सोमवार को 162 विधायक होने का दावा किया और क्योंकि तीनों दल साथ ही मौजूद थे तो ऐसा होना संभव भी है.
इस तरह देखें तो वो आसानी से बहुमत साबित कर सकते हैं लेकिन मुश्किल ये होगी कि अगर विधायकों की खरीद-फरोख्त हुई तो उनकी संख्या पर असर पड़ सकता है.
वहीं, सोमवार को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले और उन्हें तीनों दलों के विधायकों का समर्थन प्राप्त होने की चिट्ठी सौंपी. साथ ही उन विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठियां भी दीं.
अब उन्होंने राज्यपाल को ये बता दिया है कि उनके पास सरकार बनाने के लिए बहुमत है. ऐसे में राज्यपाल को उन्हें बुलाना चाहिए.
एनसीपी ने भी यही कहा कि हमें डर है कि अगर देवेंद्र फणनवीस हार जाते हैं तो ये विधानसभा बर्खास्त कर देंगे और ऐसा न हो इसलिए हम पहले ही दावा पेश कर रहे हैं.
राज्यपाल के लिए इस चिट्ठी की उपेक्षा करना आसान नहीं होगा क्योंकि उन्हें सरकार बनाने की सभी संभावनाओं को देखना ज़रूरी होता है.
अजित पवार के पास कितनी पावर
इस मामले में व्हिप जारी करने का मुद्दा उठ रहा है. किसी पार्टी में विधायक दल का नेता ही व्हिप जारी करता है और विधायकों को वोटिंग से जुड़े निर्देश देता है. लेकिन, अजित पवार फिलहाल एनसीपी में विधायक दल के नेता के पद पर नहीं हैं तो क्या उन्हें व्हिप जारी करने का अधिकार है?
इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन ने क़ानूनी प्रक्रिया की ये जानकारी दी:-
''हर एक पार्टी अपने विधायकों को एक व्हिप जारी करती है कि उन्हें किसके पक्ष में वोट करना है. अगर कोई एमएलए इससे अलग वोट करता है तो वो अयोग्य हो सकता है.
सीक्रेट बैलेट है तो तुरंत पता नहीं चलेगा कि किसने किसको वोट किया लेकिन पार्टियां आंतरिक तौर पर जांच करती ही हैं. अगर जांच में साबित होता है कि उनकी पार्टी के किसी विधायक ने क्रॉस वोट किया है तो उनकी दल-बदल क़ानून के तहत अयोग्यता के लिए स्पीकर को सिफ़ारिश की जा सकती है. एक बार विधायक अयोग्य हो जाए तो उन्हें दोबारा चुनाव लड़ना पड़ता है.
अजित पवार का मामला थोड़ा ग्रे एरिया है. उन्हें हटाया तो गया है लेकिन हटाने के लिए भी एक प्रक्रिया अपनाई जाती है. क्योंकि विधायक दल के नेता को उसे पार्टी के सभी विधायकों की सहमति से उनका नेता चुना जाता है.
अजित पवार ने राज्यपाल को दो पत्र दिए थे. एक में कहा गया था कि उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया है और दूसरे में था कि उन्होंने बीजेपी को अपना समर्थन दिया है.
अभी अजित पवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने हटाया है लेकिन विधायक दल के नेता को हटाने की प्रक्रिया ये है कि सभी विधायकों की बैठक करनी होगी और कम से कम 50 प्रतिशत विधायकों को लिखित में देना होगा कि उन्हें मौजूदा विधायक दल के नेतृत्व पर भरोसा नहीं है और वो किसी दूसरे नेता को चुनना चाहते हैं.
ये प्रक्रिया अपनाई नहीं गई है. सिर्फ़ ट्विटर पर हटाने की घोषणा की गई है. ऐसे में ये संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं, ये देखना होगा.
अजित पवार अपनी पार्टी के लिए व्हिप जारी कर सकते हैं और अगर विधायक क्रॉस वोटिंग करते हैं तो वो दल-बदल क़ानून के तहत अयोग्य हो जाएंगे.
अगर वो तुरंत अयोग्य हो जाते हैं तो विधानसभा का बहुमत भी कम हो जाएगा.
लेकिन, इसमें भी एक व्यवस्था की गई है. दल-बदल क़ानून कहता है कि अगर किसी पार्टी के कम से कम दो-तिहाई विधायक व्हिप के विपरीत वोटिंग करते हैं तो वो अयोग्य नहीं होंगे क्योंकि वो बहुमत का मत माना जाएगा.
ऐसे में एनसीपी के दो तिहाई विधायक व्हिप के बावजूद भी एनसीपी के लिए वोट कर सकते हैं.