क्या है Anti-Defection कानून, शरद पवार ने दी है NCP के बागी विधायकों पर कार्रवाई की धमकी
मुंबई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार, महाराष्ट्र में भतीजे अजित पवार की तरफ से बीजेपी को दिए समर्थन के बाद सरकार बनने के बाद खासे नाराज हैं। शनिवार को शिवसेना मुखिया उद्धव ठाकरे के साथ हुई एक ज्वॉइन्ट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने बागी विधायकों को एंटी-डिफेक्शन लॉ के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी दे डाली है। एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में शनिवार को बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस दोबारा महाराष्ट्र के सीएम बने हैं। आइए आपको बताते हैं कि क्या होता है यह एंटी-डिफेक्शन कानून जिसके आधार पर पवार ने विधायकों पर कार्रवाई के लिए वॉर्निंग दी है।
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विधायकों पर लिया जाएगा एक्शन
शरद पवार ने ज्वॉइन्ट प्रेस कॉन्फ्रेंस में चेतावनी दी और कहा, 'हम बागी विधायकों पर एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत कार्रवाई करेंगे और उप चुनाव होने की स्थिति में उनके खिलाफ शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस मिलकर संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करेंगे। इससे उनकी जीत काफी मुश्किल हो जाएगी।' पवार ने अप्रत्यक्ष तौर पर विधायकों को बता दिया है कि अगर उन्होंने विद्रोह किया तो ठीक नहीं होगा। उन्होंने अपने पार्टी के विधायकों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वो 'बगावत' करने की हर्गिज न सोंचे और अगर चाहें तो लौटकर वापस आ जाएं। पवार ने कहा कि लेकिन इसके बाद भी अगर वो वापस नहीं आना चाहते हैं तो फिर उन्हें भविष्य में बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
एंटी डिफेक्शन लॉ यानी दल-बदल विरोधी कानून
सन् 1967 में जब हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार अपनी पार्टी बदली तो भारतीय राजनीति में 'आया राम गया राम' कहावत मशहूर हो गई। इस दल-बदल को रोकने के लिए ही एंटी-डिफेक्शन लॉ बाया गया। भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची को 'दल बदल विरोधी कानून' के तौर पर जाना जाता है। इस कानून को साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा लाया गया था। यह कानून 'दल-बदल' करने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराने से जुड़े नियमों को परिभाषित करता है। इस कानून का मकसद राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल--बदल करने वाले जन प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि संसद-विधानसभा की स्थिरता बनी रहे।
क्या कहता है दल बदल कानून
इस कानून के इसके तहत दल बदल करने वाले विधायकों और सांसदों को अयोग्य करार दिया जाता है। इसके तहत सांसद या फिर विधायक, संसद या विधानसभा की सदस्यता से संबंधित पार्टी की तरफ से अयोग्य करार दे दिए जाते हैं। हालांकि दल-बदल कानून को कई बार अभिव्यक्ति की आजादी के हनन से भी जोड़कर देखा गया है। हालांकि इस कानून को एक स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में काफी प्रभावी माना जाता है। देश में आजादी के कुछ सालों के बाद ही राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले सामूहिक जनादेश को पार्टियां नजरअंदाज करने लगीं। इसके साथ ही देश में सांसदों-विधायकों के जोड़तोड़ करने से सरकारें गिरने और बनने का ट्रेंड शुरू हो गया।
कब अयोग्य ठहराए जाते हैं विधायक सांसद
इस कानून के तहत-
- अगर एक निर्वाचित सदस्य अपनी मर्जी से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
- अगर कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य कानून के विपरीत किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
- अगर किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
- अगर कोई सदस्य खुद को वोटिंग से अलग रखता है।
- अगर छह माह खत्म होने के बाद कोई चुना हुआ सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।