क्या सच में राजनैतिक दलों का 'बहु नहीं बहुमत' का नारा खोखला है?
लखनऊ। देश में चारों ओर राजनीतिक माहौल गर्माया हुआ है। हर पार्टी देश की आधी आबादी को बढ़ावा देने की बात करती है लेकिन जब पार्टियों के अंदर टिकट बंटवारे की बात आती है तो सारे दावे खोखले साबित होते है।
यूपी से शुरूआत करते हैं, जहां सबसे ज्यादा वोटर हैं लेकिन जहां इस प्रदेश की मिट्टी ने देश की प्रबल महिला राजनीतियों को जन्म दिया है वहीं देश की सभी राजनैतिक दल मिलकर भी प्रदेश में 100 महिला उम्मीदवार खड़ा नहीं कर पाये हैं जबकि यहां पर महिलाओं की आबादी 10 करोड़ है।
जिससे कि बहु नहीं बहुमत है..का नारा देने वाले सारे राजनैतिक दलों की पोल खुल जाती है। प्रदेश की यह स्थिति काफी शर्मनाक औऱ निराशाजनक है। ऐसा नहीं है कि जिन महिलाओं को मौका दिया गया है उन्होंने देश औऱ प्रदेश को निराश किया है बल्कि उन्होंने ने तो देश औऱ प्रदेश को गौरवान्वित होने का मौका दिया है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सुभद्रा जोशी, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, सुशीला नायर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, मेनका गांधी अथवा अभिनेत्री जयाप्रदा, सभी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और मिसाल कायम की। बावजूद इसके महिला उम्मीदवारों की स्थिति संतोषजनक नहीं है।
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साल 2009 में महिलाओं की स्थिति
2009 के लोकसभा चुनाव में चार बड़े दलों ने उत्तर प्रदेश से 28 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें से मात्र 11 महिलाएं ही संसद भवन पहुंचीं। बाद में हुए उपचुनाव में सपा की डिम्पल यादव जीतीं। रालोद के टिकट पर सारिका बघेल भी लोकसभा पहुंचीं।
साल 2014 में महिलाओं की स्थिति
2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण में उप्र से अभी तक कांग्रेस व बसपा ने 7-7, भाजपा व आप ने 6-6, सपा ने 5 और रालोद ने एक महिला को टिकट दिया है। यह वह प्रदेश है, जहां से संसद पहुंचने वाली महिलाएं देश की राजनीति को नई दिशा और विचार देने का कार्य करती रही हैं।
गौरवान्वित इतिहास
यह वो प्रदेश है जहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सुभद्रा जोशी, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित, सुशीला नायर, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, मेनका गांधी अथवा अभिनेत्री जयाप्रदा, सभी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और मिसाल कायम की।
सोनिया-मायावती-मेनका गांधी
सोनिया गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद तमाम कठिन परिस्थितियों से पार्टी को निकाला, वहीं मायावती ने दलित के घर जन्म लेकर तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उप्र में चार बार मुख्यमंत्री का पद संभालकर लोकतंत्र की सार्थकता सिद्ध की। जबकि मेनका गांधी ने पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम दिखा गौतमबुद्ध का संदेश देने का प्रयास किया।
हर जगह लोहा...
उन्नाव की सांसद अन्नू टंडन ने धमाकेदार तरीके से चुनाव जीत संसद में कारपोरेट जगत की उपस्थिति का अहसास कराया। सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह ने प्रतापगढ़ से कई बार जीत हासिल कर संसद में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।उनकी जीत पुराने रजवाड़ों को लोकतंत्र के सांचे में खुद को कारगर ढंग से ढाल लेने की बात को प्रमाणित करती है।
डिंपल यादव
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने संसद में जिस तरह की राजनीतिक मर्यादा का आचरण पेश किया, वह युवा सांसदों के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है।
राजनीति में परचम फहराया
उप्र से कई ऐसी महिलाएं भी संसद में पहुंची, जिन्होंने पहली बार घर की चैखट लांघी और राजनीति में परचम फहराया। इस तरह के सांसदों में तबस्सुम बेगम, सीमा उपाध्याय, कैसरजहां और सारिका बघेल प्रमुख हैं। वर्तमान में तो उप्र से कुल 13 महिला सांसद हैं, लेकिन बीते चुनावों में बमुश्किल औसतन 10 महिलाएं संसद पहुंच पा रही हैं।
महिलाओं को टिकट
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 10 महिलाओं को टिकट दिया था। सपा, बसपा व कांग्रेस ने 6-6 महिलाओं को टिकट दिया था। वहीं रालोद ने दो महिलाओं को मौका दिया। इनमें से सभी प्रमुख दलों की कुल 13 महिलाओं को जीत मिली।
खोखला है 'बहु नहीं बहुमत' का नारा?
इस बार सपा, बसपा, कांग्रेस, रालोद और भाजपा फिर महिलाओं को टिकट दे रहे हैं, लेकिन यह संख्या प्रदेश की 10 करोड़ की महिला आबादी के हिसाब से उचित नहीं प्रतीत हो रही है।जिससे कि बहु नहीं बहुमत है..का नारा देने वाले सारे राजनैतिक दलों की पोल खुल जाती है।