Scindia Impact: मध्य प्रदेश की ज्योति राजस्थान में बन सकती है ज्वाला, सचिन पायलट भी दिखा सकते हैं तेवर!
बेंगलुरू। मध्य प्रदेश के बाद कांग्रेस शासित एक और राज्य राजस्थान में भी सत्ता परिवर्तन की चर्चा में जोरों से चल रही है। वर्ष 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराकर सत्ता में लौटी कांग्रेस ने युवा जोश की तुलना में अनुभव को तरजीह दिया था। उसका खामियाजा कांग्रेस मध्य प्रदेश में फिलहाल देख चुकी है।
ऐसा माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश की सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा लगाई चिंगारी की आग कब राजस्थान में पहुंचकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए ज्वाला बन जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता है।
गौरतलब है वर्ष 2018 में राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में एक साथ काबिज हुई कांग्रेस में स्थिति कमोबेश एक जैसी स्थिति हैं, जहां कांग्रेस आलाकमान ने दो युवा नेताओं को मुख्यमंत्री के रेस से बाहर करके नाराज किया था।
मध्य प्रदेश की सत्ता से किनारे किए गए ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार कांग्रेस को उनकी अनदेखी करने के लिए संकेत दे चुके थे और अब वो बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नेतृत्व में बीजेपी में पहुंच चुके हैं। प्रदेश में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच राजनीतिक अदावत भी किसी से छिपा नहीं हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से ही डिप्टी सीएम और राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का कई महत्वपूर्ण मसलों पर अशोक गहलोत से मतभेद रहे हैं। यही कारण था कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ कमलनाथ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो ट्विटर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही चर्चा के केंद्र बने हुए थे।
लेकिन ट्वीटर पर सचिन पायलट ट्रेंड कर रहे थे। लगे हाथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) की राजस्थान इकाई से एक नेता ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि कांग्रेस के तीन दर्जन असंतुष्ट विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। सूत्रों के दावे पर भरोसा किया जाए तो मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ की तरह ही राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार खतरे में है।
दिलचस्प बात यह है कि मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान की कहानी और पटकथा में कोई अंतर नहीं है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस आलाकमान पर जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की अनदेखी का आरोप लगा। वहीं, राजस्थान में भी कांग्रेस आलाकमान पर सचिन पायलट की अनदेखी करने का आरोप लगाया जाता रहा है।
एक नहीं कई मसलों पर डिप्टी सीएम सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अदायत सतह पर आ चुकी है। ताजा मामला राज्यसभा चुनाव के लिए सांसद चुनने को लेकर लिया जा सकता है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चहेते राजीव अरोड़ा को राज्यसभा भिजवाने पर अड़े हैं, लेकिन पायलट खेमा उनके नाम पर सहज नहीं है, जिसके लिए पायलट ने कांग्रेस आलाकमान नाराज़गी भी जता चुके हैं।
उल्लेखनीय है मध्य प्रदेश में बड़ा सियासी उलटफेर हो चुका है। कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके खेमे के 22 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है, जिसके बाद कांमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। अब चर्चा आम है कि अगला नंबर सचिन पायलट का हो सकता है।
अगर राजस्थान बीजेपी नेता की बातों पर भरोसा करे तो बीजेपी के लिए राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को डगमगाना टेढ़ी खीर नहीं रहा है। कथित रूप से अगर कांग्रेस के तीन दर्जन विधायक असंतुष्ट होकर इस्तीफा दे देते हैं तो अशोक गहलोत सरकार को भी अल्पमत में आने में देर नहीं लगेगा।
इसकी शुरूआत बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने मंगलवार को ही कर दी थी। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने का स्वागत करते हुए कहा कि कांग्रेस में युवा नेताओं का कांग्रेस में अपमान हो रहा है। उन्हें कांग्रेस में कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है।
इस दौरान शाहनवाज ने राजस्थान कांग्रेस में भी अंसतोष होने की तरफ इशारा किया। उनके निशाने पर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ही थे। उन्होंने आगे कहा कि राजस्थान में सचिन पायलट के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार हो रहा है, जो मध्य प्रदेश में कमलनाथ और कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ किया गया।
यह भी पढ़ें- ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहना भगवा चोला, कहा- व्यथित हूं, बहुत बदल गई है कांग्रेस पार्टी
जब अशोक गहलोत पर जमकर बरसे थे सचिन पायलट!
राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने नागौर में दो दलित युवकों की बेरहमी से हुई पिटाई की घटना को लेकर अपनी ही सरकार पर हमला बोला था और अशोक गहलोत को जवाबदेही तय करने की बात भी कही है। बिना नाम लिए सचिन पायलट ने गहलोत को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि राजस्थान के गृह मंत्रालय को आत्म चिंतन करना होगा। (गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है) दरअसल, नागौर में चोरी के आरोप में दो दलित युवकों को बेरहमी से पीटा गया था और उनके प्राइवेट पार्ट में पेट्रोल डाल दिया गया। घटना 16 फरवरी को हुई और प्राथमिकी 20 फरवरी को लिखी जा सकी थी।
सचिन पायलट और अशोक गहलोत से है पुरानी अदावत!
राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराजगी तभी से हैं जब विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस आलाकमान ने अशोक गहलोत को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया था। हालांकि डिप्टी सीएम बनाकर कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को मनाने की कोशिश की, लेकिन कई मसलों पर कांग्रेस आलाकमान से गहलोत की शिकायत कर सचिन पायलट अपनी नाराजगी का जगजाहिर करने से गुरेज नहीं किया है। डिप्टी सीएम ही नहीं, उनके उनके पक्ष के विधायक भी अशोक गहलोत से खफा बताए जाते हैं। हाल ही में विधानसभा में भी पायलट कैंप के कई विधायक गहलोत सरकार पर सवाल उठा चुके हैं।
राज्यसभा चुनाव को लेकर पायलट और गहलोत के बीच चल रही है रार
26 मार्च को राजस्थान से राज्यसभा की 3 सीटों के लिए चुनाव होना है। मौजूदा विधायकों की संख्या के आधार पर कांग्रेस के खाते में दो सीटें आनी तय मानी जा रही है। राज्यसभा चुनाव के प्रत्याशी के रूप में तारिक अनवर, राजीव अरोड़ा, भंवर जितेंद्र सिंह और गौरव वल्लभ के नामों की चर्चा है। माना जा रहा है कि एक-दो दिनों में प्रत्यााशियों के नामों पर मुहर लग जाएगी और 13 मार्च तक उम्मीदवार नामांकन फाइल भी कर सकते हैं, लेकिन गहलोत के चहेते राजीव अरोड़ा की राज्यसभा उम्मीदवारी को लेकर पायलट और गहलोत में जंग छिड़ गई है। पायलट और उनके विधायकों का खेमा राजीव अरोड़ा के नाम पर सहज नहीं है। पायलट ने कांग्रेस आलाकमान से नाराज़गी दर्ज भी करवा दी है।
डिप्टी सीएम सचिन पायलट के साथ हो सकते हैं 30-40 MLA
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राजस्थान में अशोक गहलोत के साथ अभी 70 से 80 विधायक हैं। पायलट के साथ 30 से 40 हो सकते हैं इसलिए राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसी उठापटक की संभावना कम ही है। हालांकि कांग्रेस आलाकमान मध्य प्रदेश की घटना के बाद हो सकता है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद का ऑफर दे सकती हैं। चूंकि सिंधिया के उलट पायलट के साथ खुलकर आने वाले कम ही विधायक हैं जबकि अशोक गहलोत की सरकार पर पकड़ ज्यादा बेहतर हैं। कहा जाता है कि गहलोत के सियासी कौशल की बदौलत 6 बीएसपी विधायक कांग्रेस में आए और सरकार को समर्थन कर रहे 11 निर्दलीय MLA भी गहलोत की देने हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव 99 सीट जीतने वाली कांग्रेस के पास अभी विधानसभा में कुल 117 विधायकों का समर्थन हासिल हैं, जो बहुमत से 16 ज्यादा है।
कमलनाथ के उलट अशोक गहलोत की मजबूत है पकड़
सियासी पंडितों का कहना है कि कमलनाथ के उलट गहलोत राज्य की सियासी नब्ज पर मजबूत पकड़ रखते हैं। वह पहले भी अल्पमत की सरकार चला चुके हैं। 1993 में भैरों सिंह शेखावत ने राजस्थान में पहली बार अल्पमत की सरकार का कार्यकाल पूरा किया था। इसके बाद 2008 में अशोक गहलोत ने 96 विधायक होने के बावजूद पांच साल तक आसानी से सरकार चलाई। उनके नेताओं से व्यक्तिगत रूप से अच्छे संपर्क हैं। वह तीसरी बार राजस्थान के सीएम बने हैं और प्रशासनिक मशीनरी का भी बेहतरीन इस्तेमाल उन्हें आता है। ऐसे में आने वाले वक्त में उनकी सरकार को खतरा नहीं दिख रहा है।
राजस्थान विधानसभा में बहुमत की यह है मौजूदा गणित?
राजस्थान में विधानसभा की कुल 200 सीटे हैं, ऐसे में सरकार बनाने के लिए 101 विधायकों की जरूरत होती है. वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटों पर जीत हासिल की थी. सहयोगी और निर्दलीय विधायकों की मदद से कांग्रेस ने आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. दूसरी तरफ, वर्ष 2013 में प्रचंड बहुमत के साथ राजस्थान की सत्ता में आने वाली BJP को महज 73 सीटें ही मिल सकी थीं. लिहाजा, चुनाव के बाद भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इन दोनों दलों के अलावा बसपा के खाते में 6 और राष्ट्रीय दल के हिस्से में एक सीट आई थी।