चारा घोटाला: जमानत के लिए झारखंड हाईकोर्ट जाएंगे लालू यादव
शनिवार को रांची की विशेष सीबीआई कोर्ट ने चारा घोटाले के 21 साल पुराने एक मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव सहित 16 लोगों को सजा सुनाई थी
नई दिल्ली। चारा घोटाले के एक मामले में दोषी आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जमानत के लिए रांची हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। इस बारे में जानकारी देते हुए लालू के वकील प्रभात कुमार ने बताया, 'हम जजमेंट की कॉपी पढ़ेंगे और जल्द से जल्द शुक्रवार को फिर अगले हफ्ते सोमवार को हाई कोर्ट जाएंगे।' इस सवाल पर कि क्या लालू अपनी बहन के निधन के बाद परोल पर बाहर आएंगे, उनके वकील ने कहा कि अब तक हमने इस पर विचार नहीं किया है। हम जल्द से जल्द हाई कोर्ट का रुख करेंगे।
शनिवार को हुई थी सजा
शनिवार को रांची की विशेष सीबीआई कोर्ट ने चारा घोटाले के 21 साल पुराने एक मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव सहित 16 लोगों को सजा सुनाई थी। गौरतलब है कि लालू यादव को अगर तीन साल या उससे कम की सजा होती तो उन्हें सीबीआई कोर्ट जमानत मिल सकती थी। लेकिन उन्हें अब जमानत रांची हाईकोर्ट से ही मिलेगी।
क्या है चारा घोटाला?
चारा घोटाले का यह मामला देवघर कोषागार से 89 लाख रुपये से अधिक की अवैध निकासी का है। सीबीआई ने इस मामले में 15 मई 1996 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी तथा 28 मई 2004 को आरोप पत्र दायर किया था। इस मामले में 26 सितंबर 2005 को आरोप गठन किया गया था। इस मामले में पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने पशु चारा और दवा के नाम पर अवैध निकासी की थी। इसके लिए फजीर् आवंटन आदेश का इस्तेमाल किया था। जांच से बचने के लिए टुकड़ों-टुकड़ों में 10 हजार रुपये से कम का बिल ट्रेजरी में पेश किया था।
इतने लोगों की थी भूमिका
इस मामले में पिछले वर्ष 23 दिसंबर को अदालत ने राजद अध्यक्ष श्री यादव, पूर्व सांसद जगदीश शमार्, पूर्व विधायक आर. के. राणा, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी फूलचंद सिंह, बेक जुलियस एवं महेश प्रसाद के अलावा अधिकारी कृष्ण कुमार प्रसाद, सुबीर भट्टाचार्य,सप्लायर और ट्रांसपोर्टर त्रिपुरारी मोहन, सुशील सिंह, सुनील सिंह, राजाराम जोशी, गोपीनाथ दास, संजय अग्रवाल, ज्योति कुमार झा और सुनील गांधी को भारतीय दंड विधान की धारा 420, 467, 468, 477 ए और 120 बी के तहत दोषी करार दिया था। वहीं, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र, पूर्व पशुपालन मंत्री विद्यासागर निषाद, लोक लेखा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव भगत, प्रशासनिक अधिकारी ए. सी. चौधरी के अलावा सप्लायर और ट्रांसपोर्टर सरस्वती चंद्रा तथा साधना सिंह को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था।
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