बेटे की ड्राइव के लिए शास्त्री ने जेब से भरा पैसा, देश के दूसरे प्रधानमंत्री की सादगी के 5 रोचक किस्से
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन के दो हफ्ते बाद लाल बहादुर शास्त्री को देश की बागडोर सौंपी गई। प्रधानमंत्री नेहरू के बाद जब देश के सामने ये सवाल था कि इस बड़े राजनीतिक शून्य को कौन भरेगा तब शास्त्री ने केवल इस काम को बखूबी किया बल्कि देश को कई मुश्किलों से निकालकर और मजबूत बनाया। शास्त्री विचारधारा में नेहरूवादी समाजवादी थे लेकिन उनका व्यक्तित्व नेहरू के व्यक्तित्व के बिल्कुल विपरीत था। मृदुभाषी और सादगी पसंद लाल बहादुर शास्त्री ने हमेशा लो प्रोफाइल जीवनशैली को अपनाया। शायद यही वजह है कि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के बारे में बहुत कम ही बात होती है। आज जब पूरा देश 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मना रहा है उसी दिन लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म हुआ था लेकिन इस पर शायद ही बड़े आयोजन नजर आएं। शायद ये उनकी विनम्रता ही है जिसे सबकी ज्यादा बात करने की जरूरत है। हम ऐसे ही पांच किस्से बताने जा रहे हैं जो बताते हैं कि शास्त्री किस तरह से सादगी की मूर्ति थे।
जब सायरन लगी गाड़ी लेने से किया था इनकार
पहली घटना उस समय की है जब शास्त्री देश के गृह मंत्री थे। वे एक काम से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में थे और उन्हें दिल्ली वापसी का विमान पकड़ने के लिए एयरपोर्ट पर जाना था। शास्त्री जी की फ्लाइट शाम को थी और रोड पर भीड़ के चलते इतना समय नहीं था कि वह टेक ऑफ के टाइम तक एयरपोर्ट पर पहुंच सके। गृह मंत्री की जरूरत को देखते हुए तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने उनसे कहा कि वह उनके काफिले के आगे सायरन लगी एक कार भेज रहे हैं जो रास्ते को खाली कराती जाएगी और वह समय पर एयरपोर्ट पर पहुंच जाएंगे। लेकिन शास्त्री जी इस ऑफर को विनम्रता पूर्वक यह कहते हुए इनकार कर दिया इससे लोग सोचेंगे कि कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति जा रहा है।
खुद को कहते थे तीसरे श्रेणी का व्यक्ति
दूसरी घटना तब की है जब शास्त्री जी का भारत के प्रधान मंत्री के रूप में किसी राज्य का दौरा करने का कार्यक्रम था। अंतिम समय में उन्हें एक जरूरी काम आ पड़ा और कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा। जब उस राज्य के मुख्यमंत्री को कार्यक्रम रद्द होने की जानकारी मिली तो उन्होंने शास्त्री जी से ऐसा न करने का अनुरोध करते हुए कहा कहा कि उन्होंने यात्रा के लिए प्रथम श्रेणी की व्यवस्था की थी तो प्रधानमंत्री शास्त्री ने उन्हें सीधा जवाब दिया कि आप तीसरे श्रेणी के व्यक्ति के लिए प्रथम श्रेणी की व्यवस्था क्यों करते हैं।
परिवार में शुरू किया एक वक्त का भोजन
एक महत्वपूर्ण घटना 1965 की है जब भारत अपने पड़ोसी पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझा हुआ था। इसी समय देश में भारी खाद्यान्न संकट भी छाया हुआ था। भारत खाद्यान्न आपूर्ति के लिए अमेरिका पर निर्भर था लेकिन अमेरिका पाकिस्तान के साथ था और बार-बार आपूर्ति में कटौती की धमकी दे रहा था। इस संकट से निपटने के लिए शास्त्री जी ने एक अनोखा फैसला किया। उन्होंने एक शाम अपने परिवार को घोषणा की कि अगले कुछ दिनों के लिए वे सभी शाम को अपना भोजन छोड़ देंगे और एक सप्ताह तक घर में शाम को चूल्हा नहीं जलेगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को केवल दूध और फल मिलेगा जबकि घर के बड़े भूखे रहेंगे। एक सप्ताह तक ये देखने के बाद, कि उनका परिवार एक वक्त का भोजन किए बिना जीवित रह सकता है, उन्होंने देश की जनता से सप्ताह में कम से कम एक बार भोजन छोड़ने का आग्रह किया। अगले कुछ सप्ताह तक सभी रेस्टोरेंट और भोजनानयों ने सख्ती से नियम का पालन किया।
जब बेटे की ड्राइव के लिए अपनी जेब से भरा पैसा
एक और मौका था जब उनके पीएम रहते हुए उनके बेटों ने ड्राइव पर जाने के लिए उनके ऑफिस की कार का इस्तेमाल किया था। जब शास्त्री जी को इस बारे में पता चला तो वे बहुत नाराज हुए। अगले दिन शास्त्री ने निजी इस्तेमाल के लिए कार द्वारा तय की गई दूरी का भुगतान अपने अपनी निजी कमाई से सरकारी खाते में जमा कराया।
मौत
के
बाद
पत्नी
ने
भरा
कर्ज
1966
में
जब
देश
के
दूसरे
प्रधानमंत्री
लाल
बहादुर
शास्त्री
का
निधन
हुआ,
उस
समय
तक
उनके
नाम
पर
न
तो
कोई
घर
था
और
नही
उनके
पास
कोई
निजी
जमीन
थी।
संपत्ति
के
नाम
पर
उन्होंने
परिवार
के
लिए
कर्ज
छोड़
रखा
था
जो
उन्होंने
प्रधानमंत्री
बनने
के
बाद
फिएट
कार
खरीदने
के
लिए
लिया
था।
उनके
निधन
के
बाद
बैंक
ने
उनकी
पत्नी
से
कर्ज
के
बारे
कहा
तो
उन्होंने
अपनी
पारिवारिक
पेंशन
से
इसे
चुकाया।
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