दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी का क्या दांव पर लगा है, जानिए
Know what is at Stake of BJP and Aam Aadmi Party in Delhi Assembly Elections? दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आमआदमी पार्टी और भाजपा जीत हासिल करने के लिए अपना पूरा दम लगा रही है। जानिए अगर इन दोनों पार्टियों में किसी की हार होती है तो उन्हें क्या नुकसान होगा?
बेंगलुरु। दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही राजनीतिक पार्टियों में उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार से सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों के संभावित उम्मीदवारों के नाम पर लोगों की राय लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। भाजपा हर हाल में इस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को परास्त कर दिल्ली की सल्तनत अपने कब्जे में करने के लिए जुट चुकी है।
भाजपा पीएम मोदी के दम पर 22 सालों बाद दिल्ली में वापसी करने की उम्मीद कर रही है। वहीं आम आदमी पार्टी सीएम अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में किए गए कार्यो का जमकर प्रचार करना आरंभ कर चुकी है। आम आदमी पार्टी को केजरीवाल सरकार के प्रदर्शन के आधार पर इस चुनाव में अपनी जीत पर पूरा भरोसा हैं।
बता दें आम आदमी पार्टी जहां सीएम केजरीवाल के चेहरे पर यह चुनाव लड़ रही है वहीं भाजपा यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। ऐसे में यह चुनाव केजरीवाल बनाम मोदी अधिक होगा। दिल्ली के चुनाव मैदान में कांग्रेस पार्टी भी है। लेकिन कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति से वाकिफ है। कांग्रेस किसी भी हाल में दिल्ली में भाजपा की सरकार बनते नहीं देखना चाहती। भले ही केजरीवाल दोबारा सत्ता में आ जाए।
केजरीवाल की नाक लगी है दांव पर
बता दें देश भर में दिल्ली अकेला राज्य हैं जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के पूर्व ही यह पार्टी वजूद में आयी। 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल कर दिल्ली की सत्ता पर पिछले 15 वर्षों से काबिज कांग्रेस पार्टी को उखाड़ फेका था। मालूम हो कि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिली थीं। 67 सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी ने अपने दम पर सरकार बनायी थी। इसलिए इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए उसकी उपस्थिति और ब्रांड केजरीवाल की नाक का सवाल हैं। बता दें इस चुनाव में केजरीवाल का टारगेट 67 सीटों पर जीत हासिल करने का है।
केजरीवाल की जीत पर टिका है पार्टी का अस्तित्व
अगर इस चुनाव में भाजपा आम आदमी पार्टी को हराने में कामयाब हो जाती है तो दिल्ली गवां कर केजरीवाल की पार्टी देश की राजनीति से हाशिए पर चली जाएगी और अरविंद केजरीवाल वन टाइम हीरो बन कर रह जाएगे। गौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनने के बाद देश में कई राज्यों के चुनाव हुए लेकिन उनमें आम आदमी पार्टी का परफार्मेंस बहुत बुरा रहा। दिल्ली के अलावा केजरीवाल की पार्टी की केवल पंजाब तक पकड़ है। पंजाब में केजरीवाल की पार्टी के 19 विधायक और एक सांसद हैं। 2014 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अगर अरविंद केजरीवाल जीत हासिल नहीं कर पाते है तो उनके सामने पार्टी के अस्तित्व को बचाने की चुनौती खड़ी हो जाएगी।
भाजपा के लिए चुनाव जीतना मोदी के आन-बान-शान का सवाल
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निर्भर है। दिल्ली का पुराना चुनावी इतिहास देखे तो यह पता चलता है कि भाजपा दिल्ली में लोकसभा में तो बेहतर प्रदर्शन करती है लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में उसकी हवा निकल जाती है। 2013 से लेकर 2019 तक देश में मोदी की लहर थी। भाजपा उस समय सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी इसके बावजूद भाजपा दिल्ली में पहले 2013 का चुनाव हारी, 2014 में लोकसभा में बहुमत हासिल कर सरकार बनाने के एक वर्ष बाद ही 2015 में विधानसभा चुनाव हुए, तो भाजपा को फिर से हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में तो भाजपा सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई, बाकी की 67 सीटें आम आदमी पार्टी जीती थी।
दिल्ली हासिल करना भाजपा के लिए इसलिए है जरुरी
गौरतलब है कि भाजपा मोदी के चेहरे पर तो चुनाव लड़ रही है। इस चुनाव में भाजपा मोदी सरकार के द्वारा देश हित में लिए गए निर्णय और सरकार की उपलब्ध्यिों के बखान के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों को भी उठाना शुरू किया है। क्योंकि पिछले दिनों कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली हार से सबक मिल चुका है कि राष्ट्रवाद और हिदुत्व के मुद्दों के बल पर विधान सभा में चुनावी नैया पार नहीं लग सकती। भाजपा इसीलिए स्थानीय मुद्दों को उठाकर केजरीवाल को घेरने का प्रयास कर रही है। इसलिए चुनाव की तारीख की घोषणा से पूर्व से ही केंद्र सरकार भी दिल्ली की राजनीति में रोल अदा करना शुरु कर दिया था। इसी कड़ी में पिछले दिनों मोदी सरकार ने दिल्ली की कच्वी कॉलोनियों को आधिकारिक बना दिया था। आपको बता दें केन्द्र सरकार ने दिल्ली में सत्ता पाने के लिए वो ही कदम उठाया है जो 2008 में कांग्रेस ने उठाया था। 2008 में कांग्रेस ने भी अवैध कॉलोनियों में रहने वालों को मालिकाना हक का सर्टिफिकेट बांटा था। जिसके बाद शीला दीक्षित के प्रतिनिधित्व में कांग्रेस ने सत्ता बनाए रखने में कामयाबी हासिल की थी।
मोदी की छवि लगी है दांव पर
कुल मिलाकर इस चुनाव में पीएम मोदी की छवि भाजपा के लिए दाव पर लगी है। पिछले विधानसभा चुनाव की तरह अगर भाजाप यह चुनाव भी हार जाती है तो इससे ब्रांड मोदी को तगड़ा झटका लगेगा। इतना ही नही दिल्ली चुनाव में भाजपा की हार मोदी सरकार में लिए गए फैसलों पर जनता का पक्ष भी पेश करेगी। खासकर उस समय में जब पीएम मोदी ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने, नागरिकता कानून लागू करने और एनआरसी जैसे फैसले लिए हैं जिसका दिल्ली की सड़कों से लेकर देश के तमाम राज्यों में विरोधी हो रहा हैं। ऐसे में दिल्ली का चुनाव जीतना भाजपा और पीएम मोदी के आन बान शान की बात है।
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